श्रीराम जी को मर्यादा पुरूषोत्तम बनाने में माॅ कैकेयी ने अपना अनुराग,भाग,सुहाग सब कुछ समर्पित कर दिया – अतुल जी महाराज
खरसिया। श्री रामकथा के छठवा दिन राम वनवास एवं श्रीराम केंवट संवाद के अवसर पर अंतराष्ट्रीय मानस मर्मज्ञ परम पूज्य अतुल कृष्ण जी महाराज ने उपस्थित लोगो को बताया कि भगवान श्रीराम ने अपने कुल की मर्यादा को ध्यान में रखकर अपने पिता के वचन की रक्षा के लिये प्रसन्न होकर सारा राज-पाट त्यागकर वन चले गये। इससे हमें सीख लेनी चाहिए कि हमें स्वयं की चिंता न करते हुए यदि जरूरत पड़े तो अपने परिवार, समाज व देश के लिये सब कुछ त्याग कर देना चाहिए। परम पूज्य अतुलजी महाराज ने बताया कि रामचरित्र मानस में माता कैकेयी बहुत ही महान पात्र है यदि माॅ कैकेयी नहीं होती तो रामकथा बालकाण्ड में ही समाप्त हो जाती।
खरसिया की पावन धरा पर शीशराम ओमप्रकाश परिवार द्वारा आयोजित दिनांक 28 दिसंबर से प्रारंभ हुए श्रीराम कथा सप्ताह के छठवें दिवस उपस्थित श्रोताओं को मानस मर्मज्ञ परम पूज्य अतुल कृष्ण जी ने संबोधित करते हुए कहा कि भगवान श्रीराम ने अपने कुल की मर्यादा को ध्यान में खकर व अपने पिता के वचन की रक्षा के लिये सारा राजपाट त्यागते हुए वनवास को निकल गये। इससे हमे सीख लेनी चाहिए कि हमें स्वयं की चिंता न करते हुए अपने परिवार, समाज, व देश के लिये सब कुछ त्याग कर देना चाहिए। कथा व्यास ने वर्तमान परिस्थितियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज के बुजुर्गो को राजा दशरथ से प्रेरणा लेना चाहिए और शरीर में ताकत रहते ही व आंख की रोशनी रहते ही सारी जिम्मेदारी अपने वारिशों को सौंपकर भगवान का सुमिरन में लग जाना चाहिए जिस प्रकार राजा दशरथ ने दर्पण में अपना बुढ़ापा देखकर यह निर्णय लिया कि अपने समस्त राजपाठ को राम को सौंप कर तपस्या करने चल देना चाहिए। भगवान की भक्ति में मन लगाना चाहिए। और इसी सोच के साथ राजा दशरथ ने अयोध्यावासियों के समक्ष श्रीराम के राज्याभिषेक का प्रस्ताव रखा मगर यह कार्य कल पर छोड़ दिया । जिसका परिणाम काफी दुखद रहा। इसलिये पूज्य व्यास जी ने कहा कि अच्छे कार्यो को टालने की जगह शीघ्र करना ही श्रेयष्कर होता है। सभी को सदैव प्रसन्न रहने की प्रेरणा भगवान श्रीराम से लेनी चाहिए। भगवान जहां भी रहते है प्रसन्न रहते है। दुख उनसे कोशो दूर रहता है। कौशल्या के उपर प्रकाश डालते हुए उन्होने कहा कि बेटे को वनवास होने के बावजूद भी उन्हें अपने पति की बात वचन याद रहे। माॅ कौशिल्या ने किसी को दोषी नहीं बताया बल्कि कहा कि यदि माॅं कैकेयी ने वन जाने को कहा है तो हे राम वनगमन तुम्हारे लिये सैकड़ो अयोध्या के समान है। वे कहती है कि सुख और दुख तो अपने ही कारणों से होते है।
जब भगवान श्रीराम, सीता एवं लक्ष्मण वनगमन के लिये निकल रहे थे तो समस्त अयोध्यावासी अपने अपने घरों से निकल भगवान श्रीराम के पीछे चलने लगे। आचार्य अतुल कृष्ण महाराज जी द्वारा जब कथा परिसर पर इस प्रसंग को सुना रहे थे तक कथा परिसर में उपस्थित सभी श्रोताओं के आंखो से आंसू छलक पडे। वहीं आचार्य श्री ने माॅं कैकेयी पर प्रकाश डालते हुए कहा कि माॅं कैकेयी बहुत ही महान थी यदि माॅं कैकेयी का पात्र नहीं होता तो रामचरित्र मानस का रामकथा बाल काण्ड प्रसंग में ही समाप्त हो जाता है। माॅं कैकेयी ने ममता में साहस भकर पुत्र के प्रति कठोर स्नेह का दर्शन कराया है। अगर माॅं कैकेयी ने राम को वनवास नहीं कराती तो अखण्ड भारत का स्वरूप मर्यादा से प्रोत प्रोत करके रामराज्य की स्थापना नहीं हो पाती है। इसलिये ममता में तनिक कठोरता का होना अनिवार्य है। श्रीराम को मर्यादा पुरूषोत्तम बनाने में माॅं कैकेयी ने अपना अनुराग, भाग और सुहाग सब कुछ समर्पित कर दिया। वहीं माता सीता पतिधर्म के लिये अयोध्या का समूचा सूख छोड़ दिया तो लक्ष्मण ने भाई की सेवा धर्म को निभाने के लिये अपना संपूर्ण वैभव सुख का त्यागकर प्रभु श्रीराम एवं माता सीता की सेवा मंे चैदह वर्ष उनकी सेवा में लगा दिये। वहीं श्रीराम ने वनवास के समय सभी ने अपने अपने धर्म पर चलकर आज के समाज को मार्गदर्शन दिया है। इसलिये आज हम सभी को उस मार्ग पर चलने का चिंता मनना करनपा चाहिए।
भाई तो लक्ष्मण जैसा होना चाहिए – कथा प्रसंग में व्यास जी ने लक्ष्मण के उपर प्रकाष डालते हुए कहा कि जब भगवान श्रीराम वनवास जा रहे थे तब लक्ष्मण ने अपनी माता से कहा कि मै भी वनवास जाना चाहता हूं, तो माॅं ने कहा कि मै तो सिर्फ जन्म ही दी हूं, लेकिन असली माता पिता राम-सीता है। लक्ष्मण भाई श्रीराम के प्रति समर्पित थे। इसलिये व्यास जी ने कहा कि भाई हो तो लक्ष्मण जैसा।
श्रीराम वनवास के सचित्र वर्णन से उपस्थित जनसमूह की आंखे भर आई – शीशराम ओमप्रकाश परिवार द्वारा कराये जा रहे भव्य श्रीराम कथा सप्ताह के छठवंे दिन श्रीराम वनवास एवं श्रीराम-केंवट संवाद प्रसंग के अवसर पर कथा व्यास आचार्य श्री द्वारा श्रीराम वनवास कथा का सचित्र वर्णन से कथा परिसर में उपस्थित श्रोताओं के आंखे भर आई और पूरा कथा परिसर में सन्नाटा छाया रहा।