रमता है सो कौन घट-घट में विराजत है, रमता है सो कौन बता दे कोई

रमता है सो कौन घट-घट में विराजत है,
रमता है सो कौन बता दे कोई

अकलतरा @अविनाश सिंह ✍ अपने जीवन के अंतिम क्षणों में अघोरेश्वर भगवान राम ने कहा था- ‘मैं अघोरेश्वर स्वरूप ही स्वतंत्र, सर्वत्र, सर्वकाल में स्वच्छंद रमण करता हूं। मैं अघोरेश्वर ही सूर्य की किरणों, चंद्रमा की रश्मियों, वायु के कणों और जल की हर बूंदों में व्याप्त हूं। ..साकार भी हूं, निराकार भी हूं। आप जिस रूप में मुझे अपनी श्रद्धा सहेली को साथ लेकर ढूंठेंगे मैं उसी रूप में आपको मिलूंगा।

अवधूत भगवान राम का भौतिक शरीर 12 सितम्बर 1937 को बिहार के भोजपुर जनपद के गुडी ग्राम में अवतरित हुआ। पिता बैजनाथ सिंह की एकमात्र संतान होने के कारण पिता ने भावावेश में कह दिया कि मेरे घर भगवान का जन्म हुआ है। उन्होंने उनका नाम भगवान रख दिया। उन्हें क्या पता था कि यह बालक आगे चलकर सचमुच औघड़ भगवान राम के नाम से विख्यात होगा। पाच वर्ष की अवस्था में ही पिता का शिवलोक गमन हो गया। सात वर्ष की अवस्था में उन्होंने घर-बार छोड़ दिया।
इसके बाद वह क्रीं कुण्ड

(कीनाराम आश्रम) वाराणसी पहुंचे तो वहा के महंत बाबा राजेश्वर रामजी से अघोर मंत्र दीक्षा लेकर अवधूत भगवान राम बन गए। इसके बाद बाबा भ्रमण पर निकल गए। वह मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर तथा पूजा आदि की प्रचलित अवधारणा से बिल्कुल भिन्न विचार रखते थे। उनका कहना था कि पत्थरों, ईंटों से निर्मित देवालयों में यदि विश्वास चिपका तो सर्वनाश है।

29 नवम्बर 1992 को उन्होंने अमेरिका के कैलिफोर्निया में पद्मासन में शरीर छोड़ा।

अलौकिक शक्तियों के स्वामी परम् पूज्य अघोरेश्वर महाप्रभु (सरकार बाबा) के महानिर्वाण दिवस पर कोटी कोटी नमन
प्रात: स्मरणीय परम पूज्य महाप्रभु के श्री चरणों में कोटि-कोटि नमन वंदन ….




