मृत्यु की सच्चाई -पंडित कान्हा शास्त्री
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मृत्यु की सच्चाई
@पंडित कान्हा शास्त्री
विचित्र है मौत की ये सच्चाई, क्या आप भी हैं इससे अनजान?
मृत्यु क्या है? जीवन का अंत या किसी नए जीवन की शुरुआत! मौत की सच्चाई से अनजान इंसान न जाने कितनी सदियों से इसकी हकीकत को नहीं जान पाया है। इसे बहुत भयानक माना जाता है। मृत्यु क्या है? जीवन का अंत या किसी नए जीवन की शुरुआत! मौत की सच्चाई से अनजान इंसान न जाने कितनी सदियों से इसकी हकीकत को नहीं जान पाया है। इसे बहुत भयानक माना जाता है। सभी धर्मों ने मौत को इस जिंदगी की हकीकत माना है जिससे एक दिन हम सबको रूबरू होना पड़ेगा। धरती पर अनेक बादशाह, शहंशाह आए लेकिन वे भी यहां स्थायी नहीं रह सके। मृत्यु अनिवार्य है और इसका सामना हर प्राणी को करना होगा। मृत्यु से जुड़ी डर की अवधारणा इसलिए भी है क्योंकि मरने के बाद कोई अपने अनुभव साझा नहीं कर सकता। जो एक बार चला जाता है, उसके उसी रूप में लौट आने की कोई संभावना नहीं रहती। फिर वह अनंत यात्रा पर निकल जाता है। अगर जिंदगी में दिलचस्पी है तो मौत की सच्चाई को कभी नहीं भूलना चाहिए। जीवन में रुचि जरूरी है लेकिन मौत में अरुचि होने के बावजूद हमें इसका सामना करना ही होगा। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि जीवन के साथ मृत्यु को भी याद रखो। संभव है कि शुरुआत में इससे कुछ निराशा हो लेकिन बाद में यह आत्मा में सिंह जैसा बल पर भर देती है। आज धरती पर इतने अत्याचार, भ्रष्टाचार, अनैतिक गतिविधियां इसलिए फैल गए हैं क्योंकि मानव मृत्यु के नाम से तो परिचित है लेकिन उसकी संभावनाओं को भूल गया है।
अगर इंसान सदैव मौत को याद रखे तो वह कभी दूसरों पर अत्याचार नहीं कर सकता, वह इस धरती पर ही स्वर्ग का निर्माण करना चाहेगा। व्यर्थ की बातों में वह जीवन बर्बाद नहीं करेगा इसलिए जिंदगी में मौत को कभी भूलना नहीं चाहिए, उससे कभी डरना नहीं चाहिए। अगर डरना है तो बुरे कर्मों से, चोरी से, व्यभिचार से और अनैतिक कृत्यों से डरना चाहिए। ये ही दुर्गुण इंसान को पतन की ओर धकेलते हैं।
अगर मनुष्य यह स्वीकार कर ले कि मौत की घंटी वास्तव में ईश्वर की ओर लौटने का संकेत है तो वह जिंदगी में ईश्वर को भूलने की गलती नहीं करेगा। अगर ऐसा होगा तो निश्चित रूप से वह एक महान दिन होगा।