कलह और कलहिन को लेकर सरकार बाबा के विचार…

आत्माराम से मेरा यही निवेदन है कि जहाँ भी रहें, जिस भी परिस्थिति में रहें कलह और कलहिनरूपी शैतान से देखा देखी न हो। इनके बारे में ना ही सुनूं और ना ही इन्हें देखूं। जो इनमें रत हैं, उनका भी संग न हो और हो सके तो उसका मुँह भी न देखूँ। इससे अपकीर्ति के सिवाय और क्या किसी के हाथ आया है। कलह और कलहिन का यही आदर्श है और उनका यहीं आचरण भी है कि दूसरे शान्तिप्रियजनों को उद्विगनता पैदा करें, घर-घर, भाई-भाई, ग्राम-ग्राम, नगर-नगर, देश-देश। उस ईश्वर की आत्मा से मेरी यही प्रार्थना है कि हमें इनकी आवश्यकता नहीं। इसे वे सभी मनुष्य प्राणी महसूस करते हैं जो शान्ति, प्रेम और ईश्वर की आत्मा में विश्वास करते हैं। सभी तरह के सुख, शान्ति और सुविधा को छीन लेते हैं, यही कलह और कलहिन। इनके आगमन से निद्रा हराम हो जाती है। और तो और क्रोध का प्रादुर्भाव हो जाता है, पाप के बाप लोभ का भी आगमन हो जाता है। और घर में सिंहनी के रहते हुए लोमड़ियों के साथ चिपकने को काम उकसाता रहता है। कलह और कलहिन ग्राम के महिलाओं में प्रविष्ट होकर सास और पतोहू को भी चैन से नहीं रहने देती, उनकी शान्ति भंग कर डंडा, लोटा जो भी उनके सामने अस्त्र मिलता है, उसका प्रयोग प्रारम्भ करा देती है। यहांँ तक की झोंटा-झोंटी भी आरम्भ करा देती है। यह महामाया की जन्मदात्री हैं। यह साधु को भी बीहड़ता से ठगती है और चोर को भी ठगती है। शासन वर्ग को तो उठा पटकती है। कलह और कलहिन का यही माहौल है। कलह मनुष्य के मस्तिष्क के विकृति की जननी है। कालेज से लेकर विश्वविद्यालयों तक, विद्यार्थियों से लेकर कुलपतियों तक को इन कलह और कलहिन ने अपने रंग में रंग रखा है, तो हम अदने देहाती साधु अभ्यागतों को क्यों नहीं नाच नचा सकते हैं। तलवार तोड़ और तुरवान सही दृष्टि से इसे देखो, समझो और इसकी व्यापकता को हटा सकने में यदि तुम अपना करिश्मा दिखाओ तो यह तुम्हारे लोगों के जीवन की महान सार्थकता होगी। किसी भी राजनीतिज्ञ के संग और संगठन से दूर रहना। यह तुम्हारे लिए और तुम्हारी शान्ति के लिए लाभदायक होगा। धर्म ग्रंथों के पीछे तो बिल्कुल नहीं जाना। अमानवीय कर्म करने में इनको जरा भी लज्जा नहीं आती है। इसलिए इनसे सभी मानवों को दूर रहने के लिए हरसंभव प्रयास करना चाहिए.
— परम्पूज्य अघोरेश्वर भगवान राम जी.




