
खरसिया। JSW कंपनी प्रबंधन नहरपाली और क्षेत्र के स्थानीय लोगों के बीच चल रही तनातनी अब एक गंभीर मोड़ पर आ चुकी है। समय-समय पर दोनों पक्षों के बीच मतभेद सुलझाने के लिए प्रशासन और पुलिस के द्वारा कई बार पहल की गई, लेकिन सभी प्रयास विफल साबित हुए हैं।
मीडिया सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार,स्थानीय लोगों की शिकायतें लगातार अनदेखी की जा रही हैं। वहीं, कंपनी प्रबंधन पर आरोप है कि वह क्षेत्र के भू अर्जन से भू-स्वामी को नजर अंदाज कर रही है और चहेते ठेकेदारों को लाभ पहुंचाकर अपने आर्थिक हित साधने में लगी है।
कठपुतली बनते जा रहे हैं राजनैतिक पंडित
स्थानीय लोगों का आरोप है कि कुछ प्रभावशाली राजनैतिक चेहरे और स्वयंभू जनप्रतिनिधि कंपनी और प्रशासन के बीच मध्यस्थता का मुखौटा ओढ़कर असल में अपने हित साध रहे हैं। इनका उद्देश्य न तो जनता की भलाई है और न ही क्षेत्रवासियों के विकास की चिंता। बल्कि ये लोग कंपनी से ठेकेदारी,आपूर्ति व रोजगार के नाम पर व्यक्तिगत लाभ लेने में लगे हुए हैं।
भू-विस्थापितों के अधिकारों का हनन
कंपनी द्वारा अधिग्रहित की गई ज़मीन के बदले रोजगार,मुआवजा और पुनर्वास का मुद्दा अब भी अधर में लटका हुआ है। भू-विस्थापित परिवारों का कहना है कि कंपनी ने वादा किया था कि प्रत्येक परिवार को रोजगार दिया जाएगा,लेकिन वर्षों बाद भी न रोजगार मिला न मुआवजा अपेक्षा अनुरूप पूरा नहीं किया । वहीं,दबे जुबान कंपनी का दावा है कि वह सभी वैधानिक प्रक्रियाओं का पालन कर रही है।
प्रशासन की भूमिका पर उठे सवाल
स्थानीय प्रशासन की भूमिका पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि प्रशासन कंपनी के दबाव में कार्य कर रहा है और क्षेत्रीय समस्याओं, वाहनों के आवाजाही से पर्यावरण की अनदेखी कर रहा है। कई बार ज्ञापन सौंपे गए,धरना-प्रदर्शन किए गए,लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है।
क्या है आगे का रास्ता?
सवाल यह है कि आखिर समाधान कैसे निकले? क्या प्रशासन निष्पक्षता से दोनों पक्षों के बीच कोई स्थायी समझौता करवा पाएगा? या फिर यह विवाद और गहराता जाएगा और क्षेत्र में अशांति का माहौल बनेगा?
स्थिति को देखते हुए जरूरत इस बात की है कि सरकार,प्रशासन, कंपनी प्रबंधन और स्थानीय जनप्रतिनिधि सभी मिलकर पारदर्शी ढंग से बातचीत करें और भू-विस्थापितों को उनका न्यायपूर्ण हक दिलाने अपनी नैतिक जिम्मेदारी निभाएं।