मुसाफिर हूँ यारों…
विलम्ब के लिए क्षमा चाहते हुए यात्रा के यादगार पल कि बढ़ते हुए…14 अक्टूबर 2023की सुबह 03 बजे मैं सोकर उठा। पहले पहल तो यकीन ही नहीं हुआ कि मैं केदारनाथ धाम में हूं। सोचता रहा कि क्या बाहर इतनी ठंड और बारिश हो रही है।
कल मैंने,श्रीमती माया नायक,शांता दीदी- सुदेश पटेल जीजा, श्रीमती राधिका नायक सास- साकेत नायक ससुर और श्रीमती रमशीला बई- रामेश्वर पटेल बोबा के साथ केदारनाथ धाम में रात्रि विश्राम पश्चात अलसुबह कड़कड़ाती ठंड में पवन हंस के हेलिकॉप्टर सुबह का पहली वापसी भी की। केदारनाथ बाबा के दर्शन से मन प्रफुल्लित था,मैंने हिमालय में पहले कभी रात्रि विश्राम नहीं किया था और न ही कार्यक्रम में था महादेव के इच्छा के आगे हम नतमस्तक हुए।
13 अक्टूबर के दोपहर में अचानक मौसम ने करवट ली और देखते देखते हेली सेवाएं बंद हो चला,यात्रा में जितना थक सकते थे,थक गये थे। मुझे उम्मीद नहीं थी कि सभी थक सकते है।
कल सोते समय एक बार मन में आया था कि सुबह पहली हेलिकॉप्टर में केदारनाथ धाम से फाटा को निकल पडेंगे। लेकिन जब सुबह 03बजे आंख खुली तो घुमक्कडी कीडा भी जाग गया था।
सोचा कि फाटा वापसी से हमारे अगले एक दिन खराब हो जायेंगे क्योंकि हमारे अन्य साथी पैदल यात्रा में थे उन्हें भी वापस आने में समय लगना था।
केदारनाथ से पहली हेलिकॉप्टर में फाटा पहुंच कर हेलीपैड के पास स्थित चाय टपरी में आकर मुंह धो कर चाय पानी किए तब तक हमारी श्रीमती जी अपने माता-पिता को केदारनाथ धाम दर्शन यात्रा में जीवन के पहली हेलिकॉप्टर यात्रा पूर्ण कराते हुए फाटा पवन हंस हेलीपैड पहुंचे,
हमारी शांता दीदी हमारे नाना स्व जन्मेजय कोटमी के जैसे ही समय की पाबंद है बस के अन्य साथीयों को इन्तज़ार फाटा में करने के बजाय सोन प्रयाग बस के पास पहुंच अपने साथ केदारनाथ मंदिर लेकर गए गरम कपड़ा छोड़ते हुए सीधा त्रियुगी नारायण मंदिर जाने का प्लान कर ली। रानीगुढीया बोबा यानी पाई-पाई का हिसाब-किताब रखने वाले रामेश्वर पटेल बोबा को बताएं तो बई-बोबा मुझसे भी पहले तैयार हो गए। हालांकि कल केदारनाथ में रात्रि विश्राम समय बई को बुखार आ गया था और फिर भी जाने के तैयार थी।
किंवदंती को बताते …
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी पार्वती हिमावत या हिमवान की बेटी थीं – हिमालय की पहचान। वह सती का पुनर्जन्म था , जो शिव की पहली पत्नी थीं – जिनके पिता ने शिव का अपमान किया था। पार्वती ने शुरू में अपनी सुंदरता से शिव को लुभाने की कोशिश की, लेकिन असफल रही। अंत में, उसने गौरी कुंड में कठोर तपस्या करके शिव को जीत लिया , जो कि त्रियुगीनारायण से 5 किलोमीटर (3.1 मील) दूर है। त्रिगुणालय मंदिर जाने वाले तीर्थयात्री गौरी कुंड मंदिर भी जाते हैं, जो पार्वती को समर्पित है, जो केदारनाथ मंदिर के लिए ट्रेक का आधार शिविर है । पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि शिव ने गुप्तकाशी में पार्वती को प्रस्ताव दिया था, इससे पहले कि वे मंदाकिनी और सोन-गंगा नदियों के संगम पर स्थित छोटे से त्रिवुगीनारायण गाँव में शादी कर लें ।
माना जाता है कि त्रियुगीनारायण को हिमावत की राजधानी माना जाता है। यह शिव और पार्वती, की दिव्य शादी के दौरान का स्थल था सत्य युग , पवित्र अग्नि की उपस्थिति में देखा है कि अभी भी मंदिर के सामने एक सदा जलता हवान या अग्नि कुंड, एक चार कोनों चिमनी जमीन पर। विष्णु ने शादी को औपचारिक रूप दिया और समारोहों में पार्वती के भाई के रूप में काम किया, जबकि निर्माता-देवता ब्रह्मा ने शादी के पुजारी के रूप में काम किया, जो उस समय के सभी ऋषियों द्वारा देखा गया था। मंदिर के सामने शादी का सही स्थान ब्रह्म शिला नामक एक पत्थर से चिह्नित है। इस स्थान की महानता को एक पुराण-पुराण में भी दर्ज किया गया है(एक तीर्थस्थल के लिए विशिष्ट शास्त्र)। शास्त्र के अनुसार, इस मंदिर में आने वाले तीर्थयात्री जलती हुई आग से राख को पवित्र मानते हैं और इसे अपने साथ ले जाते हैं। यह भी माना जाता है कि इस आग से होने वाली राख को संयुग्मन आनंद को बढ़ावा देना चाहिए।
माना जाता है कि विवाह समारोह से पहले देवताओं ने चार कुंड या छोटे तालाबों में स्नान किया है, जैसे कि रुद्र -कुंड, विष्णु-कुंड, सरस्वती-कुंड और ब्रह्मा -कुंड। तीनों कुंडों में प्रवाह सरस्वती -कुंड से है, जो कि पौराणिक कथाओं के अनुसार – विष्णु की नाभि से उत्पन्न हुआ है। इसलिए, इन कुंडों के पानी को बांझपन का इलाज माना जाता है। हवाना-कुंड से राख संयुग्मक आनंद को बढ़ावा देने वाली है।
हरिद्वार के पास कनखल में सती काण्ड होने के बाद अगला जन्म राजा हिमालय के यहां लिया गया। पर्वत पुत्री होने के कारण नाम रखा गया- पार्वती। जब पार्वती बडी हो गई तो शिवजी से उनका विवाह यही पर हुआ था। विष्णुजी को साक्षी बनाया गया था इसलिये मन्दिर में विष्णु की भी पूजा होती है।
त्रियुगी नारायण जाने के कई रास्ते हैं लेकिन गौरीकुण्ड से दो ही रास्ते हैं। गौरीकुण्ड से छह किलोमीटर गुप्तकाशी की ओर सोनप्रयाग आता है। यहां से एक सडक भी त्रियुगी नारायण जाती है जो 12-13 किलोमीटर है। इसके अलावा एक पैदल रास्ता भी है। पैदल रास्ते से 06-07 किलोमीटर है।
परन्तु यात्रा में हुए थकान के वजह से हमने विचार किया कि सड़क वाले रास्ते पर बोलेरो से चलेंगे, सोनप्रयाग पार्किंग से बोलेरो लेकर निकल चलें,रास्ता घने जंगल से गुजरकर जाता है लेकिन डर नहीं लगा।
त्रियुगी नारायण में एक मजेदार घटना घटी। मैं श्रीमति बैठे चाय पी रहे थे। बराबर में ही एक प्राइमरी स्कूल था। छुट्टी होने को थी तो सभी बच्चे जोर-जोर से लय-ताल मिलाकर पहाडे रट रहे थे। फिर त्रियुगी नारायण का इतनी दूर होना भी सिद्धान्त के मन में था। बोला कि इन बच्चों का फ्यूचर क्या होगा।
खैर, हमारी बातें बढती रही। चाय वाला पचासेक साल का आदमी था। उसने पूछा- आप कहां से आये हैं?
– छत्तीसगढ़ से।
– छत्तीसगढ़ में कहां से?
यही सुनकर मेरा दिमाग चौकस हो गया। हिमालय के इस दुर्गम इलाके का रहने वाला एक चाय वाला पूछ रहा है कि छत्तीसगढ़ में कहां से। उसका उत्तर बताने से पहले मैंने उससे प्रतिप्रश्न किया- आप पहले फौज में थे ना? आपकी तैनाती छत्तीसगढ़ में भी रही है।
– हां। लेकिन आपको कैसे पता?
– सीधी सी बात है। यहां इतनी दूर का बन्दा पूछे कि छत्तीसगढ़ में कहां से तो इसका अर्थ यही है कि आपने कुछ दिन या महीने छत्तीसगढ़ में गुजारे हैं और एक फौजी ही ऐसा करने की प्राथमिकता रखता है।
अब मैंने श्रीमती से कहा- हां, इनसे बात करें।
उनसे बात करने पर जो जानकारी मिली वो इस प्रकार है:
इस गांव में लगभग 300 परिवार हैं। दसवीं तक का स्कूल है। आगे पढना है तो सोनप्रयाग या गुप्तकाशी जाना पडेगा। ग्रेजुएशन या इंजीनियरिंग करनी है तो रुद्रप्रयाग और श्रीनगर हैं। इस गांव में सभी परिवारों में सरकारी नौकरी पेशे वाले लोग हैं। ज्यादातर फौजी हैं, कुछ प्रादेशिक सेवाओं में हैं। दर्जन भर के करीब बच्चे रुद्रप्रयाग में पढते हैं और इतने ही श्रीनगर में। इसका मतलब है कि वे ग्रेजुएशन या इंजीनियरिंग कर रहे हैं।
यह सुनते ही सामान्य ज्ञान और इन लोगों के प्रति जो आस्था बढी वो गौर करने वाली थी।
वाकई, हम चाहेंगे कि अगला जन्म हो तो औघड़ दानी महादेव के आस-पास ऐसे हिमालय में हो..इस जन्म में तो हमारे बस का नहीं..देख,सुन,समझ,पढ़कर ही आनन्द लेते रहेंगे…