भागवत कथा आज भी प्रासंगिक
हमारे धर्म ग्रंथ लोगों को रास्ता दिखा रहे — देवी चित्रलेखा
राजेश शर्मा @खरसिया। श्रीमद् भागवत कथा वाचक धर्मगुरू देवी चित्रलेखा ने शुक्रवार को पत्रकारों से चर्चा करते हुए कहा कि भागवत कथा आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी उस समय थी जब इन्हें लिखा गया था। आज भी न्यायालय में भागवत गीता की शपथ दिलाई जाती है। हमारे ऋषि मुनि, संत इतने दूरदर्शी थे कि उन्हें पता था कि कलयुग आएगा और उस समय हमारे धर्म ग्रंथ लोगों को रास्ता दिखाएंगे।
उन्होंने कहा कि भागवत कथा जैसे धार्मिक आयोजन समाज को जोडऩे तथा दिशा देने का काम करते हैं। पहले ये कथाएं बुजुर्गों तक सीमित थीं पर अब युवा पीढ़ी भी इनमें रुचि ले रही है।हमारी शिक्षा पद्धति में धर्म का समावेश आवश्यक है।
विदेशों में गीता, पुराण व वेदों को उच्च शिक्षा में समाहित किया गया है। हमें अपनी संस्कृति को अपनाने में संकोच होता है। भारत में पाश्चात्य सभ्यता सिर चढ़कर बोल रहा है पर आध्यात्म रहित वैभव से भी लोगों को शांति नहीं मिल रही है। मन व आत्मा की शांति के लिए सत्संग आवश्यक है। इसके बिना हम अधूरे रहेंगे। आंतरिक सुख का स्त्रोत धर्म ही है। उन्होंने कहा कि वह सात वर्ष की बाल्यकाल से भागवत कथा के प्रचार-प्रसार में जुटी हुई है। उनके बचपन से माता पिता एवं गुरु के कारण सनातन धर्म में रुचि रही। ब्रज की भूमि से होने के कारण भागवत एवं धर्म के संस्कार बचपन से ही मिले हैं। गुरु जी के आशीर्वाद से सात वर्ष की छोटी उम्र में ही भागवत कथा कहने का सौभाग्य मिला।
नगर में बड़ा भैणिया परिवार द्वारा पितृमोक्षार्थ 28 अगस्त से 3 सितंबर तक श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ का आयोजन किया जा रहा है जिसमें कथा वाचक के रूप में पधारी देवी चित्रलेखा ने स्थानीय मदन मोहन गौशाला में पत्रकार वार्ता में एक सवाल का जवाब देते हुए कहे
कि गौ माता को पुरातन काल से पूज्यनीय
माना जाता रहा है। आज उसे संरक्षण एवं संवर्धन की जरूरत है।वह स्वयं ब्रज वृंदावन में गौ सेवाधाम हास्पिटल चलाती हैं जहां गौ माताओं का उपचार एवं देखभाल नि: स्वार्थ रुप से की जाती है।
गाय को जयकारे की नही चारे की जरूरत है
चित्रलेखा देवी में देश में बढ़ रहे क़त्ल खानों पर चिंता जताई और कहा कि गोवंश को संरक्षण एवं संवर्धन की जरूरत है। उन्होंने कहा कि आज एक हिंदू ही ध्वजा लेकर गौ माता के जयकारे तो लगाता है लेकिन गौ माता की किस तरह सेवा की जानी है भूल जाता है।
वृद्ध एवं लाचार होने के बाद सेवा और देखरेख की बजाय लोग गौवंश से मुंह मोड़ लेते हैं। उन्होंने कहा कि गौ माता को जयकारे की नही बल्कि चारे की जरूरत है।