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राधा गोविन्द धाम अमनदुला में सुश्री श्रीश्वरी देवी जी के सान्निध्य में मनेगा 64 वाँ ‘जगदगुरुत्तम-दिवस’

राधा गोविन्द धाम अमनदुला में सुश्री श्रीश्वरी देवी जी के सान्निध्य में मनेगा 64 वाँ ‘जगदगुरुत्तम-दिवस’

अमनदुला/राबर्टसन (13 जनवरी) विश्व के पंचम मूल जगदगुरुत्तम स्वामी श्री कृपालु जी महाराज की कृपा प्राप्त प्रचारिका

सुश्री श्रीश्वरी देवी जी के सान्निध्य में 64 वाँ ‘जगदगुरुत्तम-दिवस’ उनके अमनदुला (मालखरौदा) स्थित राधा गोविन्द धाम आश्रम में 14 जनवरी दिन गुरूवार को भव्य रूप से हर्षोल्लास के साथ मनाया जायेगा । जो कार्यक्रम समय सुबह 10 से शाम 4 बजे तक रहेगा ।

क्या है ‘जगदगुरुत्तम-दिवस’ का महत्व ?

गौरतलब हो कि भारतवर्ष के इतिहास में कलियुग में अब तक कुल 5 मौलिक जगदगुरु हुये हैं । स्कन्द-पुराण में भगवान श्रीकृष्ण को मूल जगदगुरु कहकर पुकारा गया है तथापि कलियुग में जीवों को आध्यात्म पथ का यथार्थ मार्गदर्शन करने के उद्देश्य से ‘जगदगुरु-परम्परा’ का प्रारम्भ हुआ । मूल जगदगुरुओं की इस परम्परा में आदि जगदगुरु श्री शंकराचार्य जी प्रथम मूल जगदगुरु हुये जो कि आज से लगभग 2500 वर्ष पूर्व हुये । उनके पश्चात क्रमशः श्री रामानुजाचार्य, श्री निम्बार्काचार्य एवं श्री माध्वाचार्य जी दूसरे, तीसरे एवं चौथे मूल जगदगुरु हुये। इनके पश्चात सन 1957 को श्री कृपालु जी महाराज को पंचम मूल जगदगुरु की उपाधि से विभूषित किया गया । यह ऐतिहासिक घटना 14 जनवरी 1957 को हुई जब भारतवर्ष के तत्कालीन 500 शास्त्रज्ञ एवं मूर्धन्य विद्वानों की एकमात्र सभा काशी विद्वत परिषत ने एकमत से यह स्वीकार किया कि श्री कृपालु जी महाराज जैसा शास्त्रज्ञ विद्वान तो आज तक नहीं देखा गया, जिनके भीतर ज्ञान और भक्ति दोनों ही अगाध रूप में विद्यमान है । उन्होंने ‘पंचम मूल जगदगुरु’ के साथ ही यह भी स्वीकार किया कि ये तो अब तक हुये पूर्ववर्ती समस्त जगदगुरुओं में भी उत्तम अर्थात ‘जगदगुरुत्तम’ हैं । साथ ही उनके निखिल दर्शनों के समन्वयात्मक प्रवचन को सुनकर यह भी स्वीकारा कि ये ‘निखिलदर्शनसमन्वयाचार्य’ हैं और हृदय में श्रीराधाकृष्ण के प्रति अगाध प्रेमाम्बुधि धारण किये साक्षात ‘भक्तियोगरसावतार’ हैं। सन 1922 में शरद-पूर्णिमा की पावन मध्यरात्रि में अवतरित श्री कृपालु जी महाराज की आयु उस समय केवल 33 वर्ष थी । काशी विद्वत परिषत के समस्त विद्वानों ने पद्यप्रसूनोपहार भेंटकर उनका अभिनंदन किया और समस्त विश्व से यह आग्रह भी किया कि अपने आध्यात्मिक कल्याण के लिये निश्चय ही श्री कृपालु जी का सान्निध्य लाभ प्राप्त करें । तब से 14 जनवरी अर्थात मकर-संक्रान्ति का यह दिन ‘जगदगुरुत्तम-दिवस’ के रूप में मनाया जाता है । समस्त मूल जगदगुरुओं में जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ही एकमात्र ऐसे जगदगुरु हुये हैं जिनकी उपस्थिति में ‘जगदगुरु-दिवस’ की 50वीं वर्षगाँठ मनाई गई है तथा ऐसे प्रथम जगदगुरु हुये जो श्रीकृष्ण-भक्ति के प्रचारार्थ विदेश गये । उन्होंने सुमधुर ‘श्रीराधा-नाम’ को विश्वव्यापी बनाया तथा अपने ‘रूपध्यान’ सिद्धान्त के द्वारा विश्व को ध्यान अथवा मेडिटेशन के यथार्थ अर्थ एवं स्वरूप से अवगत कराया । ‘प्रेम-मन्दिर’, ‘कीर्ति-मन्दिर’ एवं ‘भक्ति-मन्दिर’ के रूप में तीन दिव्य भगवत-स्मारक उनके द्वारा विश्व को दिये गये अमूल्य प्रेमोपहार हैं । उनके द्वारा प्रदत्त दिव्यज्ञान ‘प्रेम रस सिद्धान्त’ से आज अनन्त प्रेमपिपासु, जिज्ञासु जन अद्वितीय लाभ प्राप्त कर रहे हैं । ऐसे अलौकिक व्यक्तित्व की विभूति जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के ‘जगदगुरु उपाधि’ से विभूषित होने की तिथि ही ‘जगदगुरुत्तम-दिवस’ के रूप में मनाई जाती है ।

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Gopal Krishna Naik

Editor in Chief Naik News Agency Group

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