ख़बरें जरा हटकरविविध खबरें

दादा-परदादा के समय से चली आ रही परंपरा नीम के गांव में…

अजमेर। प्रदेश में एक ऐसा गांव है, जहां की आबादी से करीब ढाई गुना नीम के पेड़ हैं। इन नीम के पेड़ों पर न तो कभी कुल्हाड़ी चली न ही काटकर नुकसान पहुंचाया गया है। पीढ़ी-दर-पीढ़ी इस परंपरा को आज भी ग्रामीण व युवा पीढ़ी निभा रही है।

Advertisement
Advertisement
Advertisement

अजमेर जिला मुख्यालय से करीब 12 किमी दूर स्थित पदमपुरा आज भी नीम के गांव के नाम से प्रसिद्ध है। जहां थर्मामीटर से तापमान मापा तो करीब 37 से 38 डिग्री आया। जबकि अजमेर शहर एवं समीपवर्ती माकड़वाली गांव में तापमान 44 डिग्री था। गांव के समाजसेवी जसराज गुर्जर ने बताया नीम के पेड़ों का सबसे बड़ा फायदा कोरोना के समय दिखा। गांव में कोई पॉजिटिव केस नहीं था न ही कोई मौत हुई थी। सरपंच संजू देवीके अनुसार गांव में वर्तमान में करीब 350 घर हैं। यहां की आबादी करीब 2000है।

भीषण गर्मी में घरों के बाहर नीम के पेड़ों के नीचे खाट लगाकर लोग विश्राम करते मिले। कुछ बच्चे पढ़ाई करते मिले। महिलाएं, ग्रामीण ही नहीं मवेशियों के लिए भी नीम के पेड़ शरणगाह नजर आए। ग्रामीण माधूराम ने बताया कि उनके दादा से पहले ही गांव में परंपरा चल रही कि न नीम का पेड़ काटेंगे, न ही छांगेंगे। शाम को नीम के पेड़ों के नीचे अलग ही गंध महसूस की जाती है।

जुर्माना : कबूतरों को खिलाओ दाना… ग्रामीणों के अनुसार अगर गांव में गलती से भी किसी ने पेड़ को काटा या कुल्हाड़ी चलाई तो मंदिर में बैठकर ग्रामीण जुर्माना तय करते हैं। जुर्माना कबूतरों के दाना-पानी का ही होता है। अगर कोई खेती की जमीन खरीदता है तो शर्त रहती है कि कोई नीम का पेड़ नहीं काटेगा।

Advertisement
Advertisement
Show More

Gopal Krishna Naik

Editor in Chief Naik News Agency Group

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!