विवाह में अपव्यय: अपनी सन्तान के साथ विश्वासघात
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☆विवाह में अपव्यय: अपनी सन्तान के साथ विश्वासघात☆
शिव-शक्ति स्वरूप वर-वधू का विवाह आदर्श आदर्श होता है। सदाचार से जीवन की आवश्यकता ग्रहण करने की यह वैवाहिक परम्परा आदि काल से चली आ रही है।
विवाह में कुप्रथाओं के कारण जो क्षोभ उत्पन्न हो रहा है, वह पुरानी मान्यताओं को मृतप्राय बनाता जा रहा है। अब हमें सज्जनों द्वारा दिखायी गयी पगडण्डियों पर चलने की आवश्यकता आ पड़ी है।
विवहोपलक्ष्य में अपव्यय को भविष्य की चेतावनी समझनी चाहिए। धन-संपत्ति बंटते-बंटते घटती जा रही है। हमारी जनसंख्या तो बढ़ती जा रही है किन्तु भूमि नहीं बढ़ती। हम अपव्यय बढ़ाकर अपनी संतान के साथ विश्वासघात कर रहे हैं। हमारा उपार्जित धन अपव्यय के लिए नहीं है। एक अच्छे मनुष्य की तरह जीवन-यापन में व्यय सार्थक है।
जो व्यक्ति प्रशंसा कराकर या करके अपव्यय कराते हैं वे ही बाद में उस अपव्यय से उत्पन्न अर्थाभाव का उपहास भी करते हैं। आप समझदार हैं। इसे समझें। इस पहलू को ध्यान में रखकर अपव्यय को रोकना चाहिए। कुरीतियों के प्रति उदासीन होना चाहिए।
ऐसा न समझें कि धन-सम्पत्ति वाले सुखी हैं। जो अन्याय से उपार्जन करता है, वह सुखी नहीं रह सकता। जो श्रम से धनोपार्जन करता है वह अपने धन-वैभव का प्रदर्शन नहीं करता। वह उदार होता है। सदुपयोग में उदारता का परिचय देता है। विवाह-बारात में धूमधाम से सजाकर अधिकाधिक संख्या में बारातियों को ले जाना धर्म-ग्रन्थों के निर्देशों का उल्लंघन है। मनु ने मनुस्मृति में कहा है कि पांच से अधिक बाराती न हों। आप सोचें कि यदि आप किसी के दरवाजा पर सौ-पच्चास बारातियों के साथ बैठ जायेंगे तो वह बेचारा क्या अतिथि-सत्कार कर सकेगा?
मैं वर-वधू को आशीर्वाद देता हूं कि वे देश के जाने-माने नागरिक बनें। वे सामाजिक दायित्वों का निर्वाह करते हुए अपना जीवन निर्वाह करें।
।।प, पू, अघोरेश्वर।।
।।।अघोर पीठ जन सेवा अभेद आश्रम ट्रस्ट।।।
।।।पोंड़ी दल्हा अकलतरा।।।