
चपले(राबर्टसन)। श्रीराम कथा के नौ दिवसीय महोत्सव के छठवां दिन चपले राबर्टसन ग्राम में शनिवार को आयोजित कथा में पंडित अजय उपाध्याय ने श्रद्धालुओं को सत्य,मर्यादा और धर्म के वास्तविक अर्थ से परिचित कराया।

उन्होंने कहा, “राम कथा का वास्तविक आनंद तभी संभव है जब श्रोता और वक्ता सुर,लय और ताल में एकाकार होकर कथा में डूब जाएं।”

पंडित उपाध्याय ने चौपाई ‘रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाई’ का उल्लेख करते हुए बताया कि भगवान श्रीराम ने अपने जीवन से यह सिद्ध कर दिया कि मर्यादा और वचन के पालन के लिए प्राण भी न्यौछावर किए जा सकते हैं। राम केवल सत्य के प्रतिनिधि नहीं,स्वयं मर्यादा पुरुषोत्तम हैं।
बाली-सुग्रीव प्रसंग में धर्म और न्याय की व्याख्या

कथा के अगले पड़ाव में पंडित अजय उपाध्याय ने बाली और सुग्रीव के मार्मिक प्रसंग का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि यह प्रसंग केवल दो भाइयों के संघर्ष की कथा नहीं, बल्कि यह न्याय,विश्वासघात और पुनः धर्म की स्थापना की प्रेरक गाथा है। श्रीराम द्वारा बाली-वध की कथा में उन्होंने धर्म की सूक्ष्मता को स्पष्ट करते हुए बताया कि जब अन्याय शक्तिशाली हो जाए,तब उसे समाप्त करना ही धर्म है।
सुंदरकांड में प्रवेश: आशा, विश्वास और विजय का आरंभ

राम कथा के इस चरण में जैसे ही सुंदरकांड का शुभारंभ हुआ, श्रद्धालुओं के बीच भक्ति और उल्लास की लहर दौड़ गई। पंडित उपाध्याय ने बताया कि सुंदरकांड केवल हनुमानजी की वीरता की कथा नहीं, बल्कि यह व्यक्ति के आत्मविश्वास, साहस और सेवा भावना का प्रतीक है। जब हनुमानजी सीता माता की खोज में लंका पहुंचते हैं, तो वह दर्शाता है कि भक्त जब संकल्प ले तो असंभव भी संभव हो जाता है।

संदेश

पांचवे दिन की कथा ने उपस्थित श्रद्धालुओं को भाव-विभोर कर दिया। सुंदरकांड में प्रवेश के साथ कथा अब अपने चरम की ओर बढ़ रही है,जहां भक्ति,विश्वास और विजय की अनमोल सीखें प्रसारित हो रही हैं।

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