केंद्र और माइनिंग कंपनियों को SC से झटका,राज्यों के पास ही रहेगा खनिज संपदा पर टैक्स लगाने का अधिकार
सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि 25 जुलाई के आदेश को आगामी प्रभाव से लागू करने की दलील खारिज की जाती है।
उच्चतम न्यायालय ने 25 जुलाई के अपने फैसले को आगामी प्रभाव से लागू करने की केंद्र की याचिका बुधवार को खारिज कर दी जिसमें राज्यों के पास खदानों और खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने के विधायी अधिकार को बरकरार रखा गया था। इसके साथ ही न्यायालय ने राज्यों को एक अप्रैल 2005 के बाद से रॉयल्टी वसूल करने की अनुमति दे दी।
भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि 25 जुलाई के आदेश को आगामी प्रभाव से लागू करने की दलील खारिज की जाती है। पीठ में न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय,न्यायमूर्ति अभय एस ओका, न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा, न्यायमूर्ति उज्जल भूइयां, न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह भी शामिल थे।
पीठ ने कहा कि हालांकि, पिछले बकाये के भुगतान पर कुछ शर्तें होंगी। उसने कहा कि केंद्र तथा खनन कंपनियां खनिज संपन्न राज्यों को बकाये का भुगतान अगले 12 वर्ष में क्रमबद्ध तरीके से कर सकती हैं। बहरहाल, पीठ ने राज्यों को बकाये के भुगतान पर किसी प्रकार का जुर्माना न लगाने का निर्देश दिया।
केंद्र ने खनिज संपन्न राज्यों को 1989 से खनिजों और खनिज युक्त भूमि पर लगाई गई रॉयल्टी उन्हें वापस करने की मांग का विरोध करते हुए कहा था कि इसका असर नागरिकों पर पड़ेगा और प्रारंभिक अनुमान के अनुसार, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों (पीएसयू) को अपने खजाने से 70,000 करोड़ रुपये निकालने पड़ेंगे।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि इस फैसले पर पीठ के आठ न्यायाधीश हस्ताक्षर करेंगे, जिन्होंने बहुमत से 25 जुलाई का फैसला दिया था जिसमें राज्यों को खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने का विधायी अधिकार दिया गया था। उन्होंने कहा कि न्यायमूर्ति नागरत्ना बुधवार के फैसले पर हस्ताक्षर नहीं करेंगी क्योंकि उन्होंने 25 जुलाई को अलग फैसला दिया था।
पीठ ने 25 जुलाई को 8:1 के बहुमत वाले फैसले में कहा था कि राज्यों के पास खदानों और खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने का विधायी अधिकार है और खनिजों पर दी जाने वाली रॉयल्टी कोई कर नहीं है।
इस फैसले ने 1989 के उस निर्णय को पलट दिया था जिसमें कहा गया था कि केवल केंद्र के पास खनिजों और खनिज युक्त भूमि पर रॉयल्टी लगाने का अधिकार है। इसके बाद कुछ विपक्षी दल शासित खनिज संपन्न राज्यों ने 1989 के फैसले के बाद से केंद्र द्वारा लगाई गई रॉयल्टी और खनन कंपनियों से लिए गए करों की वापसी की मांग की। रॉयल्टी वापस करने के मामले पर 31 जुलाई को सुनवाई हुई और फैसला सुरक्षित रख लिया गया था।
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