माँ
अघोर वचन -1
अघोरान्ना परो मंत्रः नास्ति तत्वं गुरो परम ।
“भगवान ने हमें दूसरों के उपकार और सत्कार के लिये दो हाथ दिये हैं । यदि हम इनसे दूसरों का उपकार- सत्कार नहीं कर सके तो कम से कम अपना तो कर ही सकते हैं । ये दोनों हाथ किसी पर कीचड़ या ईंट – पत्थर फेंकने के लिये नहीं हैं ।”
भारतीय मनीषा ने मानव जीवन के विविध पहलुओं पर गहन चिंतन कर व्यक्ति तथा समाज के सर्वांगीण विकास तथा आनन्द को उपलब्ध करने की महती आकाँक्षा को परिपूर्ण करने के लिये कतिपय नियम, निर्देश तथा परम्पराओं की पहचान की है । उपकार और सत्कार ये दो सत्कर्म उन्ही में से हैं । यहाँ धन एवँ समयदान से उपकार करने की अनिवार्यता नहीं है । ये स्वेक्षिक हैं । हाँ ! दो हाथ को हम मन कर्म वचन मान सकते हैं ।
मानव का स्वयँ पर उपकार तभी सँभव है जब वह कर्म करे । लक्ष्य प्राप्ति एवँ लाभ की गलियाँ कठिन परिश्रम से होकर ही जाती हैं, जिसके बिना मानव जीवन में सुखभोग दिवा स्वप्न बनकर रह जाता है ।
कीचड़, ईट और पत्थर प्रतीक हैं मानव के अपव्यवहार के । इनसे आलोचना, निंदा, चुगली, गाली-गलौज तथा धन जन की हानि जैसे और भी सारे कर्मज दोषो से मुक्ति पाने के लिये अभिप्रेत है ।