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दिग्गज महिला नेताओं की पसंद बना यूपी का अवध क्षेत्र, विजय लक्ष्मी से लेकर इंदिरा गांधी तक ने छोड़ी छाप…

लखनऊ। उत्तर प्रदेश का अवध क्षेत्र राजनीति में बुलंदियों को छूने वाली कई दिग्गज महिला नेताओं का पसंदीदा रहा है। अतीत में हुए आम चुनावों में लोकसभा में अवध क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाली इन महिलाओं में से कुछ ने तो वैश्विक क्षितिज पर अपना और देश का नाम रोशन किया तो कुछ ने राष्ट्रीय राजनीति पर अपनी छाप छोड़कर नाम कमाया।
देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की बहन विजय लक्ष्मी पंडित को संयुक्त राष्ट्र महासभा की पहली महिला अध्यक्ष होने का गौरव प्राप्त था। स्वतंत्रता से पूर्व वर्ष 1937 में हुए संयुक्त प्रांत के चुनाव में वह कानपुर-बिल्हौर सीट से जीतकर कैबिनेट मंत्री का ओहदा पाने वाली पहली भारतीय महिला थीं, लेकिन आजादी के बाद हुए पहले आम चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में लोकसभा पहुंचने के लिए उन्होंने लखनऊ संसदीय सीट को चुना और कामयाब भी हुईं।

पहले हिंदू महासभा और बाद में भारतीय जनसंघ से जुड़ीं शकुन्तला नायर का भी अवध क्षेत्र से बेहद जुड़ाव रहा। शकुन्तला भारतीय सिविल सेवा के अधिकारी केके नायर की पत्नी थीं। वर्ष 1949 में जब अयोध्या में राम जन्मभूमि पर रामलला का प्राकट्य हुआ,तब नायर ही फैजाबाद के जिला मजिस्ट्रेट थे।शकुन्तला नायर ने पहले आम चुनाव में हिंदू महासभा के प्रत्याशी के रूप में गोंडा पश्चिम (कालांतर में कैसरगंज) सीट से जीत दर्जकर लोकसभा में कदम रखा।
बाद में वह भारतीय जनसंघ की प्रत्याशी के तौर पर वर्ष 1967 और 1971 के आम चुनावों में कैसरगंज सीट से जीतकर चौथी और पांचवीं लोकसभा की सदस्य बनीं। आइसीएस से त्यागपत्र दे चुके उनके पति केके नायर भी 1967 में भारतीय जनसंघ के उम्मीदवार के रूप में पड़ोस की बहराइच सीट से जीतकर लोकसभा पहुंचे। पति-पत्नी दोनों चौथी लोकसभा के सदस्य थे।

देश की पहली महिला मुख्यमंत्री सुचेता कृपलानी ने अपना संसदीय सफर दिल्ली से शुरू किया था, लेकिन उनकी संसदीय यात्रा का अंतिम पड़ाव अवध क्षेत्र ही रहा। पहले दो आम चुनाव नई दिल्ली से जीतने वाली सुचेता कृपलानी ने कालांतर में उप्र को अपना कर्मक्षेत्र बनाया। वह अक्टूबर 1963 से मार्च 1967 तक उप्र की मुख्यमंत्री रहीं। 1967 में हुए चौथे आम चुनाव में गोंडा सीट से जीत दर्जकर लोकसभा की देहरी लांघी। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पति फिरोज गांधी के न रहने पर उनके संसदीय क्षेत्र रायबरेली को अपनी कर्मभूमि बनाया।

इस सीट से 1967, 1971 और 1980 में चुनाव जीतकर उन्होंने रायबरेली को प्रदेश के वीआइपी संसदीय क्षेत्र का दर्जा दिलाया। यह बात और है कि आपातकाल से उपजी सत्ताविरोधी लहर में वह 1977 में रायबरेली से चुनाव हार गई थीं। इंदिरा गांधी की मामी शीला कौल केंद्र सरकार में मंत्री रहीं और बाद में हिमाचल प्रदेश की राज्यपाल भी बनीं। उन्होंने संसद में पांच बार अवध क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया।

वह वर्ष 1971, 1980 और 1984 में क्रमश: पांचवीं, सातवीं और आठवीं लोकसभा के चुनाव में प्रदेश की राजधानी लखनऊ से जीतकर संसद पहुंचीं। वहीं इंदिरा गांधी के न रहने पर उन्होंने रायबरेली सीट का दो बार संसद में प्रतिनिधित्व किया। वह 1989 और 1991 में रायबरेली से नौवीं और दसवीं लोकसभा की सदस्य रहीं। अपने पति पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के बाद राजनीति में पदार्पण करने वाली सोनिया गांधी ने यूं तो शुरुआत में स्वयं को चुनावी राजनीति से दूर रखा, लेकिन अपनी सास इंदिरा गांधी की तरह अंततोगत्वा उन्हें भी 1999 में अपने दिवंगत पति के संसदीय क्षेत्र अमेठी में मोर्चा संभालना पड़ा।

1999 में सोनिया अमेठी से जीतकर लोकसभा पहुंची…
1999 में सोनिया अमेठी से जीतकर लोकसभा पहुंची तो 2004 में उन्होंने यह सीट अपने पुत्र राहुल गांधी के लिए छोड़ी, जिन्होंने तीन बार संसद में अमेठी का प्रतिनिधित्व किया। राहुल को अमेठी सौंपकर सोनिया 2004 में सास की सीट रही रायबरेली पहुंचीं। रायबरेली ने सोनिया को सिर-माथे पर बैठाया और उन्होंने 2004 से 2019 तक लोकसभा में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं मायावती का भी अवध क्षेत्र से विशेष लगाव रहा।

मायावती ने 1989 में अपना संसदीय सफर बिजनौर सीट से शुरू किया था, लेकिन बाद में उन्हें अकबरपुर (सुरक्षित) सीट (परिसीमन के बाद अंबेडकरनगर) ही अपने लिए सबसे मुफीद लगी। अंबेडकरनगर (सुरक्षित) सीट से उन्होंने वर्ष 1998, 1999 और 2004 में हुए लोकसभा चुनाव जीते। कांग्रेस की वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री राजेन्द्र कुमारी बाजपेई 1980, 1984 और 1989 के आम चुनावों में सीतापुर सीट से जीतकर लोकसभा पहुंचने में सफल रहीं।

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Gopal Krishna Naik

Editor in Chief Naik News Agency Group

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