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दर्द का अहसास हो तो धरती पुत्र को समय रहते मौत के मुंह में जाने से बच लें…

राइस मिल उगल रही ‘मौत’ की हवा जहरीली फिजा परोस रही बीमारी,लोगों के सुनने वाला,अफसरों की खामोशी से कहीं थम न जाएं सांसें…

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पीड़ित किसान @पर्यावरण विभाग की अनदेखी कहें या लापरवाही का नमूना ? वायु प्रदुषण हर दिन मौत की दहलीज के करीब लोगों को पहुंचा रहा है. क्षेत्र की फिजा में जहरीली वायु प्रदुषण को रोकने के लिए शिकायतों का मुद्दा लगातार चुस्त है, लेकिन अधिकारियों की कार्यवाही सुस्त है. राइस मिल ‘मौत’ की हवा उगल रही है, इससे फिजा जहरीली हो रही है. इलाके को बीमारियां जकड़ रही हैं. इस मामले में ग्रामीणों की जिम्मेदार अधिकारी नहीं सुन रहे हैं. ऐसे में लोगों में घबराहट है कि कहीं ये स्लो पॉइजन से सांसें न थम जाएं.

असली फोटो होने की बातें कह रहा पीड़ित किसान

दरअसल, क्षेत्र की फिजाओ में इन दिनों मौत का स्लो पॉइज़न खुली हवाओं में तेजी से घुल रहा है, जो इलाके को जहरीला बना रहा है. ये स्लो पॉइज़न इतना खतरनाक है कि कई लोगों को गंभीर बीमारी का शिकार बना रहा है,तो वहीं ना जानें ये जहरीली हवा ने कितनों को मौत की नींद सुला चुकी है. यूं कहें कि और कितनों की जान लेने पर आतुर है.इसका अंजादा भी नहीं लगाया जा सकता है.

असली नहीं है फोटो…

ये इसलिए कह रहे हैं कि हवा में फैल रही इस बीमारी को रोकने के लिए स्थानीय लोगों ने शासन / प्रशासन को सैकड़ों चिट्ठी लिखकर पत्राचार कर चुके हैं. किन्तु आवेदनों की स्थितियां लगभग आज भी वही है. समस्या आज की स्थिति में अधिक भयावह है. लिहाजा समस्या से तत्काल राहत पाने के लिए पर्यावरण विभाग और अन्य विभागों की ओर से मांग भी कर रहे हैं.

उनकी इस शिकायत और मांग पर ना तो अधिकारी कार्यवाही करते हैं और ना ही कोई असर हो पाया है. तो ऐसे में क्या कहें कि शासन प्रशासन हमारी जान बूझ कर नहीं सुन रहा है या फिर किस दबाव या मजबूरी में सुनना नहीं चाहते हैं. इसका बड़ा उदाहरण कार्यवाही नहीं होने से लेकर देखा जा सकता है.

समय रहते मौत के मुंह में जाने से बच…

31 किसानों के खेत अवैधानिक रूप से भूसा कोयला के राख कहें या उद्योग से निकलने वाले अपशिष्ट को खेतिहर जमीन पर पाटते चले जा रहे है पूर्व मंत्री के भाई बंधु का उद्योग घराना।

आदेश की प्रमाणित प्रति होना बताया पीड़ित किसान…

पूर्व मंत्री के भाई बंधु होने से फटी पड़ी है जिम्मेदार अधिकारी का कहीं वापस सत्ता में आने पर नुकसान पहुंचाने का भय…



वहीं कुछ किसानों ने हिम्मत साहस दिखाते हुए राजस्व अमले की शरण ले भी लिए किसानों का सरकार है कुछ तो होगा परंतु आपको जानकर हैरानी होगा कि राजस्व अमला के नोटिस लेने के उपरांत राजस्व अमला को ठेंगा दिखाते हुए उद्योग घराने के जिम्मेदार ने उपस्थिति देना मुनासिब नहीं समझा…

अमला ने प्रक्रिया को अपनी पूरा भी करना था सो किया ।

धाकड़ साहब के कर्म क्षेत्र में उनके ही पार्टी के जिम्मेदार पदाधिकारी के उद्योग में यह सब हो रहा है और साहब मौन दर्शक बने हुए हैं या उनको उपरोक्त तथ्यों की जानकारी नहीं यह पुख्ते तौर पर नहीं कह सकते। यह बात हम या हमारी टीम आरोप प्रत्यारोप नहीं लगा रहा दर्द को झेल रहे धरती पुत्र पीड़ित किसान कह रहे हैं।

राजस्व अमला के आदेश के उपरांत कृषक को किसी प्रकार की सहायता नहीं हो सका परंतु शासकीय रिकॉर्ड में तो सहायता होना दर्ज हो चुका इससे बड़ी किसानों की सरकार में और क्या उपहार चाहिए?
यह हम नहीं वह किसान अपनी दर्द पीड़ा बता रहा था लोन में लगा कृषि उपकरण के कर्ज़ नहीं पटा पा रहा कहीं  कृषि औजार ट्रैक्टर कर्ज़ दिया एजेंसी खींचकर ना ले जाएं परंतु उसकी मजबूरी कहें या कुछ और अभी भी अपना नाम गांव बताने के ख़बर में नाम लिखने से मना कर रहा है।


अन्नदाता किसान का दर्द आखिर समझेगा कौन?

दरअसल, क्षेत्र की फिजाओ में इन दिनों मौत का स्लो पॉइज़न खुली हवाओं में तेजी से घुल रहा है, जो कई साल से इलाके को जहरीला बना रहा है. ये स्लो पॉइज़न इतना खतरनाक है कि कई लोगों को गंभीर बीमारी का शिकार बना रहा है, तो वहीं ना जानें ये जहरीली हवा ने कितनों को मौत की नींद सुला चुकी है. यूं कहें कि और कितनों की जान लेने पर आतुर है. इसका अंजादा भी नहीं लगाया जा सकता है.

ये हम इसलिए कह रहे हैं कि हवा में फैल रही इस बीमारी को रोकने के लिए स्थानीय लोगों ने शासन / प्रशासन को सैकड़ों चिट्ठी लिखकर पत्राचार कर चुके हैं. किन्तु आवेदनों की स्थितियां लगभग आज भी वही है. समस्या आज की स्थिति में अधिक भयावह है. लिहाजा समस्या से तत्काल राहत पाने के लिए पर्यावरण विभाग और अन्य विभागों की ओर से मांग भी कर रहे हैं.

उनकी इस शिकायत और मांग पर ना तो अधिकारी कार्यवाही करते हैं और ना ही कोई असर हो पाया है. तो ऐसे में क्या कहें कि शासन प्रशासन हमारी जान बूझ कर नहीं सुन रहा है या फिर किस दबाव या मजबूरी में सुनना नहीं चाहते हैं. इसका बड़ा उदाहरण कार्यवाही नहीं होने से लेकर देखा जा सकता है.

ये कहानी छत्तीसगढ़ की संस्कारधानी रायगढ़ जिले का. यहां पिछले कई महीनों से स्थानीय लोगों ने सरकारी ऑफिस में चिट्ठी लिख कर शिकायत दर्ज कर अपनी परेशानियों का जिक्र किया है, लेकिन आज तक इनके शिकायत पर ना तो अधिकारियों के कान खड़े हुए हैं और ना ही उनके कानों में कोई जूं रेंगा है.

इस बात की चिंता उसे रोज डराने ओर सताने लगी है. क्षेत्र के प्रभावित लोगों को न्याय और इंसाफ मिल सके.समय रहते मौत के मुंह में जाने से बच सकें.

(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति thedehati.com उत्तरदायी नहीं है।)

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Gopal Krishna Naik

Editor in Chief Naik News Agency Group

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