पांच सालों में कोल कंपनियों,प्लांटों के अलावा पीडब्ल्यूडी एनएच, सीजीआरडीसी समेत दूसरे विभागों ने सड़क बनाने के लिए की अंधाधुंध कटाई
विकास के नाम पर लाखों पेड़ काने की अनुमति दी जाती है। पेड़ लगाने और बचाने की प्रक्रिया लंबी है इसलिए उतने पड़े बच नहीं पाते। रायगढ़ जिले ने औद्योगीकरण की बहुत बड़ी कीमत चुकाई है। तमनार और घरघोड़ा के घने जंगल तबाह हो चुके हैं। केवल कोयला खदानों और प्लांटों के लिए ही पेड़ नहीं काटे जा रहे बल्कि सरकारी निर्माण कार्यों में भी लाखों पेड़ों की बलि ली जा रही है। मिली जानकारी के अनुसार 2014 से 2021 तक जिले में डेढ़ लाख पेड़ों को काटने की अनुमति जारी की गई है। इसमें कोयला खदान, एनएच, पावर प्लांट, रेल लाइन सभी तरह के प्रोजेक्ट शामिल हैं। इतनी बड़ी संख्या में पेड़ काटने के बाद उससे दोगुनी संख्या में लगाकर उन्हें बचाना भी होता है, लेकिन रायगढ़ में जहां भी पौधरोपण हुए, आधे से ज्यादा पौधे मर गए। एनएच, रेल लाइन, कोयला खदान आदि के लिए पेड़ काटने की जरूरत पडऩे पर अनुमति ली जाती है। पटवारी प्रतिवेदन के अनुसार पेड़ों की कटाई होती है। जानबूझकर पेड़ों की संख्या कम बताई जाती है। जो पेड़ कटते हैं वो विशालकाय होते हैं। इन्हें विकसित होने में कई साल लगते हैं, लेकिन एक ही झटके में हजारों एकड़ की हरियाली नष्ट कर दी गई है।
कहां लगे, कितने जीवित बचे
वन विभाग हर साल लाखों पौधे लगाने का दावा करता है। हरियर छत्तीसगढ़, क्षतिपूर्ति वृक्षारोपण आदि के तहत पौधे लगाए जाते हैं। इनकी वर्तमान स्थिति क्या है, इसकी कोई रिपोर्ट नहीं है। साल दर साल खत्म होती हरियाली को बचाने के लिए कोई भी गंभीर प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। कागजों में पौधरोपण का आंकड़ा जमीनी सच से परे है। मौके पर उतने पेड़ हैं ही नहीं।