यात्रा–वृत्तांत 2025

✍️ गोपाल कृष्ण नायक “देहाती”
2025 अब धीरे–धीरे विदा ले रहा है।
स्मृतियों की देहरी पर खड़ी अनुभूतियाँ जैसे पूछ रही हों—
“इस वर्ष 2028ने क्या दिया… और हम क्या सँजोए आगे बढ़ रहे हैं?”
जब इन प्रश्नों का उत्तर खोजने बड़ी मुश्किल से बैठता हूँ तो बीते महीनों के पन्ने अपने आप खुलते चले जाते हैं।
इस वर्ष सौभाग्य ने अनेक रूपों में मेरे जीवन को स्पर्श किया—
जगन्नाथ महाप्रभु के दर्शन का दिव्य प्रसाद,
भतीजी के विवाह के पूर्व और पश्चात महाकुंभ में दो बार पवित्र स्नान अपने अपनों के साथ का आत्म–शुद्ध अनुभव,
गंगा की गोद में तीन–चार बार समर्पित डुबकी का निर्मल आनंद,
अघोर पीठ जनसेवा अभेद्य आश्रम, पोड़ी दल्हा अकलतरा की साधन–भूमि का संग,
बाबा किन्नाराम के क्रीम कुण्ड का रहस्यमय सान्निध्य,
पूज्य कापालिक धरम रक्षित रामजी का भतिजी के विवाह में स्नेहमयी उपस्थिति,
काशी विश्वनाथ बाबा के दरबार में आत्मा का द्रवित हो उठना,
गयाजी की तपोभूमि पर पितरों का श्राद्ध–स्मरण,
और हरिद्वार के शांति कुंज में साधना का दुर्लभ सौभाग्य।
और फिर —
महादेव की अनुकम्पा से जीवन में दूसरी बार चार धाम यात्रा पूर्ण करने का वह अतुलनीय अवसर…
मानो स्वयं शिव ने मार्ग प्रशस्त कर दिया हो।
परंतु यात्रा केवल तीर्थों की ही नहीं थी—
जीवन के एक नए अध्याय की भी प्रस्तावना लिखी जा रही थी।
जिससे मैं अनभिज्ञ था
चार धाम से लौटते ही आया एक अकस्मात सड़क हादसा,
जिसने जीवन की गति थाम दी।
रीढ़ की हड्डी में चार फ्रैक्चर—
और 08 अक्टूबर से अब तक चल रहा कठोर विश्राम का तप,
मानो किसी अदृश्य तीर्थ का आरंभ हो गया हो।
दर्द था… पर धैर्य भी था।
कष्ट था… पर महादेव की करुणा का दृढ़ स्पर्श भी साथ था।
अक्सर सोचता हूँ—
यही तो जीवन का सार है:
यात्रा बाहर की हो या भीतर की,
दोनों का उद्देश्य एक ही है—
आत्मबल का संचार, विश्वास का विस्तार और अनुभवों की परिपक्वता।
और अब—

2026 का स्वागत–क्षण द्वार पर खड़ा है।
मैं तैयार हूँ—
नई ऊर्जा,नए संकल्प और नई अनुभूतियों के साथ
जीवन की अगली यात्रा लिखने के लिए…



