
खरसिया। चुनावी मौसम भले ही अभी दूर हो, लेकिन नेताजी लोगों का हाजमा दुरुस्त रखने के लिए चर्चा में बने रहना ज़रूरी समझते हैं। क्षेत्र में विकास भले ही धीमी गति से हो रहा हो,लेकिन राजनीतिक बयानबाज़ी और एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप की स्पीड 5G से भी तेज़ चल रही है।
“काम कम, प्रचार ज़्यादा” नीति पर अमल करते हुए कुछ नेता अख़बारों में जगह पाने के लिए नए-नए हथकंडे अपना रहे हैं। कोई ओवर ब्रिज,सड़क निर्माण का सपना दिखा रहा है,तो कोई बिजली की समस्या पर “गंभीर चिंता” जताते हुए मोमबत्ती जलाकर फोटो खिंचवा रहा है। जनता को यह समझ नहीं आ रहा कि यह आंदोलन है या इंस्टाग्राम रील बनाने का कोई नया ट्रेंड।
इधर, विपक्ष भी चुप बैठने वालों में से नहीं है। “हमने किया, उन्होंने लूटा” जैसे बयान रोज़ की चाय में चीनी की तरह घुल चुके हैं। विकास के मुद्दे पर चर्चा कम और किसकी जुबान ज़्यादा तेज़ है,इसका मुकाबला ज़्यादा देखने को मिल रहा है।
राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि “असली नेता वही जो खबरों में बना रहे, काम करे न करे!” शायद यही कारण है कि जनता के मुद्दों से ज़्यादा,नेताओं के बयान चर्चाओं का केंद्र बने हुए हैं। खरसिया की जनता अब यह तय करने में लगी है कि अगला चुनाव ‘विकास’ पर होगा या फिर ‘विज्ञापन’ पर!
(विशेष नोट: यह समाचार पूर्णतः व्यंग्य है, इसका किसी वास्तविक घटना या व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है।)