खरसिया। छत्तीसगढ़ में महिलाओं द्वारा वर्षा ऋतु में रखा रखा वाने वाला व्रत खमरछठ यानि हलषष्ठी व्रत को संतान के स्वास्थ्य एवं दीघायु से जोडकर देखा गया है। इस व्रत में व्रती महिलाओं द्वारा उपवास की सामग्री में महुवा के पत्ते की पतरी, महुवा की लडकी का चम्मच, पसेर चांवल याने बिना हल चलाये उपजे अनाज, 6 पकार की भाजी जो बिना हल चलाए उगन ेवाली होती है एवं भैंस के दूध, दही, एवं घी का उपयोग किया जाता है।
विदित हो कि भाद्रपद कृष्ण पक्ष की छठवीं तिथि को हिन्दु धर्म की माताएं अपने पुत्र की प्राप्ति, दीघायु व खुशहाली के लिये हलषष्ठी पूजा वैदिक काल से करती आ रही है। वहीं मान्यता है कि इस व्रत में माताएं दिनभर निर्जला व्रत रखती है और दोपहर में हलषष्ठी पूजा कर आहार ग्रहण करती है।
इस आहार में बिना हल जोते चांवल अर्थात पसेर चावल, भैंस का दूध, दी एवं घी एवं 6 प्रकार की भाजि जो बिना हल चलाए उगन ेवाली होती है। इससे बने आहार को ही ग्रहण कर अपने व्रत का समापन करती है। खरसिया नगर में भी आज माताओं ने अपनी संतान की खुशहाली एवं दीघायु के लिये रखा निर्जला व्रत किया हलषष्ठी की पूजा अर्चना की।