
यह स्थिति कोविड संक्रमण काल में देहदान से मानव देह नहीं मिलने के चलते निर्मित हुई है। बिना मानव शरीर के मेडिकल कालेज की पढ़ाई संभव नहीं है। डेड बॉडी के जरिये ही मेडिकल स्टूडेंट्स मानव शरीर का अध्ययन करते है। शरीर की संरचना को अच्छी तरह से समझते हैं और इसका अच्छी तरह से अध्ययन व पढ़ाई करने कब बाद ही वे डॉक्टर बनते हैं लेकिन रायगढ़ मेडिकल कालेज में पिछले 2 साल से कोरोना संक्रमण में देहदान की संख्या काफी कम हो गई है। वहीं जिन्होंने पूर्व में देहदान करने की घोषणा की थी, उनमें अधिकांश की मृत्यु कोरोना से हो गई और कोविड गाइडलाइन के अनुसार उनकी बॉडी यहां स्वीकार नहीं की जा सकती। यही वजह है कि इन दो सालों में केवल एक मृत देह मेडिकल कालेज पहुंची है।
ऐसे में डेड बॉडी की कमी के कारण स्टूडेंट्स का रिसर्च काफी प्रभावित हो रहा है। इसका सीधा असर उनकी पढ़ाई पर भी पड़ रहा है। बाहर से मंगवानी पड़ रही है बॉडी हालात तो यहां तक हो गए हैं कि मेडिकल की पढ़ाई के लिए अब बाहर से मृत देह मंगवाना पड़ रहा है। दूसरी लहर थमने के बाद मिली एक बॉडी के जरिये ही अभी मेडिकल की पढ़ाई कराई जा रही है। हर साल 6 डेड बॉडी की आवश्यकता यहां यह बताना जरूरी है कि रायगढ़ मेडिकल कालेज में साल दर साल स्टूडेंट्स की संख्या भी बढ़ते जा रही है।
हर साल यहां 60 नए छात्र प्रवेश करते हैं जिनकी पढ़ाई के लिए कम से कम 6 डेथ बॉडी की दरकार होती है जबकि अभी उसके विपरीत यहां मृतदेह नहीं के बराबर मिल रहे हैं। ऑनलाईन के चलते नहीं हुई परेशानी मेडिकल कॉलेज के अधिकारी भी इस समस्या को स्वीकार करते हैं।
मेकाहारा के अधीक्षक डॉ. मनोज मिंज का कहना है कि दो साल कोविड संक्रमण ज्यादा होने के कारण ऑनलाइन ही पढ़ाई चली। इसके चलते परेशानी नहीं हुई मगर अब ऑफलाइन क्लास लगने से दिक्कत आने लगी है। हालांकि अब पर्याप्त मात्रा में इसकी व्यवस्था कर ली गई है।




