सर्वसुविधा युक्त पद्मावती हॉस्पिटल के कमरे में धनतेरस और दीपावली…

✍ गोपाल कृष्ण नायक “देहाती”
इस बार दीपावली कुछ अलग है — न घर में, न बाजार में,बल्कि पद्मावती हॉस्पिटल के सर्वसुविधा युक्त कमरे में…
यह वही जगह है जहाँ ऑक्सीजन सिलिंडर दीपक की जगह जगमगा रहे हैं,
और जहाँ स्टाफ की मुस्कान ही सबसे बड़ी लक्ष्मी पूजा बन गई है।
बाहर बाजारों में सोने की झिलमिलाहट है,
अंदर यहाँ सलाइन की चमक है।
कोई सोने की चेन खरीद रहा है,
और मैं यहाँ ग्लूकोज़ की चैन में बंधा पड़ा हूँ।
बाहर मिठाइयों में शुद्ध घी की महक है,
और अंदर दवा की शीशी में स्पिरिट की गंध —
दोनों का असर लगभग एक जैसा ही,
बस एक दिल को मीठा करता है, दूसरा कड़वा।
पटेल डॉक्टर साहब सुबह-सुबह आए और बोले —
“कैसा लग रहा है?”
मैंने मुस्कराते हुए कहा —
“बस दीपावली की तरह… सब जगह रोशनी है, बस करंट थोड़ा कम है।”
वो हँसकर बोले — “आज तो आपको स्पेशल इंजेक्शन दीपोत्सव मिलेगा”
वाह कुछ लोग पटाखे जलाते हैं,
और कुछ इंजेक्शन के धमाके सहते हैं —
दीपावली का असली आनंद तो विविधता में है।
कमरे के कोने में मेरा मोबाइल रखा है —
वही मोबाइल जो इस बार लक्ष्मी पूजन की थाली की तरह सजा है।
वीडियो कॉल पर परिवार दिखता है —
माँ दीया जला रही हैं,बच्चे पटाखा,
और मैं यहाँ रोगों की आरती उतार रहा हूँ।

बाहर लोग कहते हैं — “धनतेरस पर कुछ नया खरीदो।”
तो मैंने भी खरीदा —
नई रिपोर्ट,नया प्रिस्क्रिप्शन और एक नई बीमारी की पहचान
क्या पता,अगले साल यही “वेलनेस पैकेज” में काम आ जाए।
फिर भी मन कहता है —
दीपावली बाहर नहीं,भीतर जलती है।
जब भीतर का दीप बुझता नहीं,
तो अस्पताल की ट्यूबलाइट भी आरती की लौ बन जाती है।
अतः इस बार न घर सजा,न आँगन,
पर आत्मा मुस्कुरा उठी —
क्योंकि जीवन बचा है,
और यही तो असली धनतेरस की प्राप्ति है।

“जहाँ स्वास्थ्य है, वहीं संपत्ति है।”
बाकी दीप जलाने के लिए अगर हिम्मत बाकी है,
तो हर दिल के अंधेरे को रोशन करने की कोशिश जारी रहनी चाहिए।




