
खरसिया। मांड नदी जो कभी क्षेत्रवासियों के जीवन और संस्कृति की पहचान रही है, आज अपनी ही पहचान खोती जा रही है। नगर को लिए सप्लाई होने वाले पानी की दुर्दशा डोमनारा के उसपार में देखने लायक है।
क्षेत्र के उद्योग घरानों की मनमानी और प्रशासनिक लापरवाही के चलते इस पवित्र नदी की स्थिति दिन-ब-दिन गंभीर होती जा रही है।

उद्योग क्षेत्र के प्रमुख नाले – कुर्रुभांठा नाला, दर्रा मुड़ा नाला, कुनकुनी नाला, खैरपाली नाला, गेजामुड़ा नाला और बायंग-नंदेली के मध्य बहने वाली नाला ऐसे अनेकों नाला– अब प्राकृतिक जल स्त्रोत नहीं, बल्कि उद्योगों के रासायनिक अपशिष्ट और गंदगी ढोने वाले नाले बन गए हैं। इन सभी नालों का जल सीधे मांड नदी में मिल रहा है, जिससे न केवल जल की गुणवत्ता खराब हो रही है, बल्कि इसके आस-पास की जैवविविधता और ग्रामीण जनजीवन पर भी गंभीर प्रभाव पड़ रहा है।
जो वर्षों से मांड नदी पर आश्रित रही है, अब इस हालात से आक्रोशित है। उनका स्पष्ट कहना है कि इस प्रदूषण की उच्च स्तरीय वैज्ञानिक जांच कराई जाए। कोई स्वतंत्र और मान्यता प्राप्त उच्च श्रेणी की लैब से जांच कराकर यह साफ किया जाए कि आखिर नदी में कितना प्रदुषण का जहर उद्योग घरानों द्वारा घोला जा चुका है।
सवाल उठता है:
- क्या प्रशासन इन उद्योगों की जवाबदेही तय करेगा?
- क्या जांच में सच्चाई सामने आ पाएगी या यह भी किसी फाइल में दफ्न होकर रह जाएगा?
- और सबसे बड़ा सवाल – कब तक मांड नदी जैसी जीवनदायिनी नदियां उद्योगों के लालच का शिकार बनती रहेंगी?
समाप्ति में, क्षेत्रवासियों का विश्वास तभी लौटेगा जब सरकार,पर्यावरण विभाग और स्थानीय प्रशासन मिलकर सख़्त कार्यवाही करेंगे और नदी की शुद्धता को बहाल करने के लिए ठोस कदम उठाएंगे।

“अब समय आ गया है – सिर्फ वादे नहीं, ठोस कार्यवाही हो।”




