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खाद की गाड़ी पहुंची ही नहीं और हुई डीएम की ऑनलाइन एंट्री कर खाद किसानों को बेचा जाना दिखाया गया.. जानिए पूरा मामला

  • सरिया समिति में सहकारिता विभाग की मैराथन जांच के पहले कृषि विभाग ने खोल दी पोल, पूर्व प्रबंधक समेत संचालक मंडल की भूमिका पर उठे सवाल

रायगढ़। उर्वरक की कालाबाजारी पर प्रशासन का कोई कंट्रोल ही नहीं रहा है। सहकारी समितियों को किसानों की सहायता के लिए बनाया गया था लेकिन अब ये खाद के थोक डीलरों के हाथ की कठपुतली हैं। इस गठजोड़ को सहकारिता विभाग खुद बढ़ावा दे रहा है। सरिया समिति में खाद की अफरा-तफरी की जांच दो महीने से चल रही है। लेकिन इस बीच कृषि विभाग की संक्षिप्त जांच ने पोल खोल दी है।

सहकारी समितियों में खाद की चोरी और उसे डीलरों तक पहुंचाने का जाल हर तरफ फैला हुआ है। थोक डीलरों और समिति संचालक मंडल, प्रबंधकों के बीच अघोषित समझौता है जिसके तहत खाद के ट्रक समिति के गोदाम की बजाय व्यापारी के ठिकानों पर खाली होते हैं। सरिया समिति में खाद की कमी होने पर मार्कफेड के डबल लॉक सेंटरों से यूरिया और डीएपी भेजा गया था। लेकिन यह समिति में नहीं पहुंचा और समायोजन शुरू हो गया। घपले के सामने आने के बाद प्रबंधक से वित्तीय अधिकार छीन लिए गए। दो महीने पहले सहकारिता विभाग ने जांच शुरू की है लेकिन अभी तक यह पूरी नहीं हो सकी है।

कलेक्टर ने कृषि विभाग को भी जांच करने कहा था। कृषि विभाग ने मौजूद दस्तावेजों को देखकर कर्मचारियों के बयान लिए है। इनके बयानों ने पोल खोल दी है। समिति के लिपिक और सहायक लिपिक ने बताया कि उक्त अवधि में खाद की कोई गाड़ी पहुंची ही नहीं। मतलब बिना खाद आए ही इसे किसानों को बेचा जाना दिखाया गया। कंप्यूटर ऑपरेटर ने बताया कि खाद के डिलीवरी मेमो की ऑनलाइन एंट्री करने प्रबंधक ने ही कहा था। इस मामले में संचालक मंडल की भूमिका भी संदेहास्पद है। सरिया समिति के अध्यक्ष नकुल पटेल हैं। उनकी जानकारी में ही पूरा खेल हुआ। सरिया में खाद की कमी होने पर अध्यक्ष ने भी कोई आपत्ति दर्ज नहीं की।

ऐसे हुआ है खेल

सरिया समिति में हुई गड़बड़ी की पूरी जानकारी सहकारिता विभाग के अधिकारियों और अपेक्स बैंक को है। लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। दरअसल डबल लॉक सेंटर से खाद लेकर गाड़ी निकली लेकिन वह कहीं और खाली हो गई। समिति में खाद की नकद और लोन के जरिए बिक्री दिखा दी गई। किसानों के नाम पर खाद की मात्रा चढ़ा दी गई। लिंकिंग से राशि कटी तो किसानों ने विरोध किया। खाद को व्यापारी के जरिए दो-तीन गुना अधिक कीमत पर बेचा गया। वास्तविक कीमत और विक्रय दर के बीच अंतर राशि को बांट लिया गया। वास्तविक कीमत को किसान के एकाउंट में एडजस्ट कर जमा किया जाना था लेकिन मामला बाहर आ गया।

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