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जनशक्ति का महत्व

☆ जनशक्ति का महत्व ☆

श्री सर्वेश्वरी समूह की सदस्याओं को अपने जीवन में उदार आचरण अपनाना चाहिए, जो सर्वमान्य हो, शोभनीय हो, निंदनीय न हो। पति, पुत्र और पड़ोसी के साथ आपका सद्व्यवहार हो। अपने पर अपव्यय न कर अपने पड़ोस की दुखी अबलाओं की सहायता करें। आप जैसे अपने केशों को संवारने, बांधने तथा गूंथने का कार्य करती हैं। वैसे ही संस्था का कार्य भी करती रहें। इससे संस्था को लाभ होगा।

आप लोग सदैव कुछ न कुछ देती रहती हैं, और पुरुष सदा आपसे भिखमंगों की तरह मांगता रहता है। इससे उन्हें तृप्ति होती है। आप उदार हैं। आप अपनी दाता शक्ति को पहचानें, समझें। आपके, पति पुत्र जबतक आपसे नहीं मांगते तबतक उनकी क्षुधा की तृप्ति नहीं होती। भोजन करते समय भी मांगते रहते हैं और आप देती रहती हैं भले ही आप के अपने लिए कुछ भी न बचे।

यह कहना सही है कि महिलाएं पुरुष से अधिक पौरुष रखती हैं। पुरुष में जो पौरुष है वह स्त्री की ही देन है। जब पुरुष नालायक हो जाता है तो स्त्री किसी भी तरह का परिश्रम कर अपने पुरुष का भी पालन कर लेती है। वह उस मर्यादा में बंधी रहती है जिसमें उसके पिता ने उसे सौंप दिया है। उसके लिए मरती, मिटती रहती है।

भारतीय समाज में महिलाओं का उच्च स्थान है। ऐसा किसी अन्य देश के समाज में नहीं है। पाश्चात्य देशों में तो कतई नहीं है। यह भारतीय संस्कार की विशेषता है कि एक ही घर के एक ही कक्ष में जवान भाई बहन रहते हैं, चाहे सहोदर हों, चचाजात हों या मौसेरा हों, किन्तु उनके मन में कोई कलुषित भावना नहीं उत्पन्न होती। यह हमारे ऋषियों की देन है। महात्माओं का आशीर्वाद है, पुण्यात्माओं की थाती है।

हमारी संस्कृति की रक्षा में भारतीय नारियों का बड़ा ही महत्वपूर्ण योगदान है। इस देश के पुरूष वर्ग तो इसे सिर्फ चर्चा का विषय बना कर रखे हैं। हम बचपन से देखते आये हैं कि हमें शिष्ट बनाने में स्त्रियों का बड़ा ही योगदान रहा है। साधु-सन्तों, फकीरों, ने गांव-गांव में परिभ्रमण कर जिस संस्कृति का उदघोष किया उसे महिलाओं ने संजोकर रखा। अन्यथा आज भारतीय संस्कृति का लोप हो गया होता।

महिलाएं दुर्गा की तरह सिंहनाद और गर्जना कर सकती हैं जिससे धरती कम्पित हो उठेगी, दिशाएं दिगदिग करने लगेंगी। बहुत सी महिलाएं जब लड़ती-झगड़ती हैं, अपने पुत्र-पौत्रों पर बिगड़ती हैं, तो बड़ा उग्र रुप धारण कर लेती हैं। यदि महिलाएं अपनी उचित बातें मनवाने के लिए अपने उग्र रुप का प्रयोग करें तो उन्हें मनवा सकती हैं। आप के मधुर कण्ठ में सरस्वती का भी निवास है। आप के मधुर स्वर और वाक्य मन्त्र के समान हैं। यदि आप इनका प्रयोग उल्टे कार्यों के लिए न कर पवित्र कार्यों के लिए करें तो आप का घर सुखी और संपन्न होगा।

आप महिलाएं न्यायमूर्ति हैं। आप न्याय करती रहें। यदि आप अपने बच्चों पर अधिक दया करेंगी तो उनकी आदतें खराब होंगी। बच्चों की सेवा तो आप ही कर सकती हैं। पुरुषों से तो यह हो ही नहीं सकता।

आप महिलाओं में केवल यही धार्मिक आस्था होनी चाहिए कि आप के पति आप के देव हैं। यदि आप उनके साथ शुभ संकल्प करती हैं तो वह अवश्य पूरा होगा। आप द्वारा साधु-सन्तों का चरण-स्पर्श व्यर्थ है। आप का देवता आप का पति है। आपको उसी का चरण छूना चाहिए। आप भी अपनी पूर्वज महिलाओं की तरह ध्यान-धारणा और योग की ओर ध्यान देती रहें।

हम देखते हैं कि बहुत सी महिलाएं ससुराल जाकर सम्मान चाहती हैं। वे सेवा न कर, विश्वास न प्राप्त कर, भौतिक फलों की प्राप्ति की कामना करती हैं। अत्यधिक भौतिक फलों की कामना भूत की बीती हुई बातों की तरह भूत है। अतः भूत की चिन्ता न कर, वर्तमान और भविष्य की आवश्यकताओं पर ध्यान दें तो श्रेयष्कर होगा। आप अपने पुत्र-पौत्रों और कुटुम्ब-परिवार में सदभाव स्थापित करें। सोना और सूद से दूर रहें। गुणी बनें। सोना भय देगा। पंजाब की महिलाएं अपना सोना बेचकर खेतों को संवारती हैं और यहां की स्त्रियां खेत बेचकर सोने का जेवर लाने को कहती हैं। इस लोभ से स्वस्थ जीवन का ह्रास होता है। इसी प्रकार तिलक-दहेज के प्रति भी आप में मोह है। इस रूढ़ि-परम्परा के उन्मूलन में आप का सहयोग अपेक्षित है। अब जो आसन की बात है उसे आप गम्भीरता से समझें। कभी भी चूका-मूका होकर न बैठें। स्वस्थ आसन से बैठें। इससे आप का चित्त प्रसन्न रहेगा।

आपको निर्भीक होना चाहिए क्योंकि आप की निर्भीकता समाज का कल्याण कर सकती है। आप संकुचित रहेंगी, भयभीत रहेंगी, तो हमारे समाज का कलंक बना रहेगा। आप में जो देवी का प्रचण्ड स्वरूप है उसमें प्रतिबिम्बित रहें। सभी पुरुष मात्र आप के ही पुत्र हैं। स्त्री को सिर्फ पति से लज्जा और भय करना चाहिए। उसके लिए संसार के अन्य सभी पुरुष बच्चे हैं। इस मनोदशा के विकास से आप में उदारता एवं चरित्र के गुण आयेंगे।

दुख ही इतिहास बनाता है

इतिहास साक्षी है, प्रतिभाशाली व्यक्तित्व को दुःख ही निखारता है। दुःख और गरीबी में पले हुए मानव का व्यक्तित्व सही ढंग से समाज को कुछ देने में समर्थ होता है। धनवान और सुखी मनुष्य का जीवन इतिहास और समाज के लिए कभी रोचक नहीं बन पाता है। जिसका जीवन सुख-समृद्धि में पला है, वह जन-सामान्य से, समाज से, बहुत दूर दीखता है। जिस किसी महापुरुष का समाज के प्रति, जनता के प्रति, कुछ देन है, वे अनेक दुःख उठाकर, अनेक ठोकर खाकर ही, ऐसा करने में समर्थ हुए हैं। इसीलिए हम राम से अधिक महत्व उनके चरित्र को देते हैं। चरित्र का निखार दुःख के सहयोग से ही पाया जाता है। जिन लोगों ने अधिक यातनाएं सही है, वे ही अपने देश में कुछ हुए भी हैं।

जो यातनाओं से दूर रहा है, उसे कुछ नहीं प्राप्त हुआ। इसीलिये कहा जाता है कि ठोकरें खाने के बाद ही मानव की चेतना और पत्थर पर घिस जाने के बाद ही हिना रंग लाती है। यदि हम सदाचार का अनुपालन करते हुए, धैर्य रखकर यातनाओं से नहीं उबते, तो हमारा भविष्य उज्जवल, स्वस्थ एवं स्वागत योग्य बन जाता है। उसे हम तपस्या की संज्ञा देते हैं। प्रभुवादी पुरुष असुरों के साथ लड़ते हुए पूंजीवाद के शोषण से अपने समाज का उद्धार करने में समर्थ होते हैं। यदि अपने समाज के प्रति हमारा कुछ कर्तव्य है तो यही है कि हम अपनी जनता को शोषण से मुक्ति दिलावें, अपने समाज को स्वस्थ रखें और अपने स्थान पर रहते हुए अच्छे चरित्र का अवलम्बन करें।

दुःख ही इतिहास बनाता है। किसी महापुरुष का इतिहास बना भी है तो दुःख से ही। इसे वैष्णव लोग लीला कहकर सम्बोधित करते हैं। राम की लीला को ऐसे ही जाना जाता है। किसी को अपना इतिहास बनाना है तो वह समाज के उपेक्षित वर्गों को अपनी सेवाएं दे,उनका उत्थान करे। आज के युग में उन्हीं वर्गों की सेवा उचित है और मानव को राष्ट्रीय जीवन के उच्च स्थान तक पहुंचा सकता है और पहुंचाया है।

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Gopal Krishna Naik

Editor in Chief Naik News Agency Group

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