मानसून नहीं, तंत्र की विफलता है जलभराव का कारण
देश में मानसून की पहली बारिश के साथ ही कई शहरों, गांवों और कस्बों में जलभराव की समस्या गंभीर हो उठी है। हालांकि इसे प्राकृतिक आपदा मानना एक सहज प्रतिक्रिया हो सकती है, लेकिन यदि हम इसकी तह में जाएं तो स्पष्ट होता है कि यह सिर्फ मानसून की कृपा नहीं, बल्कि हमारी व्यवस्थागत विफलता का परिणाम है।
🌧️ जब वर्षा जीवन का संकट बन जाए
देश के कई हिस्सों में जहाँ कुछ हफ्ते पहले तक जल संकट छाया हुआ था, आज वही इलाके पानी में डूब चुके हैं। ऐसा नहीं है कि बारिश असामान्य रूप से अधिक हो रही है — समस्या यह है कि हम उस पानी को सम्हालने, संचय करने और उपयोगी बनाने की व्यवस्था नहीं कर पाए। यानी, जब पानी चाहिए तब नहीं मिलता और जब मिलता है, तब वह आफत बन जाता है।
🛑 जल स्रोत नहीं, संचयन केंद्र हैं नदियाँ-तालाब
वर्षा, मानसून या ग्लेशियर — यही असल में जल के स्रोत हैं। नदियाँ, तालाब, पोखर, झीलें तो सिर्फ उन स्रोतों से आए जल को सहेजने के साधन हैं। लेकिन पिछले दशकों में इन जलाशयों के अस्तित्व पर अतिक्रमण, गाद भराव और रखरखाव की उपेक्षा ने इन्हें जल-भंडार से जल-संकट के केंद्र में बदल दिया है।
🏗️ अतिक्रमण और विकास की कीमत
हमने जल विस्तार की प्राकृतिक भूमि, जल निकासी की पुरानी संरचनाओं और वर्षा जल की धारा को अनदेखा करते हुए विकास की नींव डाली है। परिणामस्वरूप बारिश का पानी बहकर जमीन में समाने की बजाय शहरों की सड़कों,बस्तियों और खेतों में भर जाता है। यह कोई प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि मानवनिर्मित संकट है।
🌿 परंपरा में समाधान
हमारे पूर्वजों ने पारंपरिक जल संचयन प्रणालियों को विकसित किया था — तालाब, कुएँ,बावड़ी,खेत तालाब आदि। हर क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थिति के अनुसार ये प्रणाली बनाई गई थी और स्थानीय समाज के जीवन का हिस्सा थीं। आज आवश्यकता है कि हम इन्हें पुनर्जीवित करें और आधुनिक तकनीक के साथ जोड़कर स्थायी जल प्रबंधन करें।
🌍 मात्र 5% भूमि पर समाधान
यदि देश की सिर्फ 5% भूमि पर 5 मीटर की औसत गहराई में वर्षा जल संचित किया जाए तो करीब 500 लाख हेक्टेयर मीटर जल संचय किया जा सकता है — यानी हर नागरिक को साल भर 100 लीटर पानी प्रतिदिन उपलब्ध कराया जा सकता है। लेकिन इसके लिए आवश्यक है कि स्थानीय निकाय, शासन और समाज मिलकर प्रयास करें।
✅ अब समय आ गया…
बारिश प्रकृति की कृपा है, न कि संकट। संकट तब बनती है जब समाज और शासन उसकी तैयारी नहीं करते। जलभराव एक चेतावनी है कि हमने परंपरागत ज्ञान और जल संचयन की जिम्मेदारी को नजरअंदाज किया है। अब समय आ गया है कि मानसून को दोष देने के बजाय हम अपनी नीतियों, योजनाओं और सोच की समीक्षा करें। तभी जल संकट को अवसर में बदला जा सकेगा।
जलभराव मानसून की गलती नहीं,हमारी तैयारी और व्यवस्था की कमी का नतीजा है।



