खरसियाछत्तीसगढ़रायगढ़

एक आत्मीय जुड़ाव की कहानी -माण्ड नदी और मैं…

खरसिया।माण्ड नदी, जो रायगढ़ जिले के जनजीवन की धड़कन मानी जाती है, वह केवल एक जलधारा नहीं बल्कि आस-पास के गांवों, जंगलों और लोगों की भावनाओं, संस्मरणों और संस्कृतियों से गहराई से जुड़ी हुई है। “मैं और माण्ड नदी” कोई साधारण विषय नहीं, बल्कि एक व्यक्ति और प्रकृति के बीच आत्मीय संबंध की कहानी है — एक ऐसा रिश्ता, जिसमें नदी सिर्फ बहती नहीं, बल्कि जीवन का पाठ पढ़ाती है।

क्षेत्रवासियों के लिए माण्ड नदी:


गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि उनके बचपन की सबसे सुनहरी यादें इसी नदी के किनारे से जुड़ी हैं — कहीं मछलियां पकड़ना, तो कहीं गर्मियों में तैरना और खेलना।

माण्ड नदी ने पीढ़ियों को अपनी गोद में पाला है। यह जीवनदायिनी नदी खेती की रीढ़ है, जो आस-पास के खेतों को सींचती है।

एक पत्रकार की दृष्टि से:
“जब भी मैं माण्ड नदी के किनारे बैठता हूँ, तो लगता है जैसे कोई पुराना मित्र अपने शांत स्वर में जीवन के रहस्य कह रहा हो। इसका बहाव मुझे सिखाता है कि रुकना नहीं है, चाहे राह में कितनी भी रुकावटें क्यों न हों।” —पत्रकार का, जिनकी लेखनी में माण्ड नदी की छवि बार-बार उभरती रही है।

पर्यावरणीय चिंता:
वहीं दूसरी ओर चिंता की बात यह है कि हाल के वर्षों में नदी का प्राकृतिक स्वरूप प्रभावित हुआ है। अवैध रेत खनन, जल प्रदूषण और जंगलों की कटाई से माण्ड नदी का पारिस्थितिक संतुलन डगमगाने लगा है। यदि यही स्थिति रही, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए यह ” मैं और माण्ड” का रिश्ता केवल यादों में सिमट कर रह जाएगा।

विचार करिएगा :
माण्ड नदी केवल जलधारा नहीं,बल्कि हमारी सांस्कृतिक, भावनात्मक और पारिस्थितिक विरासत है। इसकी रक्षा केवल शासन की नहीं, बल्कि हम सबकी साझा जिम्मेदारी है।

“माण्ड नदी बहे,तो सिर्फ पानी नहीं, हमारी स्मृतियां भी बहती हैं…”


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Gopal Krishna Naik

Editor in Chief Naik News Agency Group

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