लठामार होली के लिए होने लगी लाठियों की तेल से मालिश
विश्व प्रसिद्ध लठामार होली के लिए होने लगी लाठियों की तेल से मालिश, लाठियां लेकर सोलह शृंगार में तैयार हुरियारिनें
विश्व प्रसिद्ध लठामार होली में सबसे ज्यादा आकर्षण केन्द्र होंगी बरसाने के ब्राह्मण समाज की महिलाएं। एक माह से ये महिलाएं अपनी लाठियों की तेल से मालिश कर रही थीं। इन लाठियों से नंदगांव के हुरियारों को पस्त करने के लिए उनके इन महिलाओं के हाथ मचल रहे हैं। महिलाएं सजने-संवरने में जुटी हुई है।
बरसाने में होने वाली लठामार होली को लेकर यहां की विप्र वधुओं में खासी आतुरता है। उन्होंने घरों में रखीं पुरानी लठियों को एक महीने पहले ही निकाल लिया था। इन लाठियों से कभी उनकी सास, ददिया सास ने हुरियारियों की खबर ली थी। विप्र वधुएं रोजाना अपनी लाठियों की तेल से मालिश कर रही थीं। अब ये लाठियां चमचमा उठी हैं। इन्हीं लाठियों से वे एक बार फिर नंदगांव के हुरियारियों को सबक सिखाएंगी। परंपरागत वेशभूषा में सज-धज कर होली खेलने की परंपरा के चलते विप्र वधुएं सजने-संवरने में भी जुटी हुई हैं। वे शब्दबाणों से भी हुरियारों को छलनी करेंगी। प्राचीन गायन शैली में निबद्ध रसिया-आ जइयो होरी के खिलार तोय होली खिला दूंगी मजा चखा दूंगी, सजनी भागन ते फागन आयो होरी खेलूंगी श्याम संग जाय, नैनन में मोय गारी दई, रस ले रे रसिया फ़ाग कौ आदि गीत उनकी जुबां पर होंगे। हुरियारिन मीरा देवी, इंदु गौड़ और किशोरी शर्मा का कहना है कि यह उनका सौभाग्य है कि वे बरसाने में ब्याह कर आयीं। लठामार होली खेलकर जिस आनंद की अनुभूति होती है, उसे वे शब्दों में बयां नहीं कर सकतीं।
40 वर्ष पहले शुरू हुई थी श्रीकृष्ण जन्मस्थान की लठामार होली
भांग की तरंग भी है रसिया में : यहां के रसियाओं में भांग की तरंग का भी बखान है। इस पर गौर करें, इगहरे कर यार अमल पानी गहरे, कुंडिऊ ले ले लाला सोटाऊ लेले, हेरे लाला भांग मिरच की हम जानी, गहरे कर अमल पानी, यह रसिया होली में जमकर गाया जाता है। जो युवाओं को भांग की ओर प्रेरित करता है। जबकि समाज में अनेक लोकगीत व रसिया ऐसे हैं जो सामाजिक बुराइयों को दूर करने को प्रेरित करते हैं।
नंदगांव के हुरियारों कसी कमर
बरसाने की हुरियारिनों को जहां लठामार होली की आतुरता है, वहीं इस होली में शरीक होने वाले नंदगांव के हुरियारों ने भी पूरी तैयारी कर ली है। नंदगांव के ग्वाल अपनी ढालों की सजावट में जुटे हुए हैं। इनमें हर उम्र के हुरियारे हैं। बुजुर्ग हुरियारे पहली बार लठामार होली में शरीक होने वाले बाल हुरियारों को टिप्स दे रहे हैं।
हुरियारों ने भी हुरियारिनों पर व्यंगबाणों की वर्षा करने की पूरी तैयारी कर ली है। भांग छानने के बाद ये हुरियारे लठामार होली में शरीक होंगे। एक समय था, जब नंदगांव के हुरियारे पैदल ही टोल बनाकर बरसाना पहुंचते थे, लेकिन अब ज्यादातर हुरियारे वाहनों से बरसाना पहुंचते हैं।
प्राकृतिक रंगों की होगी बरसात
प्रिया प्रियतम की अनुराग से भरी अनुपम लठामार होली में रंग-गुलाल से सराबोर करने के लिए बरसाना धाम तैयार है। लाड़लीजी महल में बरेली से टेसू के तीन कुंतल फूल मंगाए गए हैं।
(सिर्फ होली के रंग बनाने के लिए ही नहीं, बल्कि कई बिमारियों से बचाने के लिए भी इस्तेमाल होता है टेसू)
इससे प्राकृतिक रंग तैयार हो रहा है। भंडारी भगवान दास ने बताया कि बरेली से हर्बल रंग तैयार करने को दो कुंतल टेसू के पुष्प व 500 मन रंग-बिरंगे गुलाल के कट्टे मंगाए हैं। इस गुलाल की वर्षा से उड़त गुलाल लाल भये बदरा की कहावत चरितार्थ होगी। लठामार होली खेलने की परंपरा में बदलाव नहीं हुआ है। नन्दगांव के कृष्ण स्वरूप ध्वजा के पीछे चलकर व बरसाना वाले राधा रानी की ध्वजा के पीछे रहकर ही होली खेलते हैं। दोनों गांवों के हुरियारे धोती-कुर्ता, बगलबंदी व सिर पर पगड़ी पहन कर व हाथों में ढाल लेकर ही होली खेलते हैं। वहीं यहां की हुरियारिनें कीमती सोलह शृंगार व लहंगा-फरिया पहनकर हाथों लाठी लेकर ही समूह के रूप में होली खेलती हैं।