छत्तीसगढ़

भ्रस्टाचार की भेंट चढ़ी 8 करोड़ की सड़क

बीजापुर। जहां निर्माण एजेंसी और ठेकेदार के बीच मिलीभगत हो जाए वहां निर्माण कार्य का भगवान ही मालिक है।जीता-जागता उदाहरण है 12.5 किमी लंबा आवापल्ली-उसूर मार्ग।अब से कुछ माह पहले 8 करोड़ रुपए की लागत से बना यह डामर रोड पहली बरसात में पानी में बह गया था।तब से अब तक इसकी दशा दिन-प्रतिदिन बद से बदतर होती चली गई। आज मौके पर रास्ता तो है मगर डामर रोड पूरी तरह से नदारद हो चुकी है।ग्रामीणों की मांग और जनप्रतिनिधियों के सतत प्रयासों से स्वीकृत यह रोड लोक निर्माण विभाग से बनवाया गया था। रोड निर्माण जिले के सबसे बड़े ठेकेदार की स्टोन इंफ़्रा प्राइवेट कंपनी के हाथों में था।रोड के जड़ से उखड़ जाने और आवागमन में असुविधा होने के कारण ग्रामीणों में जबर्दस्त आक्रोश है। विभाग और ठेकेदार को पानी पी-पीकर कोसने वाले ग्रामीणों की शिकायत शासन और प्रशासन के कारिंदों के मौन को लेकर भी है।शिकायतों के बाद भी विभागीय अधिकारियों और ठेकेदार के कानों पर जूं तक नहीं रेंग पाई है।

गौरतलब है कि कुछ माह पहले जब यह रोड बनाया जा रहा था। इसके टिकाऊपन और काम की गुणवत्ता को लेकर सवालिया निशान लगने शुरु हो गए थे। विभागीय अधिकारियों से लेकर प्रशासन तक का ध्यान घपलेबाजी की ओर आकृष्ट कराया जा रहा था। बावजूद इसके ठेकेदार के साथ मिलीभगत किए बैठे विभाग के अधिकारियों ने अपने कानों से रुई बाहर नहीं निकाली। नतीजा यह रहा कि निर्माण के बाद पहली बरसात की बौछारों ने गिट्टी और डामर के नसीब में वियोग लिख दिया। अब डामर और गिट्टी नाम की चीज मौके पर ढूंडे से मौजूद नहीं है।

5 साल की गारंटी दरकिनार, पेंचवर्क कराकर निपटाया :
सरकारी नियमों के मुताबिक किसी भी सार्वजनिक निर्माण कार्य के बाद उसके रख-रखाव की गारंटी 5 साल की होती है। गारंटी पीरियड में ठेकेदार निर्माण की सलामती को लेकर जिम्मेदार होता है।इसी गारंटी के आधार पर उसे भुगतान भी किया जाता है।आवापल्ली-उसूर रोड के मामले में इस नियम का भी ध्यान नहीं रखा गया है। लिहाजा पहली बरसात में रोड उखड़ने के बाद ठेकेदार 8-10 लाख रुपए में पेंचवर्क कराते हुए ना केवल जिम्मेदारी से मुक्त हो चुका है। बल्कि निर्माण के एवज में पूरा भुगतान भी हासिल कर चुका है।अब उसे या निर्माण कराने वालों को कोई सरोकार नहीं।

गड्डों में गुम हो गया सड़क :

आलम यह है कि 12.5 किमी लंबे इस मार्ग पर वाहन लेकर गुजरना या पैदल चलना पूरी तरह से दुश्वार है।गड्डों में रोड का अस्तित्व गुम हो चुका है। छोटे-बड़े वाहन लेकर यहां से गुजरने में पौन से एक घंटे का वक्त आराम से लग जाता है।ग्रामीणों भ्रस्टाचार की भेंट चढ़े इस सड़क के लिए विभागीय अधिकारियों और प्रशासन को जिम्मेदार बताते हैं।उनका कहना है कि बेहद घटिया तरीके से कराए गए निर्माण के इस काम पर प्रशासन समय रहते ध्यान दे लेता तो आज यह नौबत नहीं आती।उनका कहना है कि निर्माण की जांच कराई जानी चाहिए।

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