केलो का अस्तित्व खतरे में, आओ मिलकर बचा लें-केलो कपूत शिव राजपूत

केलो कपूत शिव राजपूत की चिट्ठी केलो प्रेमियों के नाम
केलो का अस्तित्व खतरे में, आओ मिलकर बचा लें
शिव राजपूत- केलो आई माफ करना पिछले 25 वर्षों से चल रहे कालम का शीर्षक बदलकर तेरे चाहने वालों को खत लिख रहा हूँ-
“होही तेला होन दे केलो ल बोहान दे”
बड़े अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है की केलो मैय्या का अस्तित्व खतरे में आ रहा है। प्रदूषण के मार से कराहती केलो के प्रवाह में केलो नदी को पूरित करने वाले तमाम जलस्रोत सूखते जा रहे हैं। जिसमें उदगम स्थल ग्राम पहार लुड़ेग (लैलूंगा) का मुख्य जलस्रोत सूखने के कगार पर है। यदि केलो को पानी देने वाले क्रमशः माटीपहार झरना, बजरमुड़ा, चिंगारी नाला, गंजपुर, समलाई खोल, झरन, घसनिन ढोढ़ी, गेरवानी नाला, अट्ठारह नाला, लक्षमण झरना, सीता झरन, छेरी गोदरी, घटेश्वरी झरन, सलिहारी वन गंगा, पाझर नाला, रेगड़ा नाला, सपनाई नरवा आदि सभी प्राकृतिक जलस्रोतों का उद्धार नहीं हुआ तो केलो का बचना मुश्किल होगा।
इस बुरी खबर के साथ एक शुभ समाचार भी देना चाहता हूँ और साधुवाद भी देना चाहता हूँ जिसमें रायगढ़ कलेक्टर भीम सिंह ने उदगम स्थल के आस-पास हजारों की संख्या में वृक्षारोपण करवाया है। मेरे डमरुबाज पर्यावरणीय मित्र आदर्श ग्राम्य भारती वाले एल.एन.चौधरी ने वहां धार्मिक अनुष्ठान करते हुए केलो के प्रति आस्था जागृत करी। इसी क्रम में तमनार के समाजसेवी गोकुल पटनायक के पुत्र संजय पटनायक के पहल और सार्वजनिक सहयोग से केलो उदगम स्थल में शिव मंदिर स्थापित किया गया।
जिसका इसी महाशिवरात्रि में 11.03.2021. को त्रिदिवसीय प्राण-प्रतिष्ठा महोत्सव मनाया गया जिसमें शामिल होकर लौटने के बाद ये चिट्ठी लिख रहा हूँ।
शेष अगली कड़ी में।