किसान आंदोलन के बीच नीति आयोग के CEO अमिताभ कांत का विवादित बयान
नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने मंगलवार को कहा कि भारत में ‘कड़े’ सुधार को लागू करना बहुत मुश्किल है. भारत समेत तीसरी दुनिया के देशों में आर्थिक नीतियों को कॉर्पोरेट फ्रेंडली बनाने की प्रक्रिया को रिफॉर्म यानी सुधार नाम दिया जाता है. या फिर नीतियों को उदार बनाने की बात कही जाती है.
अमिताभ कांत ने कहा कि भारत में लोकतंत्र कुछ ज़्यादा ही है लेकिन मोदी सरकार सभी सेक्टरों में सुधार को लेकर साहस और प्रतिबद्धता के साथ आगे बढ़ रही है. उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने कोल, श्रम और कृषि क्षेत्र में सुधार को लेकर साहस दिखाया है.
भारत के किसानों का एक बड़ा तबका जब मोदी सरकार के तीन नए कृषि क़ानूनों को रद्द करने के लिए विरोध कर रहा है ऐसे में नीति आयोग के सीईओ ने कहा है कि भारत में कुछ ज़्यादा ही लोकतंत्र है. किसान और सरकार के बीच बातचीत चल रही है. अमिताभ कांत ने मोदी सरकार के कृषि क़ानून का भी बचाव किया और कहा कि इससे किसानों को विकल्प मिलेगा.
अमिताभ कांत स्वराज पत्रिका की ओर से आयोजित ‘आत्मनिर्भर भारत की राह’ विषय पर एक ऑन लाइन इवेंट में बोल रहे थे. अमिताभ कांत ने कहा कि इन सुधारों की ज़रूरत है ताकि मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में चीन से मुक़ाबला किया जा सके.
अमिताभ कांत से पूछा गया कि अगर कोविड 19 महामारी में भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब बनने का मौक़ा दिया है लेकिन ऐसी कोशिश तो पहले भी की गई थी. इस पर नीति आयोग के सीईओ ने कहा, ”भारत में कड़े सुधारों को लागू करना बहुत मुश्किल है. हमारे यहां लोकतंत्र कुछ ज़्यादा ही है. पहली बार कोई सरकार हर सेक्टर में सुधारों को लेकर साहस और प्रतिबद्धता दिखा रही है. कोल, कृषि और श्रम सेक्टर में सुधार किए गए हैं. ये बहुत ही मुश्किल रिफ़ॉर्म हैं. इन्हें लागू करने के लिए गंभीर राजनीतिक प्रतिबद्धता की ज़रूरत होती है.”
अमिताभ कांत यह कहना कि भारत में लोकतंत्र कुछ ज़्यादा ही है विवादों में घिर गया.
सुप्रीम कोर्ट के जाने-माने वकील प्रशांत भूषण ने ट्वीट कर अमिताभ कांत पर निशाना साधा है. प्रशांत भूषण ने लिखा है, ”आलोचना के बाद अमिताभ कांत ने अपने बयान से पल्ला झाड़ लिया. इसके बाद मीडिया में भी स्टोरी डिलीटी कर दी गई लेकिन वीडियो डिलीट करना भूल गए.” प्रशांत भूषण ने अमिताभ कांत की कही बातों के उस हिस्से का वीडियो भी पोस्ट किया है.
विवाद के बाद अमिताभ कांत ने भी ट्विटर पर स्पष्टीकरण जारी किया है. उन्होंने ट्वीट कर कहा, ”मैंने जो कहा है वो ये बिल्कुल नहीं है. मैं मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को लेकर बोल रहा था.”
हाई कोर्ट के वकील नवदीप सिंह ने अमिताभ कांत की आलोचना करते हुए ट्वीट किया है, ”जो सरकारी पदों पर हैं उन्हें सार्वजनिक रूप से बोलते वक़्त अपने शब्दों के लेकर सावधान रहना चाहिए. ज़्यादा लोकतंत्र होने का मतलब क्या है?”
क्या भारत में वाक़ई कुछ ज़्यादा ही लोकतंत्र है?
हाल ही में स्वीडन स्थित एक संस्था ‘वी- डेम इंस्टीट्यूट’ ने अपनी रिपोर्ट में संकेत दिए हैं कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देशों में से एक कहे जाने वाले भारत में लोकतंत्र कमज़ोर पड़ रहा है,
वी- डेम इंस्टीट्यूट की ‘2020 की लोकतंत्र रिपोर्ट’ केवल भारत के बारे में नहीं है. इस रिपोर्ट में दुनियाभर के कई देश शामिल हैं, जिनके बारे में ये रिपोर्ट दावा करती है कि वहाँ लोकतंत्र कमज़ोर पड़ता जा रहा है.
इस रिपोर्ट को तैयार करने वाली स्वीडन के गोटेनबर्ग विश्वविद्यालय से जुड़ी संस्था वी- डेम इंस्टीट्यूट के अधिकारी कहते हैं कि भारत में लोकतंत्र की बिगड़ती स्थिति की उन्हें चिंता है. रिपोर्ट में ‘उदार लोकतंत्र सूचकांक’ में भारत को 179 देशों में 90वाँ स्थान दिया गया है और डेनमार्क को पहला.
भारत का पड़ोसी देश श्रीलंका 70वें स्थान पर है जबकि नेपाल 72वें नंबर पर है. इस सूची में भारत से नीचे पाकिस्तान 126वें नंबर पर है और बांग्लादेश 154वें स्थान पर.
इस रिपोर्ट में भारत पर अलग से कोई चैप्टर नहीं है, लेकिन इसमें कहा गया है कि मीडिया, सिविल सोसाइटी और मोदी सरकार में विपक्ष के विरोध की जगह कम होती जा रही है, जिसके कारण लोकतंत्र के रूप में भारत अपना स्थान खोने की क़गार पर है.
मार्च 2019 में भारत के जाने-माने चिंतक प्रताप भानु मेहता ने अपने एक लेख में कहा था, ”मुझे ऐसा लग रहा है कि हमारे लोकतंत्र के साथ कुछ ऐसा हो रहा है जो लोकतांत्रिक आत्मा को ख़त्म कर रहा है. हम गुस्से से उबलते दिल, छोटे दिमाग और संकीर्ण आत्मा वाले राष्ट्र के तौर पर निर्मित होते जा रहे हैं.”
उन्होंने कहा था, ”कुछ मायने में लोकतंत्र आजादी, उत्सव का नाम है, ऐसी व्यवस्था में लोग कहां जाएंगे इसे जानना महत्वपूर्ण होता है न कि पीछे कहां से आएं हैं. इस लोकतंत्र में हम क्या खोते जा रहे हैं, इस पर एक नज़र डाल लेते हैं. आप में से कितने लोग नेशनलिस्ट हैं. हाथ ऊपर कीजिए. जिन लोगों ने हाथ ऊपर किए हैं उनमें से कितने लोगों के पास सर्टिफिकेट है, ये दिखाने के लिए आप नेशनलिस्ट हैं. यानी हमारी नेशनलिज्म हमसे ले ली गई है.’