पापा गए कहाँ? लाडली को कैसे समझाऊं
पापा गए कहाँ? लाडली को कैसे समझाऊं
नरसंहार की वो निर्मम रात बदल ना पाऊँ
पापा गए कहाँ?लाडली को कैसे समझाऊं
अकाल मृत्यु की जब गोद में सोया था
तब काल भी सिसककर खूब रोया था
जिसने षड्यंत्र की गंध से वन महकाया
वो काली रात भी रातभर कहाँ सो पाया
रात की घात से सारा वन थर्राया था
भोर भी तुम्हे न पाकर पछताया था
खून से तेरे वन में लथपथ परछाई थी
सुनी मांग से सबकी आंखें पथराई थी
आंगन आंसुओं के सैलाब से भर रहा था
नम आंखों से हर कोई प्रश्न कर रहा था
मौन निरुत्तर बूत बनके खामोशी छाई थी
देहरी में जब दोनों शहीदों की देह आई थी
चेहरे लाल आंखें सूजी जब तामस छाया था
देखने निर्लज होकर यमदूत भी तो आया था
वो मंजर आज भी रह-रहकर जी जाती है
सात साल बाद भी जिया क्यूँ अकुलाती है
निरपराध की कत्ल के अपराध से ब्यथित हूं
आजाद हैं क़ातिल तेरे मैं आज भी कथित हूं
दृढ़ विश्वास है परमशक्ति की अदालत पर
सौ-सौ धिक्कार है क्रूरता की सियासत पर
मन के घोड़े को किस कदर लगाम लगाऊं
पापा गए कहाँ?लाडली को कैसे समझाऊं
पापा गए कहाँ? लाडली को कैसे समझाऊं