पुलिस सहायता केन्द्र चौकी का वादा:हकीकत से ज्यादा हवा-हवाई…

खरसिया/राबर्टसन। क्षेत्र से पिछले कुछ समय से हो रहे घटनाक्रम के पश्चात याद दिला रहा है तत्कालीन समय में रायगढ-खरसिया के मध्य नेशनल हाईवे 49 में हो रहे सड़क दुर्घटनाओं को कम करने तथा एक्सीडेंट में घायल हुए लोगों को अति शीघ्र हाॅस्पिटल पहुंचाने के उद्देश्य से ग्राम चपले में जिला पुलिस रायगढ़ द्वारा “पुलिस सहायता केंद्र – चपले” खोला गया…
ग्राम चपले राबर्टसन में पुलिस व्यवस्था की एक ऐसी अनोखी पटकथा समय के साथ चल रही है, जिसे देखकर कोई भी निर्देशक अपनी फिल्म छोड़ यहां का सीन शूट करना चाहेगा। कभी बड़े ताम-झाम,रिबन काटने हाइवे पेट्रोलिंग वाहन और फोटो खिंचवाने के बीच खोला गया पुलिस सहायता केन्द्र अब गांववालों के लिए नहीं, बल्कि फाइलों और रजिस्टरों के लिए “सुरक्षा कवच” बन चुका है।
🎬 पहला सीन – “स्वागत है चौकी साहब”
शुरुआत बड़ी शान-ओ-शौकत से हुई थी। कप्तान साहब आए थे,जनप्रतिनिधि ग्रामीणजन के गौरवपूर्ण उपस्थिति रहे, फूलमालाएं चढ़ीं थीं, फोटो खिंचवाए गए थे।
उस समय लगा था कि अब सड़क दुर्घटनाओं को कम करने तथा एक्सीडेंट में घायल हुए लोगों को अति शीघ्र हाॅस्पिटल पहुंचाने के उद्देश्य से ग्राम चपले में जिला पुलिस रायगढ़ द्वारा “पुलिस सहायता केंद्र – चपले” खोला गया…गांव में अपराधी तो क्या,चोर-बिल्ली भी डर के मारे गायब हो जाएगी। पर अफसोस! कुछ दिन बाद न पुलिस दिखी,न चौकी।
🎬 दूसरा सीन – “कागज़ों की चौकी”
गांव के लोग बताते हैं कि चौकी का नाम अब सिर्फ फाइलों और सरकारी कागज़ों पर मिलता है। कागज़ बोलते हैं – “हम सुरक्षित हैं, बाकी जनता अपना देख ले।” अब गांव वाले मज़ाक में कहते हैं – “हमारे पास अदृश्य चौकी है, जिसे देखने के लिए सरकारी चश्मा चाहिए।”
🎬 तीसरा सीन – “गांव वालों की हंसी”
गांव की गलियों में जब कोई “चपले चौकी” का नाम लेता है, तो लोग ठहाका मारकर हंस पड़ते हैं। एक बुजुर्ग ने तो यहां तक कह दिया –
👉 “शायद चौकी खुद ही सुरक्षा के डर से गांव छोड़ कर भाग गई।”
🎬 चौथा सीन – “वादों का मंचन”
प्रशासन और सरकार का दावा था कि “जल्द ही सहायता केन्द्र को चौकी में तब्दील किया जाएगा।” लेकिन वह ‘जल्द’ कब आएगा, यह कोई ज्योतिषी भी नहीं बता सकता। लगता है यह वादा भी उसी थियेटर का हिस्सा है, जिसमें इंटरवल के बाद नायक कभी लौटता ही नहीं।
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चपले की सहायता केन्द्र/चौकी अब गांव की “ फिल्म कि कहानी” बन चुकी है। कहीं दिखती नहीं,पर हर जगह उसका जिक्र होता है। सरकार के वादों और जनता की उम्मीदों के बीच यह चौकी एक अदृश्य पात्र की तरह है – कागज़ों पर अमर, ज़मीन पर गायब।
📝 डिस्क्लेमर
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