भुगतान के लिए सैकड़ों हमाल बैठे धरने पर…सड़क के दोनों ओर गाडिय़ों की लगी लंबी लाइन

लोहरसिंघ धान संग्रहण केंद्र एक बार फिर सुर्खियों में

रायगढ़। लोहरसिंघ धान संग्रहण केंद्र एक बार फिर सुर्खियों में आया है। इस बार सैकड़ों की तादाद में हमाल धरने पर बैठे हैं। इस केंद्र में करीब 300 की तादाद में हमाल और हमाल सरदार हैं। उनका कहना है कि सरकार द्वारा जारी 5.60 प्रति बोरे की दर से भुगतान किया जा रहा है। जिसमें उनकी पीएफ ईएसआई बोनस ग्रेजुएटी सब कुछ इसी पैसे में समाहित है। इसके बावजूद उन्हें पहले दिए गए मजदूरी भुगतान से भी कम मजदूरी दी जा रही है। उन्होंने मांग की है कि उन्हें पहले की गई भुगतान दर में बढ़ोतरी कर भुगतान किया जाए। इस विषय पर रायगढ़ कलेक्टर और रायगढ़ विधायक से भी मिलने वाले हैं।
लोहरसिंघ धान संग्रहण केंद्र में अभी 2020-21 का धान उठाव होना है। एक तो इस संग्रहण केंद्र की धान उठाव व्यवस्था पहले से ही कटघरे में है। संग्रहण केंद्र से लेकर सड़क के दोनों ओर बड़ी-बड़ी ट्रकों की लंबी लाइनें खड़ी है। इस धान संग्रहण केंद्र में प्रतिदिन धान के लिए सौ से सवा सौ गाडिय़ां प्रतिदिन आती है। वैसे इस केंद्र की कैपेसिटी लगभग 100 गाड़ी प्रतिदिन की है। मगर सिर्फ 45 से 50 गाडिय़ों का ही नंबर लग पाता है। वहां का आलम यह है कि गाड़ी अगर 4 दिन में भी लोड हो जाए तो इसे किस्मत ही माना जाए। देखा जाये उसका सबसे ज्यादा नुकसान निजी वाहन मालिकों को होता है। गाडिय़ां लोडिंग के इंतजार में तीन से चार दिन तक सड़क पर ही खड़ी राहती हैं। ड्राइवर भत्ता और टैक्स मिलाकर रोजाना होने कम से कम 1000 का नुकसान होता है। राइस मिल वाले इस हाल्टिंग की रकम का भुगतान नहीं करते वह सिर्फ गाड़ी भाड़ा ही देते हैं। इतना ही नहीं कभी-कभी ज्यादा देर तक गाड़ी लोड ना होने के कारण अपनी बुकिंग भी कैंसिल कर देते हैं।
वहीं दूसरी तरफ राइस मिलरो द्वारा जल्दी से धान उठाने की होड़ लगी हुई है क्योंकि आखिरी में बचा कुचा खराब माल लेने से अच्छा है कि पहले आकर अच्छा माल ले लिया जाए। इसके लिए कभी-कभी होता यह है कि राइस मिलरो के द्वारा ज्यादा पैसे देकर वाहन लगवा लिए जाते हैं। ज्यादा से ज्यादा और जल्दी से जल्दी धान का उठाव हो। इसके लिए प्रबंधन को उपाए करने के बजाए विपणन प्रबंधक द्वारा ऐसा आदेश जारी कर दिया गया। जिसके कारण वाहन मालिकों में रोष दिखाई दे रहा है। प्रबंधक द्वारा भाड़े की कीमत तय कर दी है और इससे ज्यादा कीमत पर भाड़ा लेने पर ब्लैक लिस्ट करने का बात कही जा रही है। मगर कहीं हाल्टिंग के विषय पर कुछ नहीं कहा गया। कहे भी कैसे ? कोई भला अपनी गलती थोड़ी उजागर करता है। गाड़ी लोड होने में देर होने का असल जिम्मेदार कौन है, जिसे कारण सबको नुकसान झेलना पड़ रहा है। यह भी एक यक्ष प्रश्न है?
इस पूरे मामले को देखा जाए तो एक तरफ प्रबंधन से लोडिंग अनलोडिंग करने वाले हमाल नाराज होकर आंदोलन पर बैठे हैं तो दूसरी तरफ प्रबंधन उठाव की क्षमता के अनुसार भी काम नहीं कर पा रहा है। क्षमता से सिर्फ 50टन ही गाडिय़ां लोड हो पा रही है जिसके कारण दिन-ब-दिन गाडिय़ों को लोड होने में एक लंबा समय लग रहा है। कई अधिकारी इसमें तहसीलदार एसडीएम तक शामिल है, इस केंद्र पर जायजा लेने के लिए आए और चले गए, मगर स्थिति आज भी वही जस की तस है! प्रबंधन को चाहिए था कि प्रतिदिन क्षमता के अनुसार अधिक से अधिक गाडिय़ां लोड हो सके इसका प्रबंध किया जाए अगर मैन पावर की कमी हो रही हो तो मैनपॉवर और की आपूर्ति अन्य केंद्रों से की जाए ताकि जल्दी से जल्दी धान का उठाव हो और सरकार, राइस मिल और वाहन मालिक किसी को भी किसी तरह का नुकसान ना हो। ऐसा होना कोई नई बात नहीं है पहले भी मंडियों में ऐसा हो चुका है।
व्यवस्था सुधारने के बजाए प्रबंधन द्वारा सिर्फ गाड़ी मालिकों और हमालो पर ठीकरा फोड़ कर पल्ला झाड़ लिया गया है। आज हमाल संघ की हड़ताल देखने को मिल रहा है अगर इसी तरह प्रबंधन का रवैया रहा तो गाड़ी और मिल मालिक भी एक दिन सड़क पर जरूर उतरेंगे और स्थिति आज से भी कहीं ज्यादा गयी-बीती होगी।



