माँ

इल्तिजा अज्ञात से

इल्तिजा अज्ञात से

उन्होंने भी पचासियों को पछाड़ मेहनत से हटकर मेहनत की और बड़े से बड़े साहब हो गए। जब साहब बड़े से बड़े साहब बड़े हो जाएं तो उन्हें कोई नहीं पूछता। वे ही सबको पूछते हैं। क्योंकि उनको पूछने वालों के साथ उनका रोज का उठना बैठना होता है। बड़े साहब हमेशा जनता के बारे में सोचते हैं या कि जनता के बहाने अपने बारे में सोचते हैं, ये अंदर की बात है जो कभी-कभी बाहर आ जाती है। अबके फिर अपने बड़े साहब की अंदर की बात बाहर आ गई।

(इल्तिजा अज्ञात से लोगो को उठाने से पहले बचा लें… फाईल फोटो नहीं है… बनने से पहले बिगड़ने की जीते जागते तस्वीर ख़ुद से तस्दीक़ कर लें …)

ये कंबख्त कलियुग है ही करप्शन का युग। इस युग में करप्ट ही बलवान है। कलियुग में जो भगवान का नाम लेते-लेते सुरा में भी गंगाजल के छींटे मार उसे पवित्र करने का प्रावधान है। सुना है ऑफ लाइन तो ऑफलाइन, ऑनलाइन मंगावाए गंगाजल के चार छींटे भर बड़ों-बड़ों के महीनों भ्रष्टाचार के गटर में वास करने के बाद बाहर आने पर उन्हें उनके जन्म- जनमांतरों के पापों से मुक्ति दिलवा उनके लिए मोक्ष के मार्ग वैसे ही खोल देते हैं जैसे साहब के आने की भनक लगते ही चौकीदार आधा घंटा पहले उनके कमरे के दरवाजे खोल देता है।

फिर उनके पांव अपने ऑफिस के दरवाजे पर पहुंचने के बाद भले ही एकाएक किसी दूसरी ओर मुड़ जाएं तो मुड़ जाएं। साहब के दिमाग और पांव का मुड़ना उनके अपने बस में भी नहीं होता।

कलियुग में जब तक ईमानदारी के सिंहासन पर बैठे देवता भी सौदे में बांट फांक न कर लें, कहते हैं उन्हें रात को नींद नहीं आती। ऐसे में बहती गंगा में कौन हाथ धोना नहीं चाहता? जबकि इस दौर में नहाने से अधिक वेटेज दिन में दस-दस बार हाथ धोने को दी जा रही हो। हुआ यों कि महामारी में मेरे बड़े साहब पर जनता का एक और बोझ आ पड़ा। उन्हें महामारी से बचाने के लिए जनता हेतु सामान खरीदना था। वैसे सामान खरीदने में उनकी कोई सानी नहीं। बहुधा वे जनहित में कुछ न कुछ अनाप-शनाप खरीदते ही रहते हैं। इससे ऑफिस में हलचल चली रहती है। जनता को भी लगता है कि उसके लिए कुछ खरीदा जा रहा है। उस तक पहुंचे या न पहुंचे, इसकी परवाह अब जनता ने करनी छोड़ दी है। …और उन्होंने जल्दबाजी में आ महामारी को लाइटली लेते महामारी के सामान को हाथ लगाने से पहले सदाचार के सेनेटाइजर से हाथ साफ करने के बदले सेनेटाइजर पर ही हाथ साफ कर दिए। उन्हें विश्वास था कि उनके हाथ तो तबसे ही पाक साफ हैं, जबसे वे साहब बने हैं। उनके हाथों पर कमीशन का कोई निशान नहीं लग सकता। उनके हाथ कमीशन दाग फ्री हैं। उनके हाथों पर किसी भी किस्म की कमीशन दाग छोड़ ही नहीं सकती। क्योंकि अब वे कमीशन लेकर कृतार्थ नहीं होते, कमीशन उनके पवित्र हाथों का स्पर्श पा कृतार्थ होती है। वैसे भी जब पीछे शाबाशी देते चिर्लीडर्स हों तो प्रोफेशनल घोड़ों की रेस में लंगड़े गधे के हौसले आठवें आसमान पर तो होते ही जाते हैं। अपने हित साधन हेतु फटे गुबारे तक में हवा भरने वालों की समाज में कमी थोड़े ही है। …पर हाय! वे जनता को कोरोना निगेटिव करते-करते खुद कोरोना पॉजिटिव हो गए। उन्हें लगा था कि वे अपने इम्यून सिस्टम से कोरोना को भी मात दे देंगे। भगवान से मेरी यही इल्तिजा है कि मेरे ईमानदार बड़े साहब आने वाले हर टेस्ट जल्द से जल्द निगेटिव आएं ताकि वे अपनी कुर्सी को पहले की तरह इठलाते हुए सुशोभित कर सकें।

नोट-ओ तों यूँ हीं …व्यंग्य लेखन

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Gopal Krishna Naik

Editor in Chief Naik News Agency Group

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