महेंद्र सिंह टिकैत: जिनके सामने सरकारों ने कई बार टेके घुटने, जानें कैसे बने थे किसानों के मसीहा?
नए कृषि कानूनों को लेकर देश भर के किसान पिछले दो माह से राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर डटे हुए हैं। गणतंत्र दिवस पर हुई हिंसा के बाद किसान आंदोलन मंद पड़ता देख किसान नेता राकेश टिकैत रो पड़े, जिसके बाद एक बार फिर किसानों की भारी भीड़ राजधानी में जुटने लगी है। ऐसे में एक बार फिर लोगों को बाबा टिकैत की याद आ गई। आइए बताते हैं कौन थे बाबा टिकैत, जिनके आंदोलन से हिल गया था दिल्ली दरबार…
राजधानी में दो माह से जारी किसान आंदोलन को देखकर लोगों को तीन दशक पुराना एक किसान आंदोलन याद आ रहा है। आज से 32 साल पहले भारतीय किसान यूनियन के संस्थापक बाबा टिकैत यानी चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने दिल्ली को ठप कर दिया था। उस वक्त केंद्र में राजीव गांधी की सरकार थी, उन्हें किसानों के आगे झुकना ही पड़ा था।
पिछले दो माह से कड़ाके की सर्दी में सड़कों पर डटे किसानों को सत्ता से टकराने का जज्बा और प्रेरणा बाबा टिकैत से ही मिली। किसानों को अपने हक के लिए लड़ना सिखाने वाले चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के एक इशारे पर लाखों किसान जमा हो जाते थे। कहा तो यहां तक जाता था कि किसानों की मांगें पूरी कराने के लिए वह सरकारों के पास नहीं जाते थे, बल्कि उनका व्यक्तित्व इतना प्रभावी था कि सरकारें उनके दरवाजे पर आती थीं।
इस तरह चर्चा में पूरी दुनिया में छा गए थे बाबा टिकैत
चौधरी टिकैत के जीवन का सफर कांटों भरा था। 1935 में मुजफ्फरनगर के सिसौली गांव में जन्मे चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत का पूरा जीवन ग्रामीणों को संगठित करने में बीता। भारतीय किसान यूनियन के गठन के साथ ही 1986 से उनका लगातार प्रयास रहा कि यह अराजनीतिक संगठन बना रहे। 27 जनवरी, 1987 को करमूखेड़ा बिजलीघर से बिजली के स्थानीय मुद्दे पर चला आंदोलन किसानों की संगठन शक्ति के नाते पूरे देश में चर्चा में आ गया, लेकिन मेरठ की कमिश्नरी 24 दिनों के घेराव ने चौधरी साहब को वैश्विक क्षितिज पर ला खड़ा किया। इस आंदोलन ने पूरी दुनिया में सुर्खियां बटोरीं ।
सात दिन में मनवाई थीं अपनी सभी मांगें
बाबा टिकैत के नेतृत्व में कई आंदोलन हुए लेकिन एक आंदोलन ऐसा भी था, जिसे देख मौजूदा केंद्र सरकार तक कांप गई थी। 1988 के दौर की बात है नई दिल्ली वोट क्लब में 25 अक्तूबर, 1988 को बड़ी किसान पंचायत हुई। इस पंचायत में 14 राज्यों के किसान आए थे। करीब पांच लाख किसानों ने विजय चौक से लेकर इंडिया गेट तक कब्जा कर लिया था।
सात दिनों तक चले इस किसान आंदोलन का इतना व्यापक प्रभाव रहा कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार दबाव में आ गई थी। आखिरकार तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को किसानों की सभी 35 मांगे माननी पड़ीं, तब जाकर किसानों ने अपना धरना खत्म किया था। इस आंदोलन से चौधरी टिकैत ने वह कद हासिल कर लिया कि प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री भी उनके आगे झुकने लगे थे।
प्रधानमंत्री से पूछा ऐसा सवाल, सन्न रहे गए
वर्ष 1980 में हुए हर्षद मेहता कांड को लेकर राजनीतिक गलियारे में तूफान था, इसी बीच किसानों की समस्या को लेकर महेंद्र सिंह टिकैत उस वक्त के प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव से मिले, तो पीएम से सीधे पूछ लिया कि क्या आपने एक करोड़ रुपया लिया था? कोई प्रधानमंत्री से ऐसा सवाल सीधे कैसे पूछ सकता है, लेकिन उन्होंने बिना किसी हिचक के बड़ी ही बेबाकी से सवाल पूछ लिया था।
उन्होंने हर्षद मेहता का नाम लेकर प्रधानमंत्री से यह भी पूछ लिया कि वह आदमी तो पांच हजार करोड़ का घपला करके बैठा है, कई मंत्री घपला किए बैठे हैं और सरकार उनसे वसूली नहीं कर पा रही है, लेकिन किसानों को 200 रुपये की वसूली के लिए जेल क्यों भेजा जा रहा है?
जब मुख्यमंत्री ने बाबा टिकैत के गांव पहुंच की थी वार्ता…
बाबा टिकैत के नेतृत्व में वर्ष 1986 में भी बिजली की बढ़ी दरों को लेकर किसान लामबंद हुए थे। महेंद्र सिंह टिकैत को भारतीय किसान यूनियन का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया। आंदोलन का ऐसा असर था कि उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह को सिसौली (टिकैत के गांव) पहुंचकर किसानों से वार्ता करनी पड़ी। 11 अगस्त 1987 को सिसौली में एक महा पंचायत की गई, जिसमें बिजली दरों के अलावा फसलों के उचित मूल्य, गन्ने के बकाया भुगतान के साथ सामाजिक बुराइयों जैसे दहेज प्रथा, मृत्यु भोज, दिखावा, नशाबंदी, भ्रूण हत्या आदि कुरीतियों के विरुद्ध भी जन आंदोलन छेड़ने का निर्णय लिया गया।