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सपनों के सौदागर अध्यापक, IPS, IAS, मुख्यमंत्री

रायपुर। छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजित जोगी का दो साल पहले आज ही के दिन निधन हुआ था। आज उनकी दूसरी पुण्यतिथि है। छत्तीसगढ़ की राजनीति में सबसे आगे उनका ही नाम है। यहां तक की वे अजातशत्रु के रूप में भी जाने जाते है। वे सपनों के सौदागर रहे इस नाम से उनके जीवनी पर एक पुस्तक भी प्रकाशित है।
उनके जीवन में कई मोड़ आए। उन्होंने प्राध्यापक, आईपीएस, आईएएस, मुख्यमंत्री, सांसद और फिर बागी बन स्वयं की राजनीतिक पार्टी तक का सफर तय किया। उनके विरोधी भी उनके विरोध में नहीं टिक पाए। विपक्ष के नेता भी उन्हें राजनीति के अजातशत्रु पुकारते थे। सभी के साथ अच्छा तालमेल और जनता के बीच जो लोकप्रियता अजीत जोगी ने हासिल की शायद अभी तक प्रेदेश के किसी नेता ने ये हासिल नहीं की।
जब वे जन सभाओं में जाते तब उनके आगमन पर ही लोगों में एक नारा गूंज उठता था ये नारा है देखों-देखों कौन आया, शेर आया-शेर आया। 16 सालों से व्हीलचेयर में रहने वाले अजीत जोगी जनता के दिलों बसे रहे। वे अपनी इच्छाशक्ति के दम पर राज्य के सर्वाधिक चर्चा वाले नेता बने रहे।
जन्म और पढ़ाई
29 अप्रैल 1946 को छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में जन्मे अजित जोगी ने प्रारंभिक पढ़ाई स्थानीय स्तर पर ही की। इसके बाद भोपाल से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और बाद में उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री ली।
जोगी ने कुछ समय तक रायपुर के इंजीनियरिंग कॉलेज में अध्यापन भी किया। यहीं रहते हुये उन्होंने सिविल सर्विसेस की परीक्षा दी और भारतीय पुलिस सेवा के लिये चुने गये। डेढ़ साल तक पुलिस सेवा में रहने के बाद जोगी ने फिर से परीक्षा दी और वो भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए चुने गए।
जोगी अविभाजित मध्य प्रदेश में 14 सालों तक कई महत्वपूर्ण जिलों के कलेक्टर रहे। मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के काफी करीबी बने। अर्जुन सिंह और राजीव गांधी की सलाह पर ही उन्होंने नौकरी छोड़ी और कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर सांसद बन राजनीतिक सफर की शुरुआत की। जल्दी ही अजित जोगी राजीव गांधी की कोर टीम के सदस्य बन गये। उन्हें कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता भी बनाया गया।

लोकसभा चुनाव में हार के बाद बने मुख्यमंत्री
1998 में उन्होंने रायगढ़ लोकसभा से पहली बार चुनाव लड़ा और वो संसद पहुंचे। हालांकि एक साल बाद 1999 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। तब उनके राजनीति पर प्रश्न चिन्ह लगने लग गए।
वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य बना तब मुख्यमंत्री के कई नामों पर अटकलें शुरू हो गई। इस बीच अप्रत्याशित रूप से अजित जोगी को राज्य के पहले मुख्यमंत्री बनाया गया।
भाषण में छत्तीसगढ़िया अस्मिता को जगाया
मुख्यमंत्री बनने के बाद जोगी ने करिश्माई नेता की तरह काम करना शुरू किया। स्थानीय बोली में उनके भाषणों ने पहली बार लोगों में छत्तीसगढ़िया अस्मिता को जगाने का काम किया। रामानुजगंज से लेकर कोंटा तक, राज्य के अलग-अलग हिस्सों में उनके हर दिन के दौरों का रिकॉर्ड अब तक बरकरार है।
2003 में जोगी के नेतृत्व में लड़े गये विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सरकार चुनी गई। जिसने अगले 15 सालों तक शासन किया।
2003 के चुनाव के दौरान ही उनके बेटे अमित जोगी पर राकांपा के नेता राम्वतार जग्गी की हत्या के आरोप लगे और उन्हें लंबे समय तक जेल में भी रहना पड़ा।
सत्ता जाने और बेटे के हत्या के आरोप में फंसने के बाद 2003 में कथित रूप से भाजपा विधायकों की खरीद-फरोख्त का आरोप उन पर लगा और कांग्रेस पार्टी ने उन्हें पार्टी से निलंबित भी कर दिया। अगले साल यानी 2004 में अजित जोगी का न केवल निलंबन वापस हुआ, बल्कि पार्टी ने उन्हें महासमुंद से लोकसभा की टिकट भी दी। उन्होंने भाजपा उम्मीदवार विद्याचरण शुक्ल को इस चुनाव में हराया।

चुनाव के दौरान ही 20 अप्रैल 2004 में जोगी एक सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हो गये और उनके कमर से नीचे के हिस्से ने काम करना बंद कर दिया। तब से वो अब तक व्हीलचेयर पर ही थे। 2008 के विधानसभा चुनाव में राज्य में शीर्ष नेताओं ने कुल मिलाकर जितने दौरे किये थे, उससे अधिक दौरे और भाषण, अकेले व्हीलचेयर पर बैठे अजीत जोगी के हिस्से में थे।
इसी दौरान अजित जोगी की पत्नी डॉ. रेणु जोगी और उनके बेटे अमित जोगी भी राजनीति में उतरे और विधायक चुने गये। छत्तीसगढ़ में 16 सालों तक प्रदेश कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष कोई भी रहा हो लेकिन पार्टी में सबसे निर्णायक भूमिका अजित जोगी की ही बनी रही।
बाद के दिनों में भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव की जोड़ी ने अपना वर्चस्व बढ़ाना शुरू किया।
छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस
अजित जोगी ने खुद ही कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दिया और 21 जून 2016 को छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस नाम से खुद की पार्टी बनाने की घोषणा की।
2018 में उनकी पार्टी ने बहुजन समाज पार्टी के साथ विधानसभा चुनाव लड़ा। लेकिन अपनी परंपरागत सीट मरवाही से अजित जोगी और कोटा विधानसभा से उनकी पत्नी रेणु जोगी के अलावा पार्टी के केवल 3 अन्य उम्मीदवार ही विधानसभा पहुंच पाये।

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