
पर्यावरण प्रदूषण को लेकर रायगढ़ में कभी गंभीरता से लड़ाई नहीं लड़ी गई। न तो स्थानीयों ने और न ही किसी पर्यावरणविद ने फ्लाई एश के विषय को खुलकर उठाया। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने अब फ्लाई एश को लेकर कड़े तेवर दिखाए हैं। एक याचिका पर आदेश देते हुए एनजीटी ने कहा है कि केंद्र सरकार को फ्लाई एश मैनेजमेंट एंड यूटीलाइजेशन मिशन का गठन करना होगा। दरअसल पावर प्लांटों से हर दिन उत्सर्जित होने वाले एश का पूरा उपयोग नहीं हो रहा है।
उद्योग प्रबंधन भी इसकी सही जानकारी छिपाते हैं। राखड़ को कहीं भी डंप कर दिया जाता है। कई कंपनियां एश डाइक में डंप करने को भी यूटीलाइजेशन में जोड़ देती हैं, जो गलत है। इसलिए एनजीटी ने अब इस पर ध्यान देने के लिए एक मिशन का गठन करने को कहा है। इसमें केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय, कोयला मंत्रालय और ऊर्जा मंत्रालय के सचिव नेतृत्व करेंगे। इस मिशन में संबंधित राज्यों के मुख्य सचिव भी शामिल होंगे। इस मिशन का काम होगा कि वह पावर प्लांटों द्वारा नियमों के उल्लंघन पर जवाबदेही तय करे।
उत्सर्जित फ्लाई एश का यूटीलाइजेशन नहीं करने वाले प्लांटों पर कार्रवाई भी करनी होगी। इसके अलावा देश में 1670 मिलियन टन पुराने डंप एश के निराकरण के लिए भी प्लानिंग की जाएगी। रायगढ़ जिले में ऐसे फ्लाई एश की मात्रा करीब डेढ़ करोड़ टन है। ज्यादातर तो एश डाइक में डंप पड़ा है।पर्यावरण विभाग नहीं करता वेरीफिकेशनरायगढ़ जिले में 25 पावर इकाइयों से फ्लाई एश का उत्सर्जन होता है। कोई भी शतप्रतिशत यूटीलाइज नहीं करता। उद्योग ही इसकी रिपोर्ट पर्यावरण विभाग को भेजते हैं, जिसे वेरीफाई नहीं किया जाता। प्लांट के आसपास खाली जमीनों पर भी एश डंप किया जाता है। एश डाइक में डाले गए राखड़ को भी यूटीलाइजेशन में जोड़ दिया जाता है। पर्यावरण विभाग ने कभी भी राखड़ के मुद्दे पर सख्ती नहीं दिखाई है।




