
दिव्य दरबार में श्रद्धालुओं ने लिया समाधान का आशीर्वाद
चपले: खरसिया विकास के पावन धरा चपले में 11मई से चल रही संगीतमय श्रीराम कथा का आयोजन करने वाला राम कराने वाला राम “मंदिर जाने की जरूरत नहीं, अगर भक्ति सच्ची हो तो भगवान स्वयं भक्त के पास आते हैं” — यही भाव,यही अनुभूति गुरुवार को चपले राबर्टसन ग्राम की पावन भूमि पर संगीतमय श्रीराम कथा के आयोजन में देखने को मिली। पंडित अजय उपाध्याय जी द्वारा प्रस्तुत राम वनगमन प्रसंग और केवट प्रसंग की झांकी ने श्रद्धालुओं को भाव-विभोर कर दिया।
केवट प्रसंग की मार्मिक प्रस्तुति

श्रीराम,लक्ष्मण और सीता माता के वनगमन के दौरान जब वह गंगा तट पर पहुंचे, तो केवट ने उन्हें नाव में बैठाने से पूर्व कुछ शर्तें रखीं। उसने विनम्र भाव से कहा, “मेरा नाव भी वैसी ही लकड़ी से बनी है जैसे अहिल्या बनी प्रभु के चरणों का स्पर्श हो गया तो यह भी स्त्री बन जाएगी और मैं बेरोजगार हो जाऊंगा। अत: मैं आपके चरण धोकर ही नाव में चढ़ने दूंगा।”

इस प्रसंग को इतनी मार्मिकता और भाव से प्रस्तुत किया गया कि कथा स्थल पर उपस्थित जनमानस की आंखें नम हो गईं। भावनाओं का ज्वार उमड़ पड़ा और ‘जय श्रीराम’ के गगनभेदी उद्घोष से वातावरण गूंज उठा।
दिव्य दरबार में लगा श्रद्धा का मेला

कथा के उपरांत दिव्य दरबार का आयोजन किया गया, जहां हजारों श्रद्धालुओं की उपस्थिति रही। पंडित अजय उपाध्याय जी ने नि:शुल्क माता संतोषी और हनुमान जी के नाम जाप करते रहने वाले की हाजिरी लगाने वालो समस्याओं का समाधान किया।

सामुहिक झाड़ा लगाते हुए उन्होंने मां संतोषी और हनुमान जी का जाप कराया और कहा, “आप सबके हृदय में मेरे प्रभु राम विराजमान हैं, उन्हें प्रणाम करता हूं और क्षमा चाहते हुए कहे कि पंडाल में इतनी भारी संख्या में उपस्थित जनों का परचा एक समय में निकालना सम्भव नहीं है।”

उन्होंने बताया कि 17 तारीख को एक और दिव्य दरबार आयोजित किया जाएगा, ताकि जिनकी अर्जियां स्वीकार नहीं हो पाईं, वे भी समाधान प्राप्त कर सकें। साथ ही उन्होंने श्रद्धालुओं से निवेदन किया कि वे गोडम स्थित मां संतोषी मंदिर में भी आएं, जहां देवी संतोषी और हनुमान जी की कृपा से उन्हें अवश्य मार्गदर्शन और समाधान प्राप्त होगा।
श्रद्धा और भक्ति का अनुपम संगम

चपले (राबर्टसन) ग्राम इस आयोजन के माध्यम से न केवल आध्यात्मिक ऊर्जा से ओतप्रोत हुआ, बल्कि सामाजिक और धार्मिक चेतना का भी केंद्र बना।

कथा, झांकी और दिव्य दरबार की त्रिवेणी ने लोगों को न केवल प्रभु श्रीराम के आदर्शों से जोड़ा,बल्कि उन्हें आस्था और समाधान का अद्भुत अनुभव भी प्रदान किया।
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