✍️यूं हीं…

“ज़िन्दगी: बिना सिलेबस का विद्यालय, जहां रिटेक की सुविधा नहीं!”
जीवन को अब तक लोग फिल्म,संघर्ष, सफ़र वगैरह समझते रहे,लेकिन नया ट्रेंड ये है कि इसे अब “विद्यालय” माना जाए। हां, पर यह कोई साधारण विद्यालय नहीं है — यहां कोई प्रिंसिपल नहीं, टीचर भी अदृश्य, और सिलेबस तो मानो ऊपरवाले की जेब में रखा निजी दस्तावेज हो! और मज़े की बात, यहां पढ़ाया गया पाठ दोबारा नहीं दोहराया जाता।
विशेषज्ञों की मानें तो ज़िन्दगी का यह विद्यालय UGC से मान्यता प्राप्त नहीं है, लेकिन अनुभव के मामले में ऑक्सफोर्ड-हार्वर्ड से कहीं आगे है। यहां एडमिशन जन्म लेते ही हो जाता है और डिग्री मिलती है शमशान घाट में आखिरी संस्कार के समय — वो भी बिना मार्कशीट के!
जो जीवन को सिखाने का पैसा लेकर सिखाती हैं (उर्फ़ लाइफ कोच), कहती हैं, “ज़िन्दगी में समय वापस नहीं आता। अगर आप सोच रहे हैं कि ‘काश वो दिन लौट आए’, तो माफ कीजिए, आप अभी भी प्राइमरी क्लास में ही हैं!”
अब हमारे नौनिहाल, जिन्हें इंस्टाग्राम रील्स में 15 सेकंड से ज़्यादा का ध्यान नहीं लगता, इस विद्यालय की लंबी-चौड़ी क्लासों से परेशान हैं। कल ही एक छात्र ने जीवन से तंग आकर शिकायत की, “सर, क्या ज़िन्दगी में ‘Undo’ बटन नहीं होता?” जवाब मिला, “बेटा, यहां तो ‘Save As Draft’ भी नहीं होता!”
स्थानीय कार्यक्रम में एक बुजुर्ग ने छात्र को ज्ञान देते हुए कहा, “बेटा, ज़िन्दगी की परीक्षा में ओपन बुक की उम्मीद मत रखना। यहां सवाल पहले आते हैं और जवाब बाद में समझ में आते हैं — वो भी अक्सर तब जब सब कुछ निकल चुका होता है!”
तो पाठकगण,ध्यान दीजिए — ज़िन्दगी का यह विद्यालय फेल होने वालों के लिए कोई ‘Compartment Exam’ नहीं रखता। न ही यहां किसी दोस्त की नोटबुक से उत्तर नकल किए जा सकते हैं। हर गलती आपकी है,और हर सीख भी…
जहाँ तक मुमकिन था कहानी सुनाई गई.
जब गला भर आया तो कलम उठाई गई…
✍️गोपाल कृष्ण नायक “देहाती”
(जिन्होंने खुद ज़िन्दगी के कई सबक बिना होमवर्क किए झेले हैं)