हुनर के आगे निंदा फीकी: निंदा की बौछार से हुनर कहाँ झुकता है,धूल की उड़ान से सूर्य कहाँ छुपता है…
खरसिया।समाज में अक्सर ऐसा देखा जाता है कि जब कोई व्यक्ति अपनी काबिलियत और मेहनत से सफलता की ऊंचाइयों को छूता है, तो उसकी निंदा भी होने लगती है। लेकिन सच्चा हुनर कभी निंदा से नहीं झुकता। उपरोक्त पंक्तियाँ “निंदा की बौछार से हुनर कहाँ झुकता है, धूल की उड़ान से सूर्य कहाँ छुपता है” इस सत्य को बखूबी उजागर करती हैं।
स्थानीय उद्यमियों और कलाकारों के लिए प्रेरणा
खरसिया में कई उद्यमी और कलाकार हैं जो अपने हुनर और मेहनत के दम पर देश प्रदेश में बड़ी सफलता हासिल कर रहे हैं। लेकिन सफलता के साथ ही आलोचनाएँ और निंदा भी उनके रास्ते में आती हैं। इस संदर्भ में इन पंक्तियों का महत्व और भी बढ़ जाता है। यह पंक्तियाँ एक मजबूत संदेश देती हैं कि चाहे कितनी भी निंदा हो,सच्चे हुनर को कोई नहीं दबा सकता,जैसे धूल का उड़ना सूर्य की चमक को नहीं रोक सकता।
युवा पीढ़ी के लिए सबक
खरसिया क्षेत्र के युवा,जो अपने करियर में नई ऊंचाइयों को छूने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, के लिए यह पंक्तियाँ एक सबक हैं। वे इस बात को समझ सकते हैं कि जीवन में आलोचना और नकारात्मकता का सामना करना स्वाभाविक है, लेकिन उन्हें इससे प्रभावित हुए बिना अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहना चाहिए।
समाज में सकारात्मकता का प्रसार
इस तरह के प्रेरणादायक विचार समाज में सकारात्मकता फैलाने का काम करते हैं। जब लोग इन पंक्तियों का मतलब समझते हैं, तो वे खुद भी दूसरों की आलोचना करने के बजाय उनकी काबिलियत को समझने और सराहने की कोशिश करते हैं। यह समाज में एक स्वस्थ और प्रगतिशील माहौल बनाने में सहायक होता है।
खरसिया क्षेत्र के नागरिकों के बीच यह पंक्तियाँ आजकल चर्चा का विषय बनी हुई हैं। यह केवल एक कविता नहीं, बल्कि जीवन का वह सत्य है जो हमें निरंतर आगे बढ़ने और चुनौतियों का सामना करने की प्रेरणा देता है।




