शब्द है साहब… शब्दों के भी तासीर होता है…महेश्वर पटेल

आपकी बदौलत अब मैं आत्मनिर्भर बन रहा हूँ

जिन हाथों ने गढ़े इमारत अब उन्हें मल रहा हूँ
सांसें थमने से पहले तेरे घर से निकल रहा हूँ
आपकी बदौलत अब मैं आत्मनिर्भर बन रहा हूँ
लोकतंत्र की लकीरें अपने सीने खींच रहा हूँ
जनता का जनता के लिए सब समझ रहा हूँ
आपकी बदौलत अब मैं आत्मनिर्भर बन रहा हूँ
घर जाने को आतुर मैं सड़कों पर रेंग रहा हूँ
वीरान हैं सड़कें बस मैं अकेला ही चल रहा हूँ
आपकी बदौलत अब मैं आत्मनिर्भर बन रहा हूँ
पहुंचने घर को रेल किराया के पैसे जोड़ रहा हूँ
भाड़ा मुझसे जुटी नहीं तो पटरी पर कट रहा हूँ
आपकी बदौलत अब मैं आत्मनिर्भर बन रहा हूँ
आपने राहत बहूत दिया है मैं सब समझ रहा हूँ
मजदूर था जाने कब से, मजबूर अब बन रहा हूँ
आपकी बदौलत अब मैं आत्मनिर्भर बन रहा हूँ
जेब खाली,पेट खाली, धूल से सनी अन्न, दूध पी रहा हूँ
राष्ट्र द्रोही न कहाऊं इसलिए डर-डर के जी रहा हूँ
आपकी बदौलत अब मैं आत्मनिर्भर बन रहा हूँ
देश लूटने वालों से शिकायत कहाँ कर रहा हूँ
ज़मीर को बचाने ही तो जमीन पर घिसट रहा हूँ
आपकी बदौलत अब मैं आत्मनिर्भर बन रहा हूँ
खुश रहना महल वालों नीव तेरी मैं सींच रहा हूँ
बनी रोटी पर इमारतों को देकर दुआ चल रहा हूँ
आपकी बदौलत अब मैं आत्मनिर्भर बन रहा हूँ
आपकी बदौलत अब मैं आत्मनिर्भर बन रहा हूँ




