एमएसपी: सीएम रहते केंद्र को सौंपी रिपोर्ट पर घिरे पीएम मोदी, विपक्ष ने उठाए सवाल, पढ़ें पूरा मामला

केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों को लेकर किसानों का आंदोलन लगातार आठवें दिन जारी है। सरकार की तरफ से केंद्रीय मंत्रियों की टीम और किसान नेताओं के बीच बैठकें चल रही है, ताकि आंदोलन समाप्त हो सके, लेकिन किसानों द्वारा जिस बात को लेकर सबसे ज्यादा विवाद किया जा रहा है, उसमें शामिल है फसलों की सरकारी खरीदी पर दिया जाने वाला ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ या आसान भाषा में कहें तो एमएसपी। इसे लेकर गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी ने एक रिपोर्ट तत्कालीन पीएम डॉ. मनमोहन सिंह को सौंपी थी। इसी रिपोर्ट को लेकर विपक्ष खासकर कांग्रेस उन्हें घेर कर सवाल उठा रही है।
लिखित गारंटी पर अड़े किसान
मोदी सरकार लगातार किसानों को एमएसपी जारी रखने को लेकर आश्वासन दे रही है, लेकिन किसान तीनों कानूनों को वापस लिए जाने की बात पर अड़े हुए हैं। किसानों ने अपने पक्ष में कहा है कि सरकार को एमएसपी की लिखित गारंटी देनी होगी, क्योंकि इन कानूनों में इसका जिक्र नहीं है।
किसान आंदोलन, केंद्रीय मंत्रियों की बैठक, किसान नेताओं संग चर्चा की गहमा-गहमी के बीच गुजरात के सीएम रहते मोदी द्वारा तैयार रिपोर्ट की चर्चा शुरू हो गई है। यह रिपोर्ट पीएम मोदी के लिए सबसे बड़ी मुसीबत बन चुकी है। दरअसल, मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने एमएसपी को सुनिश्चित करने के लिए सांविधिक निकाय बनाने की सिफारिश की थी।
इस रिपोर्ट को लेकर कांग्रेस ने कहा कि जब प्रधानमंत्री गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने भारत सरकार को उपभोक्ता मामलों पर एक रिपोर्ट सौंपी थी। पीएम मोदी ने उस दौरान किसानों का हित संरक्षित करने के लिए सांविधिक निकाय के जरिए एमएसपी लागू करने की सिफारिश की थी, लेकिन अब पीएम बनते ही वह अपनी बात से मुकर रहे हैं।
सीएम मोदी की रिपोर्ट को नकार क्यों रहे हैं पीएम मोदी?
कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने सितंबर में भी इस रिपोर्ट को लेकर पीएम मोदी को घेरा था। उन्होंने प्रधानमंत्री पर किसानों को गुमराह करने का आरोप लगाया और कहा, ‘क्यों पीएम मोदी आज सीएम मोदी की रिपोर्ट को अस्वीकार कर रहे हैं, जो उन्होंने भारत सरकार को भेजी थी। ये राजनीतिक बेईमानी का सबसे बुरा रूप है।’
आखिर ऐसा क्या है इस रिपोर्ट में
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वेबसाइट narendramodi.in (आर्काइव लिंक) पर इस रिपोर्ट की जानकारी दी गई है। इस रिपोर्ट का नाम ‘रिपोर्ट ऑफ वर्किंग ग्रुप कंज्यूमर अफेयर्स’ है। वेबसाइट पर इस बात की जानकारी दी गई है कि दो मार्च, 2011 को गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात की थी। उपभोक्ता मामलों से जुड़े वर्किंग ग्रुप का गठन आठ अप्रैल, 2010 को किया गया। तब नरेंद्र मोदी इस ग्रुप के अध्यक्ष थे। इस ग्रुप में महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री भी शामिल थे।
रिपोर्ट में 20 सिफारिशें थीं
इस रिपोर्ट में वर्किंग ग्रुप की तरफ से 20 सिफारिशें की गई थीं। इन सिफारिशों को किस तरह लागू करना है, इसके लिए 64 सूत्रीय एक्शन प्लान भी बताया गया। वहीं, इस रिपोर्ट में कई जगह एमएसपी का जिक्र किया गया है। यही वो वजह है, जिस कारण कांग्रेस केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री को घेरने में लगी हुई है। जब तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी ने यह रिपोर्ट सौंपी थी, उस दौरान तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी भी मौजूद थे।
रिपोर्ट में कई क्लॉज दिए गए हैं। इसमें से एक क्लॉज बी.3 में कहा गया है कि सांविधिक निकाय के माध्यम से हमें किसानों का हित संरक्षित करना होगा। किसान और व्यापारी के बीच होने वाले लेन-देन एमएसपी से नीचे नहीं होने चाहिए, ताकि इससे किसानों को घाटा ना हो।
एफसीआई और अन्य संस्थाओं के जरिए हो फसलों की खरीद
इस रिपोर्ट में कहा गया कि एमएसपी पर खरीदी जाने वाली फसलों को खरीदने के लिए विश्वसनीय व्यवस्था बनाई जानी चाहिए। इसके लिए एक संस्था का निर्माण किया जाए। उदाहरण के लिए अगर ‘फूड कॉर्पोरेशन ऑफ’ (एफसीआई) जैसे केंद्रीय संस्थान एमएसपी पर फसल खरीदने के लिए हर जगह नहीं पहुंच पा रहे हैं, तो राज्य की सिविल सप्लाई कॉरपोरेशन और कोऑपरेटिव संस्थाओं को प्रोत्साहन दिया जाए, ताकि खरीद का काम संचालित हो सके। एमएसपी पर खरीद को लेकर एफसीआई का रोल प्रमुख होना चाहिए। फसलों की खरीद के लिए फंडिंग प्राइस स्टेबलाइजेशन फंड से आ सकता है।
पुराना ट्वीट पीएम मोदी की मुश्किलों को और बढ़ा रहा
ऐसे में विपक्ष का सवाल उठाना भी लाजमी नजर आता है। विपक्ष का कहना है कि अगर नरेंद्र मोदी एमएसपी पर खरीद के लिए संस्थान बनाने की बात कर रहे थे, तो अब वह सत्ता में रहने के दौरान एमएसपी को कानूनों में लिखकर देने में परेशान क्यों हो रहे हैं? वहीं, पीएम मोदी का एक ट्वीट भी वायरल हो रहा है, जो उनके लिए मुश्किलें बढ़ा रहा है।
दरअसल, इस ट्वीट को उन्होंने प्रधानमंत्री बनने से ठीक पहले यानी अप्रैल महीने में किया था। इसमें उन्होंने कहा, ‘हमारे किसानों को सही दाम क्यों नहीं मिलना चाहिए? किसान भीख नहीं मांग रहे। उन्होंने इसके लिए कड़ी मेहनत की है और उन्हें इसका अच्छा दाम मिलना चाहिए।’




