काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानव्यापी मस्जिद पर कोर्ट का बड़ा फैसला, होगा पुरातात्विक सर्वेक्षण

काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानव्यापी मस्जिद पर कोर्ट का बड़ा फैसला, होगा पुरातात्विक सर्वेक्षण

काशी के विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे होगा। वाराणसी में सिविल कोर्ट ये फैसला सुनाया है। इससे पहले दो अप्रैल को हुई सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों की बहस के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया गया था। दरअसल दिसंबर 2019 में अधिवक्ता विजय शंकर रस्तोगी ने सिविल जज की अदालत में स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर की ओर से एक आवेदन दायर किया था और पूरे क्षेत्र का पुरातात्विक सर्वे कराने की मांग की थी।
इस मामले में सिविल जज सीनियर डिविजन फास्ट ट्रैक कोर्ट की अदालत ने पुरातात्विक सर्वे कराए जाने को लेकर फैसला सुनाया है। कोर्ट ने केंद्र के पुरातत्व विभाग के 5 लोगों की टीम बनाकर पूरे परिसर का रिसर्च कराने को लेकर फैसला दिया। कोर्ट के इस फैसले के बाद अयोध्या की तरह अब ज्ञानवापी मस्जिद की भी खुदाई कर ASI मंदिर पक्ष के दावे की प्रमाणिकता को परखेगी। काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद मामले में इसे बड़ा फैसला माना जा रहा है। दूसरी तरफ मुस्लिम पक्ष का कहना है कि अभी फैसले की कॉपी पढ़ेंगे पर उसके बाद आगे की कार्रवाई पर विचार करेंगे।
काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद मामले में आज पुरातत्व सर्वेक्षण पर फैसला
आपको बता दें कि दिसंबर 2019 में अधिवक्ता विजय शंकर रस्तोगी ने सिविल जज की अदालत में स्वयंभु ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर की ओर से एक आवेदन दायर किया था, जिसमें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संपूर्ण ज्ञानवापी परिसर का सर्वेक्षण करने का अनुरोध किया गया था। उन्होंने स्वयंभु ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर के ‘वाद मित्र’ के रूप में याचिका दायर की थी। इसके बाद जनवरी 2020 में अंजुमन इंतजामिया मस्जिद समिति ने ज्ञानवापी मस्जिद और परिसर का एएसआई द्वारा सर्वेक्षण कराए जाने की मांग पर प्रतिवाद दाखिल किया। पहली बार 1991 में वाराणसी सिविल कोर्ट में स्वयंभु ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर की ओर से ज्ञानवापी में पूजा की अनुमति के लिए याचिका दायर की गई थी।

क्या है पूरा मामला
काशी विश्वनाथ मंदिर के पक्षकार और वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी का कहना है कि औरंगजेब ने अपने शासन के दौरान काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने का फरमान जारी किया था, लेकिन उस फरमान में वहां मस्जिद कायम करने का फरमान कहीं से भी नहीं दिया गया था। लेकिन फिर भी यह विवादित ढांचा वहां बना दिया गया। वादी पक्ष का कहना है कि विवादित ढांचा काशी विश्वनाथ मंदिर की जगह पर ही बनाया गया है। जबकि प्रतिवादी पक्ष अंजुमन इंतजामियां मसाजिद कमेटी और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से दाखिल प्रतिवाद पत्र में यह कहा गया है कि यहां विश्वनाथ मंदिर कभी था ही नहीं और औरंगजेब बादशाह ने उसे कभी तोड़ा ही नहीं था। जबकि मस्जिद अनंत काल से कायम है, लेकिन उन्होंने अपने परिवाद पत्र में यह भी माना कि कम से कम 1669 से यह ढांचा कायम चला आ रहा है।



