नगर में विराजी माता रानी के पण्डालों में पहुंच पूजा अर्चना कर विधानसभा, प्रदेश वासीयों के अमन चैन के लिए आशीर्वाद
दुर्गाष्टमी को खरसिया विधायक उमेश पटेल उच्च शिक्षा मंत्री नगर में विराजी माता रानी के पण्डालों में पहुंच पूजा अर्चना कर विधानसभा, प्रदेश वासीयों के अमन चैन के लिए आशीर्वाद
शारदीय नवरात्रि का आज रविवार को आठवां दिन है। इसे दुर्गाष्टमी या महाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन मां दुर्गा के महागौरी स्वरूप की विधिपूर्वक आराधना की जाती है। महाष्टमी के दिन मां महागौरी की आराधना करने से सुख और समृद्धि के साथ सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
खरसिया विधान सभा क्षेत्र में शहीद नन्द कुमार पटेल के समय से चला आ रहा परम्परा का निर्वहन खरसिया विधायक उमेश पटेल उच्च शिक्षा मंत्री करते चलें आ रहें हैं
हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी मदनपुर कांग्रेस कार्यालय से कांग्रेस जनो के साथ मदनपुर बस्ती, हमालपारा,
पुरानी बस्ती, काली माँ मन्दिर, पोस्ट आफिस रोड़ ,सुभाष चौक, स्टेशन होते नगर के पण्डालों में
पद यात्रा करते पहुंच पूजा अर्चना कर विधानसभा क्षेत्रवासी प्रदेश वासीयों के मंगल कामना का आर्शीवाद लिए।
सहज और सरल उमेश पटेल
पद यात्रा के दौरान अपने युवा सहयोगी राजेन्द्र राठौर उर्फ लालू के छोटी सी पान गुम्टी में पहुंच पान खाना नहीं भूले…
भक्तों के सभी दुख दूर हो जाते हैं, वह पापमुक्त हो जाते हैं।
कई जगहों पर दुर्गाष्टमी के दिन कन्या पूजन भी किया जाता है। महागौरी को रातरानी का फूल प्रिय है। पूजा में उनको रातरानी का पुष्प अर्पित करें। पूजा के दौरान दुर्गा चालीसा और दुर्गा आरती करें, इसके पश्चात मां महागौरी के समक्ष अपनी मनोकामनाएं प्रकट कर दें। पूजा से प्रसन्न होकर माता महागौरी आपकी मनोकामनाओं की पूर्ति करेंगी।
कैसे देवी का नाम पड़ा महागौरी
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, माता शैलपुत्री 16 वर्ष की अवस्था में अत्यंत्र सुंदर और गौर वर्ण की थीं। अत्यंत गौर वर्ण के कारण ही माता का नाम महागौरी पड़ा।
वहीं एक कथा के अनुसार, एक बार माता पार्वती भगवान शिव से नाराज होकर कैलाश से कहीं दूर चली गईं और कठोर तपस्या करने लगीं। काफी वर्षों तक वह वापस नहीं आईं, तो भगवान शिव उनकी खोज में निकले। जब वह माता पार्वती से मिले तो वे उनका स्वरूप देखकर दंग रह गए।
उस समय माता पार्वती अत्यंत गौर वर्ण की हो गई थीं। भगवान शिव ने उनको गौर वर्ण का वरदान दिया, जिससे वह माता महागौरी कहलाने लगीं।
मां महागौरी का स्वरूप
माता महागौरी भी माता शैलपुत्री की तरह ही बैल पर सवार रहती हैं, इसलिए इनको वृषारूढ़ा भी कहा जाता है। इनकी चार भुजाएं हैं। वह अपने एक दाएं हाथ में त्रिशूल धारण करती हैं और दूसरे दाएं हाथ को अभय मुद्रा में रखती हैं।
वहीं, एक बाएं हाथ में वह डमरू धारण करती हैं तो दूसरे बाएं हाथ को वरद मुद्रा में रखती हैं। वह केवल श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, इसलिए उनको श्वेतांबरधरा भी कहा जाता है।