‘बंद घड़ी’ तंज या सत्य का प्रतिबिंब?

विधायक उमेश पटेल की छवि पर हमला या विरोधियों की अप्रत्यक्ष स्वीकारोक्ति?
खरसिया।जहां मैनपाट के भाजपा प्रशिक्षण शिविर में राष्ट्रीय अध्यक्ष नैतिकता और संगठनात्मक अनुशासन का पाठ पढ़ा रहे हैं, वहीं राजधानी रायपुर से एक सोशल मीडिया घटना ने राजनीतिक विमर्श को नई दिशा दे दी है।
https://twitter.com/umeshpatelcgpyc/status/1942236510960427231?t=JkOCiik71i8khpKgZkGGOg&s=19
📍 प्रसंग – एक वायरल पोस्टर और उस पर उठता सवाल
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रायपुर में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के आगमन पर स्वागत हेतु शहर भर में लगाए गए कांग्रेस जनों के बैनर-पोस्टरों में एक पोस्टर ऐसा भी था जिसमें प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट और खरसिया विधायक उमेश पटेल की तस्वीरें थीं। बारिश में भीग रहे दो युवकों ने उसी पोस्टर को ओढ़कर स्वयं को बचाते हुए पैदल चल रहे थे— यह दृश्य कैमरे में कैद हुआ और कुछ ही देर में भाजपा के सोशल मीडिया हैंडल पर पोस्टर के साथ व्यंग्यात्मक टिप्पणी वायरल हो गई:
“बंद घड़ी के भी दिन में दो बार सही समय बताने वाली बात को चरितार्थ करता कांग्रेसी पोस्टर… चलिए किसी के तो काम आए कांग्रेसी”
साथ में #आईना_देखो_कांग्रेस जैसे तीखे हैशटैग ने बयान को और भी तीव्र बना दिया।
लेकिन सवाल यही है – क्या यह महज तंज है, या विरोधियों की तरफ से आई एक अनजानी स्वीकारोक्ति?
https://twitter.com/umeshpatelcgpyc/status/1942141178906124541?t=EZQ3nloVALhJsHuY0_iMdg&s=19
👤 कौन हैं उमेश पटेल?

किसी नाम परिचय के मोहताज नहीं रायगढ़ जिले के छोटे से गांव नंदेली से ताल्लुक रखने वाले उमेश पटेल, वर्तमान में खरसिया विधानसभा से कांग्रेस के विधायक हैं। एक शिक्षित, युवा और दूरदर्शी नेता के रूप में पहचान रखने वाले पटेल ने राजनीति में प्रवेश उस समय लिया, जब झीरम घाटी हमले (25 मई 2013) में उन्होंने अपने पिता शहीद नंदकुमार पटेल और भाई शहीद दिनेश पटेल को खो दिया।
उनका राजनीति में आना निजी शोक से जनसेवा की प्रेरणा का प्रतीक बन गया।
🔍 ‘बंद घड़ी’ वाले तंज की परतें क्या कहती हैं?
जब किसी जनप्रतिनिधि के खिलाफ प्रतीकात्मक हमला किया जाता है, तो वह केवल आलोचना नहीं बल्कि उनकी प्रासंगिकता का प्रमाण भी होता है। “बंद घड़ी भी दिन में दो बार सही समय बताती है” — यह कहावत भले ही उपहास के लिए कही गई हो,लेकिन इसका निष्कर्ष यही है कि वह घड़ी फिर भी ‘सही समय’ दर्शा रही है।
इस तंज में छिपा हुआ संदेश यह है कि विधायक उमेश पटेल का राजनीतिक ‘समय’ अभी पूरी तरह बंद नहीं हुआ है, बल्कि वह अब भी जनता और विरोधियों दोनों की नजरों में है। सोशल मीडिया इस बयान को एक राजनीतिक प्रतिक्रिया की तरह नहीं, बल्कि सावधान विरोध के रूप में भी देखा जा सकता है।
🗣️ जनता क्या सोचती है?
खरसिया के कई स्थानीय लोगों की राय में विधायक उमेश पटेल दिखावे की राजनीति से दूर,ज़मीनी मुद्दों पर सीधे काम करने वाले नेता हैं।
युवा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के कार्यकाल का तेवर देख चुके हैं वरिष्ठ कांग्रेस जनों के साथ मिलकर किस तरह प्रदेश के सत्ता से भाजपा को बाहर का रास्ता दिखाया था
यह धारणा दर्शाती है कि जनता परिणाम चाहती है, प्रचार नहीं।
🧭 राजनीति और प्रतीकों की राजनीति
भारतीय राजनीति में प्रतीकों का उपयोग जितना भावनात्मक होता है, उतना ही रणनीतिक भी। पोस्टर पर किया गया यह व्यंग्य भाजपा की सोशल मीडिया रणनीति का हिस्सा हो सकता है, परंतु इससे यह भी सिद्ध होता है कि विधायक उमेश पटेल अभी भी भाजपा को सत्ता से बाहर करने वाला चेहरा हैं
यदि उनकी राजनीति “बंद” होती,तो उन पर टिप्पणी की ज़रूरत ही न होती।
📌 आपकी उपस्थिति उनके लिए चुनौती …
https://twitter.com/umeshpatelcgpyc/status/1941081230570918189?t=yjQHAbGR-ye5NCnRipTxYw&s=19
राजनीति में जब विरोधी आपको तंज़ के रूप में पहचानें, तो समझिए आपकी उपस्थिति उनके लिए चुनौती बन चुकी है। ‘बंद घड़ी’ का तंज़ केवल आलोचना नहीं, एक छिपी हुई स्वीकृति भी है – कि उमेश पटेल भले हर समय न चमकें,पर जब भी चमकते हैं, असर छोड़ते हैं।
(जहां विरोधियों के तंज भी आपके पक्ष में गवाही दें, समझिए राजनीति में आप जीवित नहीं – जीवंत हैं।)



