पिता की पते पर एक पाती…

“पिता की पते पर एक पाती”
जीवन संघर्ष के तवे पर रोटी सेंकता पिता
सपने अपने बांध पोटली रोज फेंकता पिता
बचपन की उंगली थामकर चलता पिता
बच्चे की किलकारी से दमक उठता पिता
निश्छल मुस्कान देखने घोड़ा बनता पिता
बच्चे की जिद्द के आगे झुक जाता पिता
काँधे पर बिठाकर दुनिया दिखाता पिता
मिट्टी के खिलौनो से खुशी घर लाता पिता
बड़ा बनाने बच्चे को बौना बन जाता पिता
उजाला करने राह उसके जल जाता पिता
दुनियादारी की उलझने रोज झेलता पिता
सुबह से शाम तक अविराम पीसता पिता
जीवन संघर्ष के तवे पर रोटी सेंकता पिता
सपने अपने बांध पोटली रोज फेंकता पिता
ब्याह करते बच्चों के थककर चूर होता पिता
बंटवारा उनके करके खुद ही बंट जाता पिता
सुबह यहां तो शाम वहां दिन गुजारता पिता
समाज की परंपरा निभाते निब जाता पिता
बुढ़ापे की लाठी ढूंढने फिर झुंझलाता पिता
कांधे जिसे बिठाया उसी से डर जाता पिता
पोते-पोती के निवाले देख ललचाता पिता
नम आंखों से फिर भी आशीष देता पिता
घट घट कर घूंट घूंट करके विष पीता पिता
जीवन संघर्ष के तवे पर रोटी सेंकता पिता
जीवन संघर्ष के तवे पर रोटी सेंकता पिता