छत्तीसगढ़

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जगदलपुर । लगभग 600 वर्ष प्राचीन अस्त धातु से निर्मित एक त्रिशुल स्तंभ की दंतेश्वरी शक्तिपीठ में मुख्य द्वार के सम्मुख स्थापना की गई। जिसके दौरान माई दंतेश्वरी का छत्र नगर परिक्रमा निकलता है। इसमें पुरे बस्तर के देवी-देवता शामिल होते है। बस्तर राजा कमलचंद भंजदेव शिरकत करते है। प्रतिदिन पालकी 16 मार्च को मेला मंडई का भव्य आयोजन हो रहा है।

वैसे तो देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का ही जिक्र है, लेकिन कुछ स्थानीय मान्यताएं अलग कहानी कहती हैं। छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा के दंतेश्वरी माता मंदिर को 52वां शक्तिपीठ भी गिना जाता है। मान्यता है कि यहां देवी सती का दांत गिरा था। इसी पर इस इलाके का नाम दंतेवाड़ा पड़ा। इस मंदिर को लेकर कई तरह की कहानियां और किवदंतियां यहां प्रसिद्ध हैं। मंदिर का निर्माण 14वीं सदी में चालुक्य राजाओं ने दक्षिण भारतीय वास्तुकला से बनावाया था। यहां देवी की षष्टभुजी काले रंग की मूर्ति स्थापित है। छह भुजाओं में देवी ने दाएं हाथ में शंख, खड्ग, त्रिशूल और बांए हाथ में घटी, पद्घ और राक्षस के बाल धारण किए हुए हैं। मंदिर में देवी के चरण चिन्ह भी मौजूद हैं।

17 मार्च को होलिका दहन कार्यक्रम उसके बाद 18 मार्च को रंगभंग पादुका पूजन के बाद 19 मार्च को सभी देवी-देवताओं की बिदाई होगी। इस वर्ष विधायक देवकी कर्मा और कलेक्टर दंतेवाड़ा इस आयोजन का निर्देशन कर रहे है। इस आयोजन में बस्तर महाराजा कमलचंद भंजदेव विशेष रूप से उपस्थित रहेंगे। छत्तीसगढ़ के दक्षिण बस्तर दंतेवाड़ा के जिला मुख्यालय में स्थित है यह शक्तिपीठ। केंद्रीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार माता सती का दांत यहां गिरा था इसलिए यह स्थल पहले दंतेवला और अब दंतेवाड़ा के नाम से चर्चित है। डंकिनी और शंखिनी नदी के संगम पर स्थित इस मंदिर का जीर्णोद्धार पहली बार वारंगल से आए पाण्डव अर्जुन कुल के राजाओं ने करीब 700 साल पहले करवाया था। 1883 तक यहां नर बलि होती रही है। 1932-33 में दंतेश्वरी मंदिर का दूसरी बार जीर्णोद्धार तत्कालीन बस्तर महारानी प्रफुल्ल कुमारी देवी ने कराया था।

अब यह मंदिर केंद्रीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के संरक्षण में है। नदी किनारे नलयुग से लेकर छिंदक नाग वंशीय काल की दर्जनों मूर्तियां बिखरी पड़ी है।मां दंतेश्वरी को बस्तर राज परिवार की कुल देवी माना जाता है, लेकिन अब वह समूचे बस्तरवासियों की अधिष्ठात्री है। प्रतिवर्ष वासंती और शारदीय नवरात्रि के मौके पर हजारों मनोकामनाएं ज्योति कलश प्रज्जवलित होते है। 50 हजार से ज्यादा भक्त पदयात्रा कर शक्तिपीठ पहुंचते है। दंतेश्वरी मंदिर प्रदेश का एक मात्र ऐसा स्थल है। जिसमें हजारों आदिवासी शामिल होते है। नदी किनारे आठ भैरव भाईयों का आवास माना जाता है इसलिए यह स्थल तांत्रिको को भी साधना स्थली है।

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