होली के साथ मनाया जाएगा International Women’s Day…
हर साल 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। इस दिन महिलाओं के अधिकारों और सम्मान को लेकर समाज को जागरूक किया जाता है। दुनियाभर में महिलाओं को समाज में समान सम्मान दिलाने के लिए महिला दिवस के मौके पर विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
इसी कड़ी में महिला दिवस के मौके पर हम उन भारतीय महिलाओं के योगदान को याद करेंगे जो समाज के लिए एक मिसाल बन गईं। आज भारत में कई महिला बहुत से क्षेत्रो में आगे हैं। हम आपको महिला दिवस के खास मौके पर इस लेख में साहस का परिचय देने वाली विभिन्न क्षेत्रो में उपलब्धि हासिल करने वाली पहली भारतीय महिलाओ के बारें में बताएँगे।
आनंदी गोपाल जोशी जो की भारत की पहली महिला डॉक्टर के नाम से जानी जाती हैं। इनका जन्म महाराष्ट्र में ठाणे के कल्याण में 31 मार्च 1865 में हुआ था। वो एक ब्राह्मण परिवार में पैदा हुई थीं। उनके बचपन का नाम यमुना था। जब वे महज 9 साल की थीं तो 20 साल बड़े गोपालराव जोशी से उनकी शादी हो गई। शादी के बाद उनका नया नाम आनंदी हो गया।
14 साल की उम्र में आनंदी मां बन गईं। लेकिन 10 दिन के बाद ही उनके बच्चे की मौत हो गई। दरअसल, उनके बच्चे को ठीक से इलाज नहीं मिल सका था। इस घटना से वे काफी व्यथित हुईं और उन्होंने डॉक्टर बनने का संकल्प ले लिया। उनके पति गोपालराव ने उन्हें
उन्हें कोलकाता ले गए, जहां आनंदी ने संस्कृत और अंग्रेजी भाषा में शिक्षा ली। आनंदी के पति गोपालराव ने 1980 में एक लोकप्रिय अमेरिकी मिशनरी रॉयल वाइल्डर को खत भेज कर अमेरिका में पढ़ाई की जानकारी ली। इस पत्राचार को वाइल्डर ने उनके प्रिंसटन की मिशनरी समीक्षा में पब्लिश किया। जिसे पढ़कर न्यू जर्सी के रहने वाले शख्स थॉडिसीया कार्पेन्टर काफी प्रभावित हुए और आनंदीबाई को अमेरिका जाने की अनुमति मिल गई।
खराब स्वास्थ्य के बावजूद आनंदी अमेरिका पहुंची। 1883 में गोपालराव ने पत्नी को अमेरिका में मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए भेजा। उन्होंने पेनसिल्वेनिया की वुमन मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लिया। 19 साल की उम्र में मेडिकल की पढाई शुरू की। ठंडे मौसम में वो तपेदिक की शिकार हो गईं। बावजूद इसके उन्होंने 11 मार्च 1885 को एमडी से स्नातक की डिग्री हासिल कीं। 1886 में जब वो डॉक्टर बनने का सपना पूरा कर भारत लौंटी तो उनकी सेहत और बिगड़ गई। 26 फरवरी 1887 में उनकी मृत्यु हो गई। 21 साल की उम्र में वो इस दुनिया को छोड़ गई। इलाज करने का उनका संकल्प तो पूरा नहीं हुआ, लेकिन भारत समेत दुनियाभर की लड़कियों के लिए वे एक मिसाल बन गईं।
भारत की पहली महिला पॉयलट
सरला ठकराल का जन्म 8 अगस्त 1914 में ब्रिटिश भारत में हुआ था। जब सरला 16 साल की थीं, तभी उनका विवाह पीडी शर्मा से हो गया था, जो कि एक प्रशिक्षित पायलट थे। सरला को उनके पति ने उड़ान भरने को लेकर प्रोत्साहित किया। सरला ठकराल के पति के अलावा उनके ससुराल में 9 सदस्य पायलट थे। सरला के पति को पहले भारतीय एयर मेल पायलट का लाइसेंस मिला था। वह कराची से लाहौर के बीच की उड़ान भरते थे। सरला ठकराल भी लाहौर फ्लाइंग क्लब की सदस्य रहीं। जब सरला की ट्रेनिंग पूरी हो गई और आवश्यक उड़ान के घंटे पूरे हो गए, तो उनके प्रशिक्षक चाहते थे कि सरला सोलो उड़ान भरें। उनके साथ के किसी भी सदस्य को इस बात से आपत्ति नहीं थी, केवल फ्लाइंग क्लब के एक क्लर्क को छोड़कर।
‘ए लाइसेंस’ प्राप्त करने वाली पहली भारतीय महिला
सरला ठकराल एक हजार घंटे की उड़ान पूरा करने वाली पहली ए लाइसेंस प्राप्त भारतीय महिला भी थीं। सरला के ससुर ने भी उनका साथ दिया लेकिन बाद में 1939 में जब सरला कमर्शियल पायलट लाइसेंस के लिए मेहनत कर रही थी, तभी दूसरे विश्व युद्ध के कारण उनकी ट्रेनिंग बीच में ही रोकनी पड़ी। इस दौरान एक विमान हादसे में सरला ठकराल के पति की मौत हो गई। सरला उस समय महज 24 साल की थीं। इस घटना के बाद उन्होंने पायलट बनने के सपने को छोड़ दिया और भारत वापस आ गईं। यहां उन्होंने मेयो स्कूल ऑफ आर्ट में दाखिला लिया और पेंटिंग सीखने के साथ ही फाइन आर्ट में डिप्लोमा हासिल किया।
1947 में जब भारत पाकिस्तान का विभाजन हुआ तो सरला अपनी दोनों बेटियों के साथ दिल्ली आकर रहने लगीं। एक साल बाद उन्होंने पीपी ठकराल नाम के व्यक्ति से शादी कर ली। सरला ने अपने जीवन की नई शुरुआत करते हुए कपड़े और गहने डिजाइन करने की दिशा में कदम रखा और लगभग 20 साल तक कुटीर उद्योगों से जुड़ी रहीं। देश की होनहार महिला पायलट ने एक व्यवसायी के रोल को भी बखूबी निभाया। 15 मार्च 2008 में उनका निधन हो गया। लेकिन उनकी उपलब्धि, साहस और संघर्ष की कहानी हर महिला के लिए प्रेरणा बन गई।
भारत की पहली महिला इंजीनियर
ए ललिता का पूरा नाम अय्योलासोमायाजुला ललिता था। उनका जन्म 27 अगस्त 1919 को चेन्नई में हुआ था। ए ललिता के पिता का नाम पप्पू सुब्बा राव था, जो पेशे से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर थे। ललिता अपने माता पिता की पांचवी संतान थी। जिसके बाद उनके दो छोटे भाई-बहन और थे।
जब ललिता महज 15 साल की थीं, जो उनकी शादी कर दी गई। हालांकि शादी के समय वह मैट्रिक पास कर चुकी थीं। शादी के बाद उन्होंने एक बेटी को जन्म दिया। उनके पति की मौत बाद वह अपनी बेटी के साथ रहने लगीं। पिता ने बेटी ललिता के दर्द को समझा और उन्हें ससुराल से वापस मायके ले आए। खुद की और बेटी की जिंदगी को संवारने के लिए ए ललिता ने दोबारा शिक्षा शुरू करने के बारे में सोचा। इंजीनियरिंग का प्रभाव उनपर बचपन से ही पड़ चुका था, ऐसे में इंजिनियरिंग को अपना लक्ष्य बनाते हुए उन्होंने पढ़ाई शुरू की।
परिवार के समर्थन पर ललिता ने मद्रास काॅलेज आफ इंजीनियरिंग में दाखिला लिया। उस दौरान लड़कियों के लिए इंजीनियरिंग काॅलेज में हाॅस्टल तक नहीं थे। दो और लड़कियों ने इंजीनियरिंग में दाखिला लिया और ललीता समेत तीनों ने हाॅस्टल में रहकर 1943 में अपनी डिग्री हासिल कर ली। इसी के साथ वह भारत की पहली महिला इंजीनियर बन गईं। ललिता ने बिहार के जमालपुर में रेलवे वर्कशॉप में अप्रेंटिस की। फिर शिमला के सेंट्रल स्टैंडर्ड ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इंडिया में इंजीनियरिंग असिस्टेंट के पद पर कार्य किया। यूके में लंदन के इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स से ग्रेजुएट शिप एग्जाम भी दिया और अपने पिता के साथ रिसर्च कार्य में भी जुड़ीं। ए ललिता भारत के सबसे बड़े भाखड़ा नांगल बांध के लिए जनरेटर प्रोजेक्ट का हिस्सा बनीं। यह उनके सबसे प्रसिद्ध कामों में से एक है। 1964 में पहले इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस आफ वुमन इंजीनियर एंड साइंटिस्ट कार्यक्रम के आयोजन में उन्हें आमंत्रित किया गया। 1979 में 60 साल की उम्र में ए ललिता का निधन हो गया।
भारत की पहली महिला जज
अन्ना चांडी केरल की रहने वाली थीं। उनका जन्म चार मई 1905 को केरल (उस समय का त्रावणकोर) के त्रिवेंद्रम में हुआ था। उनका ताल्लुक एक ईसाई परिवार से था। 1926 में अन्ना चांडी ने कानून में ग्रेजुएशन की डिग्री ली। बड़ी बात ये है कि उस दौर में अन्ना लॉ की डिग्री लेने वालीं केरल की पहली महिला थीं। अन्ना ने अपने करियर की शुरुआत बतौर बैरिस्टर की और अदालत में प्रैक्टिस शुरू की। लगभग 10 साल बाद 1937 में केरल के दीवान सर सीपी रामास्वामी अय्यर ने चांडी को मुंसिफ के तौर पर नियुक्त किया।
उनका पद बढ़ता गया और उपलब्धियां भी। 1948 में अन्ना चांडी का जिला जज के तौर पर प्रमोशन हो गया। उस समय तक भारत के किसी भी हाई कोर्ट में कोई महिला जज नहीं थी। इसके बाद 1959 में अन्ना चांडी केरल हाईकोर्ट की पहली महिला जज बन गईं। केरल हाईकोर्ट के न्यायाधीश के पद पर जस्टिस अन्ना ने साल 1967 तक सेवाएं दीं, जिसके बाद उनका रिटायरमेंट हो गया। हालांकि अन्ना रिटायरमेंट के बाद भी न्याय के लिये कर करती रहीं और बाद में लॉ कमीशन ऑफ इंडिया में नियुक्त हो गईं।
अन्ना चांडी महिलाओं के अधिकारों के लिए हमेशा अपनी आवाज बुलंद करती रहीं। इस काम के लिए उन्होंने ‘श्रीमती’ नाम से एक पत्रिका भी निकाली थी, जिसमें महिलाओं से जुड़े मुद्दों को जोर-शोर से उठाया जाता था। इसके अलावा ‘आत्मकथा’ नाम से उनकी ऑटोबायोग्राफी भी है। केरल में साल 1996 में 91 साल की उम्र में अन्ना चांडी का निधन हो गया।
समाज से लेकर देश की उन्नति, विकास एवं प्रगति में महिलाओं की अहम भूमिका रही है, आइये देश का गौरव बढ़ा रही समस्त महिलाओं को नमन करें। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामनाएं। pic.twitter.com/Sg1AgOdp6p
— Umesh Nandkumar Patel (@umeshpatelcgpyc) March 8, 2023