कर्मागढ़ में मां मानकेश्वरी देवी चैतन्य रूप में…

माँ मानकेश्वरी मंदिर कर्मागढ़
में परंपरा बकरा बलि पूजा,शरद पूर्णिमा महोत्सव
तमनार @ दुलेन्द्र पटेल
केलो बनांचल आदिवासी बाहुल्य तहसील तमनार के पहाड़ो से घिरा ग्राम करमागढ़ में शरद पूर्णिमा पर माँ मानकेश्वरी मंदिर में राज के राज्य होने के समय से चला आ रहा परम्परा रीति नीति के अनुरूप पूजा पाठ करते आ रहें हैं शरद पूर्णिमा को बली पूजा होता है फिर बकरे की बली दिया जाता है।रियासत कालीन देवी मां मानकेश्वरी देवी के पूजा की परंपरा कर्मागढ़ में हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी किया गया है। इस वर्ष 45 बकरो की बलि दी गई।यहां राजघराने की कुल देवी मां की पूजा हर वर्ष शरद पूर्णिमा के दिन की जाती है।इस वर्ष भी रविवार को यहां शरद पूर्णिमा महोत्सव मनाया गया और बली पूजा किया गया। जिसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंच कर माता के चरणो में मत्था टेका और आर्शीवाद लिया। रविवार की दोपहर तीन बजे से बली पूजा का कार्यक्रम शुरू किया गया। पूजा के बाद बैगा के शरीर भीतर जब माता का प्रभाव हुआ, तो भक्त ने बकरों की बली दिया।इसके बाद बैगा बकरों का रक्तपान करने लगे। इस पूरे पूजा को देखने वाले श्रद्धालुओं के रोम-रोम खड़े हो गए। दोपहर से शुरू हुई पूजा देर शाम तक चली। इसके बाद सभी भक्तों को प्रसाद वितरण किया गया। ऐसी मान्यता है कि मंदिर में रायगढ़ राजपरिवार की कुलदेवी मां मानकेश्वरी देवी आज भी अपने चैतन्य रूप में विराजित हैं और माता समय-समय पर अपने भक्तों को अपनी शक्ति से अवगत कराती है।शनिवार की मध्यरात्रि को बैगा द्वारा गोंडवाना परंपरा के अनुरूप गुप्त रहस्यमय पूजा मंदिर में किया गया। इस दौरान राजघराने के भी सदस्य मौजूद थे। पूजा से पहले गांव में मुनादी कराई गई और किसी को भी घर से बाहर नहीं निकलने दिए जाने की परांपरा है। मान्यता है कि इस दौरान माता को प्रवेश होता है।इस वर्ष 45 बकरों की बलि दी गई बलि के पश्चात बकरे का सर जब धड से अलग हो जाता है उसके पश्चात बैगा द्वारा खुन को पिया जाता है।
रियासतकालीन परंपरा महोत्सव
ग्रामीणों ने बताया कि लगभग 600 वर्ष पूर्व जब एक पराजित राजा जो हिमगिरि (ओडिशा )रियासत का था उसे देश निकाला देकर बेडियो से बांधकर जंगल में छोड़ दिया गया ।राजा जंगल जंगल भटकता और वह कर्मागढ़ में पहुंच गया तब उन्हें देवी ने दर्शन देकर बंधन मुक्त किया इस तरह एक घटना सन 1780 में तब हुई थी जब ईस्ट इंडिया कंपनी अंग्रेज ने एक तरह से कठोर (लगान) कर के लिए रायगढ़ और हिमगिर पर वसूली के लिए आक्रमण कर दिया। तब यह युद्ध कर्मागढ के जंगली मैदान पर हुआ था इसी दौरान जंगल से मधुमक्खियों जंगली कीटों का मंदिर की ओर से अंग्रेज पर हुआ ।इस दौरान अंग्रेज पराजित होकर उन्होंने भविष्य में रायगढ़ स्टेट को स्वतंत्र घोषित कर दिया इस कारण श्रद्धालु यहां दुर दुर से अपनी इच्छा पूर्ति के लिए आते हैं और माता से मनचाहा वरदान अपनी झोली मे आशीर्वाद के रुप में पाकर खुशी खुशी लौट जाते हैं।रविवार की शाम बलि पूजा के पश्चात कार्यक्रम रात्रि कीर्तन भजन,आर्केस्टा,नाटक कार्यक्रम आयोजित किया जाता है।
डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं,अंध विश्वास को बढ़ावा देना अपना लक्ष्य नहीं है ।