छत्तीसगढ़

हसदेव-अरंड के 9 कोयला खदान नीलामी के बाहर, छत्तीसगढ़ सरकार के अनुरोध को मिली कोयला मंत्रालय की स्वीकृति

छत्तीसगढ़ के 40 से अधिक नए कोयला ब्लॉकों को खनन से बाहर रखा गया

छत्तीसगढ़ के लेमरू एलिफेंट कॉरिडोर के अंतर्गत आने वाली खदानों को अनुरोध पर गैर-अधिसूचित किया गया

कोयला मंत्रालय का लक्ष्य कोयला उत्पादन में वृद्धि करना और देश की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिए कोयले की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करना है। मंत्रालय के प्रयासों के परिणामस्वरूप, पिछले पांच वर्षों के दौरान कोयले की कुल खपत में आयात का हिस्सा 26 प्रतिशत से घटकर 21 प्रतिशत हो गया। फिर भी, भारत भारी विदेशी मुद्रा खर्च करके सालाना 200 मिलियन टन (एमटी) से अधिक कोयले का आयात कर रहा है। पिछले साल, भारत ने कोयले के आयात बिल पर 3.85 लाख करोड़ रुपये से अधिक व्यय किए। भारत में कोयले का चौथा सबसे बड़ा भंडार है। इसलिए घरेलू उत्पादन को बढ़ाना युक्तिसंगत है जिससे कि आयात पर निर्भरता में कमी लाई जा सके।

देश के कोयला उत्पादक क्षेत्र वन समृद्ध भौगोलिक क्षेत्रों में स्थित हैं। भारत सरकार वनों की सुरक्षा और संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है, फिर भी अर्थव्यवस्था की आवश्यकता और ऊर्जा की मांग को ध्यान में रखते हुए, अधिक से अधिक कोयला खानों को प्रचालित किया जाना अपेक्षित है। इसके साथ-साथ कोयला मंत्रालय वनों की रक्षा के प्रति अत्यधिक सचेत है, इसलिए अपेक्षित न्यूनतम वन क्षेत्र को ही डायवर्ट किया जाता है और समाप्त हुए वन क्षेत्र के बदले दोगुने क्षेत्र में वन रोपण किया जाता है।

किसी भी कोयला खदान के प्रचालन के लिए, अन्य सांविधिक स्वीकृतियों के अतिरिक्त, आवश्यक पर्यावरणीय मंजूरी (ईसी) प्राप्त करना अनिवार्य है। यदि कोयला ब्लॉक के भाग में वन भूमि शामिल है, तो प्रचालन से पहले वन संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत अनुमोदन प्राप्त करना होगा। कोई भी स्वीकृति दी जाने से पहले सख्त दिशानिर्देश, मानदंड और उच्च बेंचमार्क का पालन किया जाना अनिवार्य हैं।

कोयला मंत्रालय ने पर्यावरण एवं वन मंत्रालय और राज्य सरकारों की अनुशंसाओं को हमेशा ध्यान में रखा है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के सुझावों की अनदेखी करके किसी कोयला खदान की नीलामी तक नहीं की गई है। उदाहरण के लिए, लेमरू एलिफेंट कॉरिडोर के अंतर्गत आने वाली कोयला खानों को गैर-अधिसूचित करने के छत्तीसगढ़ सरकार के अनुरोध को स्वीकार कर लिया गया है। कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) की कोयला खानों का भी विकास नहीं किया जा रहा है और कैप्टिव कोयला ब्लॉकों को भी नीलामी के दायरे से बाहर रखा गया है। छत्तीसगढ़ सरकार के अनुरोध पर लेमरू एलिफेंट कॉरिडोर से आगे के क्षेत्रों को भी छूट देने पर विचार किया गया है। छत्तीसगढ़ के लगभग 10 प्रतिशत आरक्षित क्षेत्र वाले 40 से अधिक नए कोयला ब्लॉकों को कोयला खनन से बाहर रखने का निर्णय लिया गया है। हसदेव-अरंड के घने कोयला क्षेत्र में आने वाली नौ कोयला खदानों को भी कोयला ब्लॉकों की नीलामी के अगले दौर के लिए बाहर रखा गया है। इसी प्रकार, तीन लिग्नाइट खानों को आगे की नीलामी प्रक्रिया से बाहर रखने के लिए तमिलनाडु सरकार के अनुरोध को भी स्वीकार कर लिया गया है। कोयला मंत्रालय के ये निर्णय स्पष्ट रूप से वन क्षेत्रों को नीलामी के तहत रखने की उद्योग की मांग के बावजूद उनकी रक्षा करने की हमारे उत्तरदायित्व को दर्शाते हैं।

मंत्रालय इस तथ्य से अवगत है कि भूमिगत कोयला खनन को बढ़ावा देने से पर्यावरण संरक्षण में सहायता मिल सकती है। तदनुसार, भूमिगत कोयला खनन को बढ़ावा देने के लिए नीति तैयार की गई है। खनिकों की निरंतर तैनाती, हाई-वॉल और लॉंग-वॉल के माध्यम से प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ावा दिया गया है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भूमिगत खानों के लिए प्रतिपूरक वनीकरण आवश्यकता से छूट की भी अनुमति प्रदान की है। निजी सेक्टर के माध्यम से खानों के प्रचालन में भूमिगत खनन में रुचि आकर्षित करने के लिए प्रोत्साहन प्रावधानों पर विचार किया जा रहा है।

कोयला मंत्रालय के मार्गदर्शन में, कोयला/लिग्नाइट सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों ने सतत और पर्यावरण के अनुकूल पहलों के लिए उल्लेखनीय प्रगति की है। विशेष रूप से, उन्होंने वित्त वर्ष 2018-19 से वित्त वर्ष 2023-24 तक लगभग 12,358 हेक्टेयर को कवर करते हुए 265 लाख से अधिक पौधे लगाकर हरित आवरण को सफलतापूर्वक बढ़ाया है। सिर्फ वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान ही 2,734 हेक्टेयर में 51 लाख पौधे लगाकर अपने लक्ष्य को पार कर लिया। उन्होंने पिछले पांच वर्षों में पंद्रह इको-पार्क और खान पर्यटन स्थल भी विकसित किए हैं, जिनमें से सात को स्थानीय पर्यटन सर्किट में समेकित किया गया है, और टिकाऊ पर्यटन तथा पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए कोयला खनन क्षेत्रों में 19 और को समेकित किए योजना है। वास्तव में, केन्द्रीय सरकारी उद्यमों द्वारा गैर-वन कोयला निकाली जा चुकी भूमि पर किए गए वनीकरण को अब भावी प्रतिपूरक वनीकरण के लिए भूमि बैंक के रूप में उपयोग करने की अनुमति दी गई है, तदनुसार प्रत्यायित प्रतिपूरक वनीकरण के लिए 2800 हेक्टेयर से अधिक वनीकृत भूमि प्रस्तुत की गई है।

कोयला मंत्रालय का उद्देश्य पर्यावरण को बिना गंभीर नुकसान पहुंचाए, देश में कोयला उत्पादन को इष्टतम करना है। पर्यावरण अनुकूल प्रथाओं को अपनाकर और घने वन क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली खदानों को छोड़कर, कोयला मंत्रालय ने पर्यावरण के संरक्षण और देश में कोयला उत्पादन बढ़ाने के बीच सही संतुलन बनाने के माध्‍यम से कोयला खानों के आवंटन के लिए एक पारदर्शी और निष्पक्ष प्रक्रिया अपनाई है।

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Gopal Krishna Naik

Editor in Chief Naik News Agency Group

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